जल दे
भर दे
पर प्रलय न दे.
हर सूखे को हरियाली दे
आभा छटा निराली दे
जल दे, भर दे, पर प्रलय न दे
देख ये माटी प्यासी है
तीज पर यों उदासी है
कलियाँ सभी रुआंसी हैं
मुस्कानें हैं पर बासी हैं
घन आकर इनको तन मन दे
जल दे, भर दे, पर प्रलय न दे
जिन बीजों में अंकुर हैं
बरस उन्हें निकासी दे
जिन पुष्पों में सौरभ है
महक उठे मृदु हाँसी दे
घन! प्यार इन्हें अविनाशी दे
जल दे, भर दे, पर प्रलय न दे .
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देख ये माटी प्यासी है
जवाब देंहटाएंतीज पर यों उदासी है
कलियाँ सभी रुआंसी हैं
मुस्कानें हैं पर बासी हैं
घन आकर इनको तन मन दे
जल दे, भर दे, पर प्रलय न दे
कल्याण भाव से सृजित आपकी रचना के लिए साधुवाद !
आदरणीय पुरुषोत्तम पाण्डेय जी !
* हार्दिक बधाई ! *
* हार्दिक शुभकामनाएं !*
*मंगलकामनाएं !*
- राजेन्द्र स्वर्णकार