शुक्रवार, 8 जून 2012

अगर हम चौपाये होते!


ये काँटों की बाडें,
सीमेंट और पत्थर की दीवारें,
ये मंदिर-मस्जिद व गुरुद्वारे
पैदा ही ना होते
अगर हम चौपाये होते.

ये मिसाईल,
ये अणुबम,
संहार और गम,
झूठा ईमान-धरम,
बाईबिल-गीता औ कुरआन की कसम
सुनने को ना मिलते-
अगर हम चौपाये होते.

ये नामकरण,
खोखले आवरण,
कर्जों का भरण,
जीते जी मरण
किताबों में ना होते
अगर हम चौपाये होते.

ना रुपया,
ना खुफिया,
ना डालर,
ना सोना,
कुछ भी तो ना होते
अगर हम चौपाये होते.

मगर नहीं है गम
लेकर जनम
ना हुए हम
गधी के बलम.
पर आती है शरम
अपने गुणों को हम
बेचारों पर थोपते हैं बेरहम.

अच्छे ही होते
अगर हम चौपाये होते.
     *** 

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