उनका पूरा नाम हेमा शर्मा
जनार्दन रेड्डी है. वह जब शिमला में बी.एड. का प्रशिक्षण ले रही थी, तभी उनकी
मुलाक़ात एयर फ़ोर्स के पायलेट स्वर्गीय जनार्दन रेड्डी से हुई. मुलाक़ात प्यार में
बदली और प्यार शादी में. वह हिमांचली लड़की थी और उनका पूरा परिवार रूढ़िवादी व
संकीर्ण विचारों वाला था. फलत: उन्हे विद्रोह करना पड़ा तथा परिवार जनों से
संपर्क-सम्बन्ध पूरी तरह टूट गए.
पायलेट जनार्दन रेड्डी
आंध्र प्रदेश के रिमोट गाँव के रहने वाले थे. उनके परिवार में सभी जने सिर्फ तेलुगु भाषा बोलने समझने वाले थे अत: हेमा की पटरी वहां नहीं बैठी. वह मुम्बई में ही रही.
उनका दुर्भाग्य था कि जनार्दन रेड्डी शादी के पाँच साल बाद एक हवाई दुर्घटना के
शिकार हो गए, तब उनका बेटा सुदर्शन मात्र तीन साल का था.
हेमा बहुत हिम्मतवाली थी
उसे बी.एम.सी. के स्कूल में अध्यापक की नौकरी मिल गयी. उन्होंने अपने
आत्मविश्वास को कायम रखते हुए सुदर्शन को बड़ा किया, पढ़ाया और तमाम संस्कार दिये.
उसको बाप की कमी कभी महसूस नहीं होने दी. जनार्दन रेड्डी की जीवन बीमा पालिसीस व
अन्य विभागीय श्रोतों से जमा पूंजी से हेमा को कभी भी आर्थिक विपन्नता नहीं हुई.
उसने नई मुम्बई में एक बढ़िया फ़्लैट खरीदा,
बेटे को महंगे पब्लिक स्कूलों में पढ़ाते हुए पूना से एम.टेक. करवाया. उनका ये
एकसूत्री कार्यक्रम उनके बुरे दिनों का
सहारा बना. यों जवानी कब कट गयी पता ही नहीं चला.
वह देखने में अतीव सुन्दर
थी और आज भी हैं. उनके रूप लावण्य पर बहुत से परिचितों-अपरिचितों की ललचाई दृष्टि
भी कई बार रही, लेकिन हेमा ने किसी को घास नहीं डाली. मुम्बई का आम जीवन ही इतना
तेज भाग-दौड़ तथा व्यस्तता का रहता है कि पड़ोस तक के बाशिन्दों से कई बार परिचय नहीं
हो पाता है. उनके साथ भी ऐसा ही हुआ. हाँ, सुदर्शन के यार-दोस्त, व सहपाठियों का
उनसे संपर्क होता रहता था. पर ये सब रसमी मुलाक़ात सी ही होती थी.
हेमा चाहती थी कि सुदर्शन
हमेशा उनके पास मुम्बई में ही रहे, चाहे उसको नौकरी में पैसा कम ही मिले, पर
आजकल के लड़कों के तो बड़े बड़े पंख-डेने उगे रहते हैं. सुदर्शन को एक अमरीकी कंपनी
में सर्वेयर के पद की नौकरी मिल गयी और वह अपने काम के सिलसिले में दुनिया के
अनेक देशों के हवाई सर्वेक्षण तथा भू-गर्भ
खनिजों की खोज में घूमने लगा. उसके खून में भी ‘लव-जीन्स’
थे और उसने अपनी सहकर्मी कैटरीना जोब्स से आस्ट्रेलिया में कोर्ट मैरेज करके माँ
को बता दिया कि वह भी अपने बाप से कम नहीं है.
वह कैटरीना को लेकर कई बार
मुम्बई भी आता था और माँ को अपनी सफलता की दास्ताँ सुनाता रहता था. वह माँ से
आस्ट्रेलिया चलने के लिए बहुत जिद करता रहता था, पर माँ ने तो उसी दिन हवाई जहाज
में न बैठने की कसम खा ली थी जिस दिन जनार्दन रेड्डी को हवाई यात्रा लील गयी थी.
वह जब तक नौकरी में रही, अपने
आपको उसी दिनचर्या में व्यस्त रखती रही. वह स्कूल की प्रिंसिपल हो गयी थी इसलिए भी सर्विस
के अन्तिम १०-१५ वर्षों में प्रशासनिक जिम्मेदारियां निभाते हुए उनको अपने निजी
जीवन के बारे में ज्यादा सोचने का वक्त ही नहीं मिला था. पर, अब जब बेटा परदेसी हो
गया है तथा खुद को नौकरी से रिटायरमेंट मिल चुका है, तो वह एकदम अकेली हो गयी हैं,
मानो जैसलमेर के निर्जन रेतीले ‘सम’ में
दिशाहीन खड़ी हो गयी हो.
उनकी एक साथी-सहेली ने सलाह
दी कि समय काटने के लिए उनको किसी सोशल नेटवर्किंग साईट से जुड़ जाना
चाहिए. उसकी सलाह पर ही हेमा मैडम ने फेसबुक में अपना खाता खोल कर अपनी जान पहचान बढ़ानी शुरू कर दी. अपरिचित लोगों को भी मित्रता के निवेदन क्लिक किये. फेसबुक पर
उन्होंने अपनी जवानी की एक खूबसूरत तस्वीर भी लगा दी. वैसे भी वह आज साठ साल की
उम्र पार करने के बाद भी बहुत सुन्दर, सुडौल और आकर्षक हैं. अपने मेकअप और स्मार्ट
लुक पर उन्होंने हमेशा ध्यान रखा. उनको देखकर ऐसा कतई नहीं लगता है कि वे साठा
हो गयी हैं.
फेसबुक पर नए मित्र ढूढने
पर या मित्रों से चैटिंग करने पर उनको अजीब सी गुदगुदी होने लगती थी. लिस्ट में
जवान छोकरे-छापरों के बजाय उम्रदराज श्वेतकेशी पुरुषों को क्लिक करना उनकी पसंद
थी. एक बार एक नौजवान स्टूडेंट राजेन्द्र भट्ट को यों ही गैर इरादतन जब मित्रता
रिक्वेस्ट दी तो उसने मित्रता स्वीकार करने के बजाय मैसेज में जवाब लिखा कि “हे माँ,
अब तुम भगवान का भजन किया करो. फेसबुक में कहाँ फँस रही हो?” यह जवाब
पढ़ कर वे सन्न रह गयी, फिर मुस्कुराई. उनको ये मालूम था कि वास्तव में फेसबुक का
आविष्कारक मार्क जकरबर्ग ने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के आपसी संवाद करने के लिए इस साईट की संकल्पना
की थी. अब तो अच्छे बुरी सभी लोग करोंडों की संख्या में फेसबुक में आ गए हैं. अनचाहे
फालतू बातो व चित्रों की भीड़ इस साईट पर आ गयी है. कुछ लोग तो अपना राजनैतिक वमन को
भी इसमें उडेलने लगे हैं.
हेमा जनार्दन रेड्डी का
उद्देश्य तो केवल समय काटना व मनोरंजन तक सीमित था अब उनको इसका चस्का जरूर लग गया
था. उन्होंने लगभग ५० मित्र बना डाले हैं. उनसे चैटिंग करती हैं, और एक नई ऊर्जा का
अनुभव करती हैं. ऐसा लगने लगा कि उनके परिवार का दायरा काफी बड़ा हो गया है. जीवन के
अनछुए पल फिर से उमंग और उत्साह पैदा करने लगे हैं.
हिमांचल के सोलन शहर के जनार्दन ठाकुर नाम के एक व्यक्ति से जब हेमा का फेसबुक पर संपर्क हुआ तो उन्हें लगा कि ३६ साल पहले का
जनार्दन रेड्डी उनसे बतिया रहा है.
जनार्दन ठाकुर ६५ वर्षीय रिटायर्ड एक्जेक्यूटिव इंजीनियर हैं. वे विधुर हैं. उनका
जनार्दन नाम देखकर ही हेमा ने मित्रता के लिए क्लिक किया था और जब उनसे लम्बी
लम्बी चैटिंग होने लगी तो अपनेपन का एहसास भी जागने लगा. ठाकुर के सोलन बुलावे पर
मन में एक बड़ा तूफ़ान सा उठा, गुदगुदी हुई, राजेन्द्र भट्ट की टिप्पणी भी उनके दिमाग में कौंधती रही, लेकिन अंत में मन जीत गया, हिलोरें लेने लगा. उन्हें लगा कि शिमला की वादियाँ उन्हें जोर जोर
से पुकार रही हैं. उन्होंने रेल रिजर्वेशन कराया और चल पडी. दिल्ली के बाद जब
शिमला वाली ट्रेन में सवार हुई तो लगा कि वह अपने कल्पना लोक में लौट रही हैं, जहाँ कोई उनका बेसब्री से इन्तजार कर रहा है.
***
कहानी है तो रोचक है, सच है तो और भी रोचक..सही निर्णय..
जवाब देंहटाएंमीता ने जीता हृदय, जो टूटा दो बार |
जवाब देंहटाएंप्रथम मौत साजिश करे, दूजा पुत्र विचार |
दूजा पुत्र विचार, जिया इतिहास दुबारा |
दे जाता वह दर्द, पुत्र पर जीवन वारा |
कंप्यूटर जन-जाल, पुन: दे गया सुबीता |
चमत्कार परनाम, मिला मीता मनमीता ||
सुन्दर और दिलचस्प कहानी ........फेसबुक से फेस २ फेस
जवाब देंहटाएंरोचक कहानी ..... ज़िंदगी के इस दौर में जीने का उत्साह बना रहे
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक कहानी है कहानी क्या मुझे तो कोई सच्ची कहानी लगी है सच्चाई के काफी करीब इस सुन्दर कहानी के लिए आपको बधाई
जवाब देंहटाएंकोई उनका बेसब्री से इन्तजार कर रहा है
जवाब देंहटाएंबहुत दिलचस्प ...
रोचक कहानी, बहुत मजेदार.. ...
जवाब देंहटाएं