आजादी के बाद नई दिल्ली में नौकरियों की अपार संभावनाएं बनी तो सब तरफ से नौजवान खींचे चले आये. तब दिल्ली इतनी बड़ी नहीं थी. मैं भी १९५६ में इंटरमीडियेट पास करने के बाद अपने एक निकट रिश्तेदार के प्रयास से दिल्ली यूनिवर्सिटी के पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट में मेडिकल लैबोरेटरी टैक्नोलाजी की ट्रेनिंग+जॉब में लग गया.
ये हमारे देश का एक संक्रमण काल था, अनेक विधाओं में नए प्रयोग किये जा रहे थे तथा नए-नए विभाग खोले जा रहे थे. मुझे नौकरी के भविष्य व संभावनाओं के बारे में ज्ञान ना के बराबर था. पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट में असिस्टंट डाइरेक्टर कर्नल A.J.H. Demonte जो एक एन्ग्लो इन्डियन थे और शक्ल सूरत में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री चर्चिल से मेल खाते थे, उनके पीछे लोग उनको चर्चिल साहब ही कहा करते थे. वे खुद बैक्टीरियोलोजिस्ट थे. उन्होंने लैब टैक्नोलाजी में क्लिनिकल पैथोलाजी, बैक्टीरियोलाजी, बायोकैमिस्ट्री, सीरोलोजी, हिस्टोपैथोलोजी जैसे विषयों में हमको ट्रेनिंग देकर मल्टीपरपज साइंटिस्ट बनाने का सपना देखा था. चूँकि वह एक रिसर्च इंस्टिट्यूट था इसलिए वेतन मात्र ९० रूपये प्रतिमाह मिलता था. यह १९५७-५८ की बात है. बाद में सभी लड़के एक एक करके वहाँ से छोड कर बड़ी तन्खाहों में चले गए. मैं भी दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन के कालका जी स्थित हॉस्पिटल में चला गया. नौकरी के लिहाज से ये एक लूप लाइन थी, जिसका अहसास मुझे बहुत बाद में हुआ. ये भी था कि जितनी बड़ी ट्रेनिंग पाई थी उसका मात्र १०% यथार्थ में क्लीनिकल लैबोरटरी में करने को मिला.
पटेल चेस्ट में जिन लड़कों के साथ मेरा डेरा था वे सब पढ़ाकू थे और अपना कैरियर बेहतर बनाने के लिए नाईट कॉलेज ज्वाइन किये हुए थे. उनके सोहबत में मैंने भी आगे पढाई का रुख किया. शक्तिनगर (पुरानी सब्जीमंडी के पास) में प्रो० कुलानन्द भारतीय जी की एक कोचिंग एकैडेमी थी वहाँ एड्मीसन लेकर मैंने पंजाब यूनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य की आनर्स (प्रभाकर) परिक्षा पास की. (प्रो० भारतीय बाद में निगम पार्षद व दिल्ली को अलग राज्य का दर्जा मिलने पर मिनिस्टर भी रहे.) मैंने उसके बाद इंग्लिस लिटरेचर में ग्रेजुयेशन कोर्स में दाखिला लिया. मेरी अंग्रेजी बहुत कमजोर थी. कुमाऊं के स्कूलों में तब अंग्रेजी की बड़ी दुर्दशा थी. लड़के अंग्रेजी के कारण दसवीं पास नहीं कर पाते थे. प्रो० कुलानन्द जी स्वयं कुमाउनी थे. उन्होंने मेरे बारे में व्यक्तिगत रूचि लेकर सिलेबस बना कर पढ़ने का रास्ता सुझाया. मुझे आदेश दिया कि मैं रोज अंग्रेजी अखबार का एक पूरा पन्ना पढूं. उसमें जो कठिन शब्द हों उनको कापी में लिख कर डिक्शनरी से अर्थ भी मालूम करूँ. इससे मेरा शब्द ज्ञान (वाकेबुलरी) तो बहुत बढ़ गया पर ग्रामर में ज्यादा सुधार नहीं हुआ.
अंग्रेज़ी अखबार पढ़ने का जो आदेश था वह मेरी जिंदगी का ‘टर्निग पॉइंट’ बना. मैं अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स नियमित पढ़ने लगा था. उसी में रिक्तियों के कालम भी देखता रहता था. ७ अप्रेल १९६० को ए.सी.सी. का विज्ञापन देखकर मैंने आवेदन पत्र भेज दिया. फलस्वरूप नियुक्ति पा गया.
मेरी नियुक्ति राजस्थान के जिला बूंदी में लाखेरी स्थित कारखाने के अस्पताल में हो गयी. ये आवेदन तो मैंने शौकिया तौर पर भेजा था. कम्पनी ने हर बार आने जाने का किराया भी दिया. मैं अपने कल्पनाओं में रेगिस्तान का नक्शा बना कर चला था अत: रेगिस्तान देखना ही मेरी प्राथमिकता थी. लेकिन जब मैंने लाखेरी को देखा तो बहुत अच्छा लगा. यहाँ कोई रेगिस्तान नहीं था, बल्कि नखलिस्तान था, जहाँ पर बड़े बड़े पेड़, हरियाली, सुन्दर कॉलोनी, क्लब-लाइब्रेरी, स्टेडियम, तीन तरफ अरावली पर्वत माला की उपत्यकाएं, जिग-जिग डैम, कंटोनमेंट की तरह साफ़ सुथरी सड़कें व बढ़िया हॉस्पिटल था. हॉस्पिटल में तब लगभग ४० कर्मचारी थे. मुझे लाखेरी भा गया और मैं यहीं का हो कर रह गया.
तब मैं अविवाहित था. ६ माह बाद नौकरी पर कन्फर्म होने पर मेरी शादी हुई. तीनों बच्चे मेरे ही अस्पताल के जच्चा-बच्चा वार्ड में पैदा हुए. लाखेरी में बड़े हुए. यहीं हायर सेकेंडरी तक पढ़ कर आगे गए. तीनों के विवाहोत्सव यहीं हुए. बहुत सी खट्टी-मीठी यादें हैं. बीच में चार साल के लिए मई १९७० से अप्रेल १९७४ तक मुझे कर्नाटक के गुलबर्गा जिले में शाहबाद स्थानांतरित किया गया था वह अलग कहानी है.
लाखेरी मेरी कर्म भूमि रही. लाखेरी का हर व्यक्ति मुझे अपना सा लगता है. मैं इस कारखाने की खुशहाली की हमेशा कामना करता हूँ.
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कमाल है! मेरा भी जन्म लाखेरी में ही हुआ था :D
जवाब देंहटाएंये जानकार खुशी हो रही है.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर | अपने जीवन के अनुभव को दूसरों से शेयर करना भी एक अनोखा अनुभव होता है | ऐसा हर कोई नहीं कर पाता | ऐसा करने से आपके अनुभव का दूसरों को कुछ न कुछ फायदा जरूर होता है |
जवाब देंहटाएंachhee yaade hai ateet ki, lakhery ki kuchh-kuchh yade mujhe bhi a rahi he.
जवाब देंहटाएंनागपाल जी और जोशी जी दोनों को ब्लॉग पढ़ने और समझने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंयादों में खोने और संस्मरण लिख कर अनुभव साझा करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंसुंदर संस्मरण..... कुछ जगहें और बातें जीवन से सदा के लिए जुड़ जाती हैं.....
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी व डा० मोनिका जी आपने मेरे संस्मरणों को पढ़ा और मेरे भावों को महसूस किया धन्यवाद.
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