काफल (उत्तराखंड देवभूमि के सौजन्य से) |
काफल के पेड़ हिमांचल से
लेकर गढ़वाल, कुमाऊं व नेपाल में बहुतायत में होते हैं. इसका छोटा गुठली युक्त
बेरी जैसा फल गुच्छों में आता है. जब कच्चा रहता है तो हरा दीखता है, और पकने पर
लालिमा आ जाती है. इसका खट्टा-मीठा स्वाद बहुत मनभावन तथा उदर-विकारों में बहुत
लाभकारी होता है.
हल्द्वानी की कृषि उपज मंडी
में साल भर सब्जी व अनाज के जिंसों के अलावा फलों का बड़ा व्यापार होता है. स्थानीय
मौसमी फलों के अतिरिक्त दक्षिण भारत से बेमौसम आम, अनन्नास, केला, संतरा चीकू,
अंगूर आदि सभी फल यहाँ उपलब्ध रहते हैं. यहाँ तक कि चीन का तथा दक्षिण अमेरिकी देश
चिली के सेव भी हल्द्वानी बाजार में कभी कभी मिल जाते हैं.
काफल का फल कुछ ही घंटों
में मुरझाने लगता है. बासी होने पर बेस्वाद हो जाता है. इसलिए यह मंडी में बिकने के
लिए कभी नहीं आ पाता है. वैसे भी ये फल बड़े स्तर पर जंगलों से तोड़ कर नहीं लाया जा
सकता है. गाँवों के कुछ मेहनती लोग होते हैं जो सुबह-सवेरे जंगल जाकर या अपने
खेतों में उगे हुए पेड़ों से पके फल तोड़ कर टोकरियों में पत्तों के साथ सजा कर
बेचने के लिए मोटर मार्गों के किनारे बैठे मिलते हैं. शुरू में तो ये एक सौ
रूपये प्रति किलो के भाव से भी बिक जाता है. इधर हल्द्वानी के मंगल पड़ाव, नैनीताल,
भवाली, गरमपानी, अल्मोड़ा अड्डे के आस पास, कोसी, कौसानी अल्मोड़ा-बिनसर मार्ग
पर, ग्वालदम से आगे गढ़वाल की तरफ, पूर्व में बागेश्वर, कमेडी देवी व बेरीनाग की तरफ
काफल की बहार होती है, पर ये एक महीने के अन्दर निबट जाता है.
गावों के लोग अपने लिए खुद
काफल तोड़ लाते हैं. यह पृकृति का एक नायाब तोहफा है, जिसे बाल-बृंद, बूढ़े-बुढ़िया
नमक मिला कर चटखारे लेते हुए चूसते चबाते हैं. गुठली भी निगल ली जाती है, पीछे
पानी पी लिया जाये तो दस्तावर भी हो जाता है.
कच्चे काफलों की चटनी भी
बहुत स्वादिष्ट बनती है. लोग किसी तरह पहाड़ से जुड़े रहे हैं, उन्हें काफल का
नाम आते ही मुँह मे पानी आ जाता है. ये फल है ही इस तरह का.
यहाँ पहाड़ों में एक पक्षी,
वसंत ऋतु आते ही ‘काफल पाको’ जैसे मिलते जुलते श्वरों
का ऊंची आवाज में कोयल की तरह गान करता रहता है. पुराने लोगों ने इस पर कई किंबदतियाँ जोड़ रखी है, लेकिन इस पक्षी का हमारे काफल से कोई लेना देना नहीं है. हाँ
अनेक प्रजातियों की चिड़ियों का काफल से गहरा सम्बन्ध है. चिडियाँ काफल का पका हुआ
मीठा फल, गुठली सहित निगल जाती हैं और
गुठली उसके पूरे पाचनतंत्र से गुजरते हुए लगभग ३६ घंटों तक शरीर की गर्मी
प्राप्त करते हुए बीट के साथ बाहर आ जाती है. इस दौरान वह अंकुरित भी हो जाती
है, यदि इसे जमीन सही मिल जाती है तो ये अपनी जड़ें डाल देती है और कई वर्षों में
फलदार पेड़ हो पाता है.
काफल की गुठली बोकर उगाने
के बहुत प्रयास कियी गए लेकिन बोया हुआ बीज उगा नहीं. पिछले वर्षों में देहरादून
की वांनकी प्रयोगशाला में इनक्यूबेटर में बीज को ४० डिग्री तापमान में ३६ घन्टे नमी
के साथ रखा गया तो वह प्रस्फुटित हो गया. खुशी की बात है कि ये रिसर्च सफल हो गयी
है, अब इस तरह उगाए गए पौधे मनचाहे जगहों पर रोपे जा सकते हैं.
काफल के बारे में एक लतीफा यह है कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का एक पर्यटक जब इन्ही दिनों उत्तराखंड आया और
उसने टोकरे में काफल बिकते हुए पहली बार देखे तो बेचने वाले से पूछ लिया, “भईयन,
ई का फल है?”
भईयन बोला. “काफल
है.”
उसने दुबारा पूछा तो भईयन
फिर बोला “काफल है.”
इस पर पर्यटक ने सोचा कि फल
वाला मेरी बोली का मजाक बना रहा है. वह गुस्से में झगड़े को तैयार हो गया, लेकिन
बीच बचाव करने वालों ने जब उसको बताया कि ये फल काफल कहलाता है तो वह मुस्कुराए
बिना नहीं रह सका.
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काफल की गुठली बोकर उगाने के बहुत प्रयास कियी गए लेकिन बोया हुआ बीज उगा नहीं. पिछले वर्षों में देहरादून की वांनकी प्रयोगशाला में इनक्यूबेटर में बीज को ४० डिग्री तापमान में ३६ घन्टे नमी के साथ रखा गया तो वह प्रस्फुटित हो गया. खुशी की बात है कि ये रिसर्च सफल हो गयी है, अब इस तरह उगाए गए पौधे मनचाहे जगहों पर रोपे जा सकते हैं.
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रयास .... बेहतर जानकारी ....इस तरह के प्रयास निश्चित रूप से एक नया प्राकृतिक वातावरण तैयार करने में सशक्त भूमिका निभायेंगे ....ऐसी कई प्राकृतिक औषधियाँ हैं जिन पर इस तरह के शोध करके उनके प्राकृतिक गुणों का लाभ लिया जा सकता है ....!
sundar prastuti !
जवाब देंहटाएंhum bhi kafal se parichit ho gye !
चलिए काफल के सफल प्रयोग शाला संस्करण के बाद आने वाली पीढ़ी भी इस से परिचित हो सकेगी .
जवाब देंहटाएंकाश ! इसी तरह से उगने वाले हमारी संस्कृति के परिचायक पीपल को भी प्रयोग शाला में उगाया जाये .
ज्ञानप्रद प्रस्तुति !
sundar prastuti ! abhar.
जवाब देंहटाएंkaafal ki yaad aa gayi. i always wondered why we couldn't grow it. Thanks for sharing this information.
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