सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

बज्जर लाटा

गूंगे को कुमाउनी में लाटा कहा जात्ता है, लेकिन जो गूंगा-बहरा हो उसे बज्जर लाटा कहा जाता है.

प्रकृति का खेल भी कभी कभी अजब-गजब होता है. ११ भाई बहनों में उसका नम्बर सातवाँ था. गूंगे-बहरों की दुनिया अलग ही होती है. हम जो सामान्य मनुष्य होते हैं सँसार की बातें सुनते हैं, पढते हैं, और तमाम जानकारियाँ हासिल करते रहते हैं. लेकिन गूंगे-बहरे को जो दिखाई देता है वह उसे ही ग्रहण करके अपनी अक्ल लगाता होगा. उसके मानसिक स्थिति का आकलन कोई मनोवैज्ञानिक भी शायद ठीक से नहीं कर पायेगा.

पुरोहित जी ने नामकरण के दिन उनकी जो कुंडली बनाई उसमें उसको बड़ा धैर्यवान, पराक्रमी, स्त्री प्रेमी आदि कई पुरुषार्थी गुणों युक्त पुरुष उल्लिखित किया और उसके बंद कान में नाम की घोषणा भी की. जन्म समय की लग्न-मुहूर्त और नक्षत्र के अनुसार सिंह राशि के तहत मोहन नाम से की गयी. तब ये मालूम नहीं था कि उसका श्रवण यंत्र काम नहीं करता था लेकिन पुरोहित जी को तो कर्म-कांड के अनुसार बोलना ही था. उसका ये नाम बाद में और लोगों के इस्तेमाल के काम अवश्य आया, पर मोहन कभी नहीं जान पाया कि नाम क्या होता है. घरवालों को इस बात का आभास बहुत दिनों के बाद हुआ कि बालक वाणी और श्रवण शक्ति से नहीं नवाजा गया था, लेकिन ये आश्चर्यजनक था कि बालक मोहन अपने सारे नित्य के काम अन्य चंगे बच्चों की तरह करने लग गया. उसकी आँखों में गजब की चमक रहती थी. और वह जो देखता था फुर्ती से उसे सीख लेता था.

यों उसको देखने पर किसी अजनबी को कभी नहीं लगा कि वह बज्जर लाटा है. किशोरावस्था तक वह तमाम घरेलू कामों में पारंगत हो गया. अन्य भाई बहनों से चपल और तेज था. इशारों के लिए उसे सिखाया नहीं गया. उसने अपनी इशारों की भाषा खुद ईजाद करके औरों को अपनी बात समझाने की कला सीख ली. परिवार के लोग भी उसी की इशारों वाली भाषा में उससे बात करने लग गए. सन्दर्भों का पूर्वानुमान लगाने की उसकी अद्भुत क्षमता देख कर सबको अचम्भा होता था.

शौक उसको सारे थे. नए लोगों के लिए वह अजूबा हो सकता था, पर परिवार के लिए वह एक समझदार लड़का था. उसमें कोई ऐब भी नहीं था इसलिए भी वह सबका प्रिय था.

पहाड़ के दूर-दराज गाँवों की शादियां उन दिनों बिना किसी ताम-झाम दिखावे के साधारण कार्यक्रम की तरह मित्रों, गाँव पड़ोस को दाल-भात, पूड़ी-हलवा खिला कर हो जाया करती थी. वह ऐसा समय था कि बहुत से बहुत, बीन-बाजा और दमुआं+ढोल वाले की जरूरत होती थी. कभी-कभी तो उसके बिना भी काम चला लिया जाता था. डोली में बिठाया, फेरे करा दिये, न कोई बड़ा दान दहेज. मोहन के सभी भाई बहनों की शादी हो गयी थी, पर वह कुंवारा ही रह गया क्योंकि वह बज्जर लाटा था. उसने सबकी शादियाँ देखी, सबके जोड़े बनते देखे, पर उसको तो ऊपर वाले ने अधूरा बनाया था सो मन ही मन तरस कर रह जाया करता था. अवश्य ही शादी का मतलब उसकी समझ में आ गया था कि शादी के मायने बच्चे पैदा करना’.

वे माता पिता अपने भाग्य को दिन रात कोसते रहते हैं जो चाहते हुए भी अपनी औलाद की समय पर शादी नहीं कर पाते हैं. कुछ लोग तो इसी अधूरी तमन्ना के साथ इस दुनिया से चले जाते हैं, पर मोहन के पिता ने अपनी सोच को कार्यरूप में परिणीत कर ही दिया. कत्यूर घाटी के टीट गाँव से मोहन के लिए एक भैंगी+लंगड़ी लड़की की तलाश कर ली. जिसका कोई ना हो उसका खुदा होता है, ऐसी कहावत है, सो नन्दी देवी नाम की इस लड़की की शादी मोहन के साथ करा दी गयी. सात फेरे भी हुए पर सब दस्तूरन था क्योंकि मन्त्रों का मतलब अनपढ़ नन्दी भी नहीं समझती थी, मोहन तो गूंगा बहरा था ही. घर बस गया सब लोग खुश थे.

इस कहानी के नायक मोहन आज से लगभग ९० वर्ष पहले पैदा हुए थे. तब हमारे कूर्मांचल के गाँवों का जीवन कितना सरल था उसकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती है. अभाव-अभियोग व शारीरिक अक्षमताओं के बावजूद मोहन उर्फ बज्जर लाटा ८० वर्ष की उम्र तक जिए और स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त हुए. उनके दो पुत्रियां व एक पुत्र अपने परिवारों के साथ आज व्यवस्थित हैं. पुत्र धीरेन्द्र सबसे छोटा है वह फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट में रेंजर के पद पर है, रिटायरमेंट के करीब है. उसके ड्राईंगरूम में बाप की आदमकद रंगीन फोटो लटकी हुई है, ऐसा लगता है कि वे हमसे कुछ कहना चाहते हैं.
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7 टिप्‍पणियां:

  1. सन्देश नहीं समझ पाया ...और कहानी फलांगती चली गयी ....

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  2. ये एक सत्य कथा है जिसमे शारीरिक अक्षमताओं, अभावों के बावजूद एक व्यक्ति सामान्य जीवन जीकर जाता है.अपने संघर्षों की कहानी आपसे कहना चाहता है. इस कथा पर एक पूरा उपन्यास बन सकता है इसलिए आपको ये फलान्ग्ती सी लगती है.आपको विश्वास नहीं होगा ये चरित्र लेखक के बहुत नजदीकी रिश्तेदारी से होकर गुजरा है इसलिए इसकी संवेदनाओं के तार शायद सबको झंकृत नहीं कर सके. बेनामी जी समालोचना के लिए धन्यवाद. अच्छा लगा.

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  3. Apka Benami ji k liye sandesh padhkar saara saaransh asani se samajh a gaya...zindagi sabke liye barabar hai...

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  4. आज ' बज्जर काला ' [ कुमाऊँनी ] शब्द की बेहतर व्याख्या हेतु अचानक से आपका ब्लॉग नजर आया ,
    ' मोहन ' ने बहरा -गूंगा होते हुए भी एक सामान्य जीवन जिया और अपने बच्चों के सामने उदाहरण भी रखा , ड्राइंगरूम में लगी उनकी रंगीन आदमकद तस्वीर इसका सबूत है कि बच्चों ने भी अपने माता-पिता को पूर्ण आदर प्रदान किया |
    [ कत्यूर घाटी और टीट गाँव से हाट , बैजनाथ , गागरीगोल और 'कोट भ्रामरी देवी ' याद आ गयी :) ]

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