अब प्लास्टिक करेन्सी का जमाना आ गया है. धीरे-धीरे कागज़ की करेन्सी भी गायब हो जायेगी. आज से १५० वर्ष पूर्व कागज़ की करेन्सी प्रचालन में नहीं आई थी. रकम का लेन देन सोने, चांदी, पीतल या ताम्बे के सिक्कों में होता था.
एक साहूकार गाँवों से अपनी उगाही करके सिक्कों की भारी भरकम पोटली लेकर अपने कस्बे की तरफ पैदल ही आ रहा था. बोझ से बहुत परेशानी हो रही थी पर लक्ष्मी को फैंका भी नहीं जा सकता था. उसी रास्ते में पीछे से एक घुड़सवार चला आ रहा था. नजदीक आने पर साहूकार ने घुड़सवार को रोक कर पोटली कस्बे तक पहुँचाने का निवेदन किया, पर घुड़सवार था कि अपनी आन की तौहीन समझ कर बिना कुछ बोले आगे निकल गया. कुछ दूर आगे निकल जाने के बाद उसके मन में आया कि साहूकार की पोटली लेकर हजम कर लेता तो मजा आ जाता. अत: उसने घोड़े का रुख मोड़ा और साहूकार की तरफ वापस आया.
उधर साहूकार को अपनी बात पर खुद बड़ा अफ़सोस हो रहा था कि अगर घुड़सवार उसकी पोटली लेकर गायब हो जाता तो बड़ा नुकसान हो जाता.
घुड़सवार ने आकर साहूकार से कहा, “लाइए, मैं आपकी पोटली आपके ठिकाने तक पहुँचा दूंगा.”
साहूकार बोला, “अब मेरे विचार बदल गए हैं. खुद ही इसे ले जाऊंगा.”
घुड़सवार उत्कंठित होकर बोला, “क्यों, क्या हो गया?”
साहूकार ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “ये तू जाने या मैं जानू.”
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ये तू जान और मैं जानू।..सुदर कथा।
जवाब देंहटाएंयही टेलीपेथी है :)
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
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सही कहा यह तू जाने या मैं :):):
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