ये काँटों की बाडें,
सीमेंट और पत्थर की दीवारें,
ये मंदिर-मस्जिद व
गुरुद्वारे 
पैदा ही ना होते 
अगर हम चौपाये होते.
ये मिसाईल,
ये अणुबम,
संहार और गम,
झूठा ईमान-धरम,
बाईबिल-गीता औ कुरआन की कसम
सुनने को ना मिलते-
अगर हम चौपाये होते.
ये नामकरण,
खोखले आवरण,
कर्जों का भरण,
जीते जी मरण 
किताबों में ना होते –
अगर हम चौपाये होते.
ना रुपया,
ना खुफिया,
ना डालर,
ना सोना,
कुछ भी तो ना होते 
अगर हम चौपाये होते.
मगर नहीं है गम 
लेकर जनम 
ना हुए हम –
गधी के बलम.
पर आती है शरम 
अपने गुणों को हम 
बेचारों पर थोपते हैं
बेरहम.
अच्छे ही होते 
अगर हम चौपाये होते.
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