बगिया में बहुत फूल हैं, खुशबू लिए हुए
हमको यहाँ बुला लिया, किसकी छेड़ है?
सावन की यादगार में, डूबे हैं जब भी हम
झट से बसंत ला दिया, किसकी ये छेड़ है?
अलसा रही है उम्र जब बीती बिसार कर
उसका ही रूप लेकर, किसकी ये छेड़ है?
मझधार में व्यथित हम, कश्ती लिए हुए
आकर वही सम्हाले, जिसकी ये छेड़ है.
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झट से बसंत ला दिया, किसकी ये छेड़ है?
संतो के इस मुकाम पर बाजा लिए हुए
किसके हैं ये साये नए, किसकी ये छेड़ है?अलसा रही है उम्र जब बीती बिसार कर
उसका ही रूप लेकर, किसकी ये छेड़ है?
मझधार में व्यथित हम, कश्ती लिए हुए
आकर वही सम्हाले, जिसकी ये छेड़ है.
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