बुधवार, 27 जुलाई 2011

चेहरा

विकृत कायाएं 
रोगों की छायायें
चिंता व्यथा की घुटी दबी परिवादें 
छल पर छल की प्रतिक्रियाएं
खुद को भूले जाने की सच्चाई 
घुप अँधेरे में जिजीविषा ग्रस्त 
हाथों,होंठों और आखों की तडफन .
       यही है समाज का चेहरा 
        जिस पर पुते हैं हजार रंग 
         नैतिकता के नाम पर 
          आधुनिकता का लेबल लगवा कर .
                  ***

      

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