शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

मेरी कविता

उत्ताल तरंगों से गति लेकर 
          चल पड़ी ये जीवन सरिता 
मैं काव्यमय होता जाऊं 
          हर क्षण गूंथें जाऊं कविता.

कंटक-पुष्पों को छू करके 
          आती है भावों की सरिता 
क्यों न अपना भाग्य सराहूं 
          प्यार करे जब मुझसे कविता.

जैसे माता प्यार बिखेरे
          और बहाये पय की सरिता     
ऐसे में मैं बहता जाऊं 
          और बहाये मुझको कविता 

जन्म-मरण के बंधन रहते 
          तिरता जाऊं ये जग सरिता 
पतवार बनाउंगा ये जीवन 
          नाव बनाउंगा मैं कविता 

सुख-दुःख का भाव सजाकर 
          भरता जाऊं दर्शन सरिता
व्याकुल बिह्वल कोई पी ले
          मुक्त करेगी मेरी कविता  

कलुषविहीन कलामय सी
          दुःख:हरणी ममतामय सरिता 
सदाबहार, समानगुणधर्मा 
          नित्य रहेगी मेरी कविता 

जाने क्या क्या रिश्ते होते
          ये जग रिश्तों की है सरिता
तेरा मेरा रिश्ता लेकिन
          मैं कवि हूँ तू मेरी कविता 

भूला भटका प्यासामादा 
          प्यास बुझाए समझे सरिता 
इसमे डूबे भी तर जाएँ 
          गाता जाए कविता-कविता 
                          *** 

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