ये कहा जाता है कि जिस समय
प्राणी पैदा होता है उसी क्षण उसकी मृत्यु की कुंडली भी साथ में आ जाती है. सँसार
नश्वर है, चराचर जो भी पैदा होते हैं अपनी अपनी आयु के अनुसार नष्ट भी हो जाते
हैं. शास्त्रों में इस विषय को विस्तार से समझाया गया है, फिर भी प्राणीमात्र का स्वभाव है कि वह मरना
नहीं चाहता है.
वैज्ञानिक सोच वाले बहुत से
लोग कल्पना करते हैं कि भविष्य में कोई ऐसा टानिक, जीन्स अथवा ऊतक विकसित कर
लिया जाएगा, जिससे अमरत्व मिल सकता है. अनेक पौराणिक गल्प हैं, जिनमे अमरत्व प्राप्त
किये हुए मनीषियों का जिक्र है, लेकिन इनकी सच्चाई सत्यता के बिलकुल परे है. उम्रदराज लोगों में मृत्युभय एक स्वाभाविक
प्रक्रिया होती है क्योंकि मरना कोई नहीं चाहता है. एक सुन्दर दृष्टांत इस सम्बन्ध
में याद आ रहा है.
नत्थाराम, एक देहात का रहने
वाला लकड़हारा था. रोज जंगल जाकर एक भारा लकड़ी काट लाता और पास के शहर/कस्बे में बेच आता था. उस पर कोई
पारिवारिक जिम्मेदारी नहीं थी क्योंकि संयोगवश वह जीवनभर कुंवारा ही रह गया. अकेला
था. जब तक ताकत थी, खूब कमाता था और खूब खाता भी था. अब जब उम्र सत्तर के पार हो
चली थी तो बुढ़ापा अपना असर दिखाने लगा था. नत्थाराम का हुलिया कुछ इस प्रकार था: अधफटा
अंगरखा, एक छोटी धोती-लँगोटी, सर पर एक पुरानी चपटी पगड़ी, और पैर में कच्चे चमड़े की
बनी घिसी हुई देसी जूती.
नित्य की ही तरह उसने आज भी
धोकड़े की मोटी मोटी लकड़ियों का गट्ठर बनाया, गर्मी बहुत थी, वह बेहद थका महसूस कर रहा था, फिर एक छायादार पेड़ के नीचे पत्थर
पर बैठ गया. जेब से बीड़ी का बण्डल और माचिस निकाली, एक बीड़ी सुलगाई और लम्बी
सासें लेते हुए कस खींचता रहा. बीच बीच ने अपनी अधपकी दाढ़ी और बेतरतीब बढ़ी हुई
मूछों पर भी हाथ फेरता रहा. ना जाने क्या क्या ‘सोच’
उसके दिमाग में घूमने लगे. पर, थकावट, हताशा और दिशाहीन जीवनयात्रा के
मद्देनज़र उसके मुँह से उच्छ्वास के साथ ये शब्द निकल फूटे, “हे भगवान, अब तो तू मुझे उठा ले.”
उसका वाक्य पूरा होते ही
उसकी कनपट्टी पर एक ठन्डे हाथ का स्पर्श हुआ तो उसने मुड़कर देखा, साक्षात यमराज जी
खड़े थे. वे बोले “हाँ नत्थाराम, कैसे याद किया?”
यमराज को देखकर नत्थाराम के
बदन में झुरझुरी पैदा हुई और वह कुछ सेकिंड में ही पसीना-पसीना हो गया, उसकी
घिग्गी बंध गयी.
यमराज ने कड़क कर फिर बोला, “बोल,
क्यों बुलाया?”
नत्थाराम आनन-फानन में
बोलने लगा कि “लकड़ी का भारा उठाने में मदद करने वाला कोई नहीं था इसलिए याद किया था.”
उसकी बात सुन कर यमराज समझ
गए कि माजरा क्या है? वे मुस्कुरा दिये.
नत्थाराम फिर बोला, “आइन्दा मैं कभी इसी तरह गलती से भी बुलाऊँ तो आप
नाहक परेशान मत होना, आपको आने की जरूरत नहीं है.”
***
हा हा हा हा, भूलकर भी नहीं बोलना चाहिये यह..
जवाब देंहटाएंsundar !
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २६/६ १२ को राजेश कुमारी द्वारा
जवाब देंहटाएंचर्चामंच पर की जायेगी
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा... नत्था को उठाने आया लकड़ी बोझा उठा चला...
जवाब देंहटाएंसुंदर दृष्टांत....
सादर