घुटनों घुटनों चलते चलते
जाने मैं
कब दौड़ पड़ा
पीछे मुड़कर ठिठक निहारूं
याद करूँ ‘माँ’
मैं खडा खडा.
तेरे आँचल का दूध था अमृत
जिसको पीकर बड़ा हुआ
तेरी मृदुल मधुमय मुस्कानों
से
मेरा
हर पल जुड़ा हुआ.
कोलाहल से भरी ये दुनिया
जब भी मुझको नीद न आती
संगीत-सुरों की सरगम जैसी
लोरी
तेरी आन सुलाती.
जाने क्या क्या रिश्ते
होते?
ये जग रिश्तों की है छाया
तेरा मेरा रिश्ता केवल
तू जननी, मैं तेरा जाया.
बूडा तेरे स्नेह में अविरल
याद करू नित जागे-सोवे
मैं पूत तुम्हारा अंश मात्र
हूँ
हे मातु, तुम्हारी जय होवे.
***
नमन माँ |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ||
प्रभावशाली रचना...सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजय हो!
जवाब देंहटाएंbahut achha likha hai ap ne .
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