जिसे फूलों से रंग लेकर बनाया
जिसे केसरों से बुनकर बनाया
जिसे ओसकण से जुडाकर बनाया
जिसे चादनी ने बिठाकर सजाया
कहीं खो गयी है .
हजारों बरस मे जिसे खोज पाया
जिसे सिद्धि ने था मुझको बताया
जिसे रिद्धि ने था मुझको बताया
जिसे स्वप्न देवी ने मुझसे मिलाया
कहीं खो गयी है.
दिकों ने जिसको हाथों उठाया
जिसे रागिनी ने गा कर जगाया
जिसे आसमानों ने बातों लगाया
जिसे बिजलियों ने दीपन सिखाया
कहीं खो गयी है.
जिसे किन्नरी ने आकर झुलाया
जिसे यक्षिणी ने उडकर डुलाया
जिसे तितलियों के रथ पर बिठाया
जिसे बादलों के उसपार पाया
कहीं खो गयी है
जिसे सावनों ने यौवन पिलाया
जिसे मधु ऋतुओं ने हँसना सिखाया
जिसे वाकदेवी का आशीष भाया
क्षमा शील लज्जा का मंत्र पाया
कहीं खो गयी है
जिसे देख रतियाँ सुध खो गयी थी
जिसे देख परियां खुश हो गयी थीं
मुझे कवि बनाकर, जो रस हो गयी थी
मुझे कीर्ति दे, प्रेरणा हो गयी थी.
कहीं खो गयी है.
जिसे पाके मर्यादाएं खो गयी थी
जिसे पाके मोक्षेष्णा सो गयी थी
जिसे पाके संध्या उषा हो गयी थी
जिसे पाके वाणी सुधा हो गयी थी.
कहीं खो गयी है.
जिसे पाके मैं सत्यमय हो गया था
जिसे पाके मैं तो शिवम हो गया था
जिसे पाके मैं सुन्दरम पा गया था
जिसे पाकेमें एक ब्रह्म हो गया था
कहीं खो गयी है.
***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें