एक फिल्म बनी थी, ‘हम सब चोर हैं,’ और बाद में एक फ़िल्मी गाना भी आया था, ‘कोई गोरा चोर, कोई काला चोर, कोई लाट साहब का साला चोर...’ पर ये दोनों ही कथन अर्धसत्य है. हर बात में अपवाद भी होते हैं. ऐसे ही थे बिजली विभाग के एक इंजीनियर हरिश्चंद्र जोशी.
हरिश्चंद्र के पिता पंडित दुर्गादत्त एक अध्यापक थे और बचपन से ही नैतिकता के पाठ पढ़ा कर उनके आचार विचार को इतना शुद्ध करके रखा था कि बिरला इंस्टीच्यूट पिलानी से बी.ई. इलेट्रीकल्स की डिग्री हासिल करके जब वे उत्तर प्रदेश बिजली बोर्ड (तब निगम नहीं बना था) के मुलाजिम बने तो हर तरफ घूस व कमीशन की बाढ़ देख कर बहुत दु:खी हुए.
तीन तरह के ईमानदार लोग होते हैं--एक वह जो बाहर-भीतर से यानि मन-वचन-कर्म से शुद्ध होते हैं. बेइमानी की सोच भी नहीं सकते हैं और अनाचार की कमाई को पाप समझते हैं. दूसरे वह जिनको बेईमानी करने का मौक़ा मयस्सर नहीं होता है. वे चाहे तो भी बेईमानी नहीं कर पाते हैं. और तीसरे वह जो बेईमानी करते तो हैं, पर दुनियाँ को खबर नहीं होने देते है.
हरिश्चंद्र जोशी ने शुरू में ही अपने सहकर्मियों से कह दिया था कि उनके लिए घूस व कमीशन का पैसा लेना गाय का खून लेने के सामान है, और वे अपने इस व्रत को पूरे ३५ वर्ष के सेवाकाल तक निभाते रहे. उनके साथ के कई लोग भरपूर भष्टाचार में डूबे रहते थे पर वे उन सब से अलग ही थे.
उन्होंने अपने दोनों बेटों को भी अपनी ही लीक पर रखने के लिए शिक्षा विभाग में लेक्चरर पद की राह पकड़ाई. उनका विश्वास था कि ये एक नोबल प्रोफेशन है, जहाँ अन्य सरकारी विभागों की तरह हराम का पैसा नहीं बंटता है. यद्यपि तब वेतन कम ही था पर उन्होंने अपने सारे काम उसमे ही निभा कर किये. उनके रुपयों में अवश्य ही बरकत रही.
अपने कार्यकाल में उन्होंने मातहतों को नौकरी पर भी रखा. वे जब नोएडा इंडस्ट्रियल एरिया में तैनात थे तो उन्होंने हीरासिंह नाम के एक गरीब लड़के को लाइनमैन में भर्ती किया था. वह भी अल्मोडा के निकटवर्ती किसी गाँव का रहने वाला था. हीरासिंह बाद में नोएडा में ही मीटर रीडर बना दिया गया था. वहाँ उसके ऊपरी आमदनी के बहुत श्रोत थे इसलिए उसने वहाँ से अपनी बदली अन्यत्र नहीं होने दी. जबकि हरिश्चंद्र जोशी अनेक जिलों में घूमते हुए, उत्तराखंड बनने के बाद हिल कैडर में अपनी च्वाइस दे कर नैनीताल रेंज में आ गए. वे लंबे समय तक एक्जेक्यूटिव इंजीनियर के पद रहे. वे चीफ इंजीनियर बनने के लिए सीनियोरिटी लिस्ट में हमेशा ही रहे पर उनकी ईमानदारी आड़े आती रही. ऊपरवाले ऐसे लोगों को पसंद नहीं करते हैं जो न खाते हैं और ना खाने देते हैं.
कुमायूं पहाड़ के रहने वाले अधिकाँश लोग नौकरी से रिटायर होने पर हल्द्वानी जैसे सुबिधा वाले शहर के आस-पास अपना आशियाना बनाना पसंद करते हैं. हरीशचन्द्र जोशी ने भी बहुत सोच समझ कर कुसुमखेड़ा में ३००० वर्ग फुट का एक रिहायसी प्लाट, अपने रिटायरमेंट से पहले ले लिया था. रिटायरमेंट से एक साल पहले से ही उनके मन में अपने स्वप्न महल के नक़्शे बनने लगे थे. उन्होंने नक्शानवीस से इस विषय में कई बार चर्चाएं भी की. उनके प्लाट के मोड पर एक बड़ा सुन्दर, आधुनिक नक़्शे वाला बड़ा मकान कुछ समय पहले ही बना हुआ था. उसका नक्शा बार बार उनको अपनी ओर आकर्षित कर रहा था. एक दिन वे गेट खटखटा कर अन्दर दाखिल हुए तो मकान की गृहिणी मिली. उन्होंने गृहिणी से कहा कि उनको मकान बहुत अच्छा लग रहा है, चूँकि वे भी अपना मकान बनवा रहे हैं इसलिए अन्दर की बनावट देखना चाहते हैं. गृहिणी ने बहुत आदर से उनको अपना घर दिखाया. मकान वाकई बड़ा शानदार था. मकान का फर्श-फर्नीचर व डेकोरेशन और भी शानदार था. जोशी जी गौर से सब निहारते रहे, बाद में अपने घर आकर उन्होंने वैसे ही कमरे, रसोई, बाथरूम, लॉबी, बालकनी व गैरेज का खाका बनाया और नक्शानवीस के पास ले गये, नक्शा बन गया, म्युनिसिपैलिटी में पास भी हो गया. ये दीगर बात है कि यहाँ उनको सुविधा शुल्क देना ही पड़ा.
मकान बनाने के लिए ठेकेदार से शर्तें तय हो गयी और करीब दस महीनों में मकान बन कर भी तैयार हो गया. मकान जीवन में अक्सर एक ही बार बन पाता है इसलिए उन्होंने अपनी तरफ से अच्छा बनाने में कोई कोर-कसर नहीं रखी. घर की सजावट में उन्होंने व उनके बेटों ने बढ़िया से बढ़िया मैटीरियल व फर्नीचर की व्यवस्था की, फिर भी उनको लगता रहा कि जिस मकान को देख कर उन्होंने अपना बनाया है वह कई मायनों में इससे बेहतर है.
गृहप्रवेश की सारी तैयारी चल रही थी, बच्चे लोग आ चुके थे. रिश्तेदारों को निमंत्रण पत्र भेजे जा चुके थे. हरिश्चंद्र जोशी के मन में आया कि जिस मकान को देख कर उन्होंने प्रेरणा ली है, उसे भी निमंत्रित करना चाहिए. उनको मकान मालिक का नाम मालूम न था इसलिए बिना नाम लिखे ही वे एक कार्ड लेकर उस घर पर पहुंचे, गेट की घंटी बजाई तो अन्दर से गृहणी बाहर निकली. जोशी जी ने कहा, “मैं मकान मालिक से मिलना चाहता हूँ.”
गृहणी ने उत्तर दिया, “अभी बुलाती हूँ.”
थोड़ी देर में गृहस्वामी जब बाहर आया तो हरिश्चंद्र जोशी उसे देख कर हतप्रभ रह गए. वह और कोई नहीं बल्कि हीरासिंह मीटर रीडर था.
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wakt ki haqueekat hai ye--- -----'kewal'
जवाब देंहटाएंसत्य ऐसा ही है, एक सत्य यह भी है कि जोशी जी जैसे लोगों को इन बातों से कोई फ़र्क भी नहीं पड़ना चाहिये। पहली श्रेणी वाले ईमानदारों की ईमानदारी ’बाई च्वायस’ वाली होती है न कि ’बाई चांस’ वाली।
जवाब देंहटाएंपढ़कर बहुत अच्छा लगा।
kahani mein bahut achcha twist hai...
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