विकृत कायाएं
रोगों की छायायें
चिंता व्यथा की घुटी दबी परिवादें
छल पर छल की प्रतिक्रियाएं
खुद को भूले जाने की सच्चाई
घुप अँधेरे में जिजीविषा ग्रस्त
हाथों,होंठों और आखों की तडफन .
यही है समाज का चेहरा
जिस पर पुते हैं हजार रंग
नैतिकता के नाम पर
आधुनिकता का लेबल लगवा कर .
***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें