अब शहरों में सीमेंट के पक्के मकानों में चिड़ियों की रिहाइश नहीं रही क्योंकि घरों में उनके लिए कोई ‘कोटर’ नहीं छोड़े जाते हैं. हमारे शहर के कुछ पर्यावरण प्रेमियों ने पिछले ‘गौरैय्या दिवस’ पर कुछ खास किस्म के लटकने वाले लकड़ी के डिब्बे घोसलों के लिए लोगों में बांटे थे, पर ये तो एक दस्तूर जैसा था.
गौरैय्या व कबूतर जैसी घरेलू चिडिया इंसानों के नजदीक रह कर सुरक्षित महसूस करती होंगी क्योंकि उनको बस्तियों में चारा-पानी भी उपलब्ध रहता है. कुछ कचरे में तथा कुछ चारा-पानी दान करने वाली प्रवृत्ति के लोगों द्वारा बिखेरा रहता है. मेरी माँ चिड़ियों तथा गिलहरियों को अपने भोजन में से बचाकर कुछ अन्न जरूर डाला करती थी. उनकी मान्यता थी कि ‘क्या पता अगले जन्म में उनको भी बेजुबान पक्षी की योनि में जाना पड़े?’
मेरे वर्तमान घर से लगभग पन्द्रह किलोमीटर उत्तर में कुमाऊं की शिवालिक पर्वत श्रंखला है. नैनीताल शहर भी इसी पर बसा है. बहुत सी छोटी चिडिया सर्दियों में बर्फीली ठण्ड से बचने के लिए नीचे मैदानी हिस्सों में आ जाती हैं. जहाँ भी उनको आश्रय मिलता है वहीं सर्दियाँ काट कर गर्मियां शुरू होते ही पहाड़ों की तरफ लौट जाती हैं. हल्द्वानी में मई-जून में दिन का पारा चालीस के आसपास हो जाता है.
मेरे आँगन की चौहद्दी में मैंने अपनी पसंद के कुछ पौधे लगाए थे, जो अब पेड़ की शक्ल में आ गए हैं, इनमें एक छायादार दालचीनी, एक नीबू, एक संतरा, एक अमरुद का पेड़ है. एक कोने में रात की रानी और मालती की मिलीजुली झाड़ी सी बन गयी है, दो लाल गुलाब की घनी डालियों वाली झुरमुट व एक गुड़हल की डाली. इन सभी वनस्पतियों में तितलियों की खूब आवक रहती है. ये तितलियाँ विशेषकर बसंत के आगमन पर नई कोपलों व पत्तों पर अपने अण्डे छोड़ जाती हैं, जो धीरे धीरे इल्लियां बनती जाती हैं, और पत्तों को चट करने लगती हैं. ये इल्लियां चिड़ियों को खूब आकर्षित करती हैं, और उनका प्रिय भोजन बन जाती हैं. इसलिए बहुत कम इल्लियां तितली बन पाती हैं.
पिछली चार सर्दियों से मैं देखता आ रहा हूँ कि एक रॉबिन चिड़िया का जोड़ा मेरे आँगन में नियमित रूप से हर साल मेहमान बन कर आता रहा है. ये रॉबिन मटमैली सी गौरैय्या के आकार की होती है, बड़ी फुर्तीली पर लड़ोकनी भी. लड़ोकनी इस परिपेक्ष्य में कि किसी और के अपने अहाते मे घुसपैठ होने पर उस पर टूट पड़ती है, भगा कर ही मानती है. मैं और मेरी श्रीमती इनके लिए चारे तथा मिट्टी के चौड़े बर्तन में साफ़ पानी का इंतजाम करके रखते हैं. जब ये आ जाती हैं तो ऐसा लगता है कि जाड़ों की छुट्टियां बिताने हमारे पास आ गई हों. मैंने देखा है कि रात होने पर ये जोड़ा गैरेज के शटर के ऊपर संकरी सी जगह पर दुबक कर बैठ जाता है; दिनभर आंगन में फुदक फुदक कर लुका-छिपी सी किया करता है. मैंने ये भी देखा कि काले चींटों और मच्छरों को पकड़कर खाने में इनको विशेष आनन्द आता है.
पिछले साल इन्होंने मालती की झाड़ी में अपना घोसला बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन किसी परभक्षी पक्षी ने उसे तोड़ डाला. कौवे, बाज व मांसाहारी चिडिया दूसरी चिड़ियों का घोसला टटोलती रहती हैं. सांप भी चिड़ियों का बड़ा दुश्मन है. मेरे घर के नजदीक एक खाली प्लॉट पर पुरानी गोशाला है, जिसमें नेवलों का एक भरापूरा परिवार रहता है. नेवले सापों को मार डालते हैं. खाने की खोज में मेरे आँगन में इन नेवलों का भी आवागमन रहता है इसलिए यहाँ साँपों का खतरा कम रहता है.
पिछले महीने अप्रेल की शुरुआत में मैंने एक दर्दनाक हादसा देखा. हमारे तुलसी के गमले की आड़ में एक बिल्ली बैठी थी, जिसने घात लगाकर रॉबिन चिड़े को दबोच लिया और लेकर चम्पत हो गयी. इस तरह रॉबिन रानी के विधवा होने का हमको बड़ा सदमा लगा क्योंकि ये काण्ड नजरों के सामने हुआ था रोबिन रानी भी इस अप्रत्याशित दुखदाई घटना की प्रत्यक्षदर्शी रही थी. अपनी मन:स्थिति को तो मैं शब्दों में बयान कर सकता हूँ, पर बेचारी रॉबिन रानी पर क्या बीत रही थी, यह सोच सोच कर कई दिनों तक बेचैन रहा.
रॉबिन रानी की सारी चपलता खो गयी. वह डरी हुई रहने लगी. उसे चारा करते हुए भी हम नहीं देख पा रहे थे. इस सँसार में बहुत सी ऐसी बातें हैं, जिन पर हम प्राणियों का कोई वश नहीं होता है; हम केवल संवेदनशील होकर दु:ख या अफ़सोस प्रकट कर पाते हैं. मैं रॉबिन रानी पर पूरी निगरानी रख रहा था. वह अकेली सहमी सहमी रहती थी. वातावरण में गर्मी की आहट आ चुकी थी, उसे अब तक हर वर्ष की तरह पहाड़ों की तरफ लौट जाना चाहिए था पर वह गयी नहीं. ठीक एक महीने के बाद वह उसी स्थान पर मृत पड़ी दिखाई दी, जहाँ पर उसका प्रियतम बिल्ली का निवाला बना था. शायद वह उसकी विरह-वेदना नहीं सह पायी थी.
गौरैय्या व कबूतर जैसी घरेलू चिडिया इंसानों के नजदीक रह कर सुरक्षित महसूस करती होंगी क्योंकि उनको बस्तियों में चारा-पानी भी उपलब्ध रहता है. कुछ कचरे में तथा कुछ चारा-पानी दान करने वाली प्रवृत्ति के लोगों द्वारा बिखेरा रहता है. मेरी माँ चिड़ियों तथा गिलहरियों को अपने भोजन में से बचाकर कुछ अन्न जरूर डाला करती थी. उनकी मान्यता थी कि ‘क्या पता अगले जन्म में उनको भी बेजुबान पक्षी की योनि में जाना पड़े?’
मेरे वर्तमान घर से लगभग पन्द्रह किलोमीटर उत्तर में कुमाऊं की शिवालिक पर्वत श्रंखला है. नैनीताल शहर भी इसी पर बसा है. बहुत सी छोटी चिडिया सर्दियों में बर्फीली ठण्ड से बचने के लिए नीचे मैदानी हिस्सों में आ जाती हैं. जहाँ भी उनको आश्रय मिलता है वहीं सर्दियाँ काट कर गर्मियां शुरू होते ही पहाड़ों की तरफ लौट जाती हैं. हल्द्वानी में मई-जून में दिन का पारा चालीस के आसपास हो जाता है.
मेरे आँगन की चौहद्दी में मैंने अपनी पसंद के कुछ पौधे लगाए थे, जो अब पेड़ की शक्ल में आ गए हैं, इनमें एक छायादार दालचीनी, एक नीबू, एक संतरा, एक अमरुद का पेड़ है. एक कोने में रात की रानी और मालती की मिलीजुली झाड़ी सी बन गयी है, दो लाल गुलाब की घनी डालियों वाली झुरमुट व एक गुड़हल की डाली. इन सभी वनस्पतियों में तितलियों की खूब आवक रहती है. ये तितलियाँ विशेषकर बसंत के आगमन पर नई कोपलों व पत्तों पर अपने अण्डे छोड़ जाती हैं, जो धीरे धीरे इल्लियां बनती जाती हैं, और पत्तों को चट करने लगती हैं. ये इल्लियां चिड़ियों को खूब आकर्षित करती हैं, और उनका प्रिय भोजन बन जाती हैं. इसलिए बहुत कम इल्लियां तितली बन पाती हैं.
पिछली चार सर्दियों से मैं देखता आ रहा हूँ कि एक रॉबिन चिड़िया का जोड़ा मेरे आँगन में नियमित रूप से हर साल मेहमान बन कर आता रहा है. ये रॉबिन मटमैली सी गौरैय्या के आकार की होती है, बड़ी फुर्तीली पर लड़ोकनी भी. लड़ोकनी इस परिपेक्ष्य में कि किसी और के अपने अहाते मे घुसपैठ होने पर उस पर टूट पड़ती है, भगा कर ही मानती है. मैं और मेरी श्रीमती इनके लिए चारे तथा मिट्टी के चौड़े बर्तन में साफ़ पानी का इंतजाम करके रखते हैं. जब ये आ जाती हैं तो ऐसा लगता है कि जाड़ों की छुट्टियां बिताने हमारे पास आ गई हों. मैंने देखा है कि रात होने पर ये जोड़ा गैरेज के शटर के ऊपर संकरी सी जगह पर दुबक कर बैठ जाता है; दिनभर आंगन में फुदक फुदक कर लुका-छिपी सी किया करता है. मैंने ये भी देखा कि काले चींटों और मच्छरों को पकड़कर खाने में इनको विशेष आनन्द आता है.
पिछले साल इन्होंने मालती की झाड़ी में अपना घोसला बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन किसी परभक्षी पक्षी ने उसे तोड़ डाला. कौवे, बाज व मांसाहारी चिडिया दूसरी चिड़ियों का घोसला टटोलती रहती हैं. सांप भी चिड़ियों का बड़ा दुश्मन है. मेरे घर के नजदीक एक खाली प्लॉट पर पुरानी गोशाला है, जिसमें नेवलों का एक भरापूरा परिवार रहता है. नेवले सापों को मार डालते हैं. खाने की खोज में मेरे आँगन में इन नेवलों का भी आवागमन रहता है इसलिए यहाँ साँपों का खतरा कम रहता है.
पिछले महीने अप्रेल की शुरुआत में मैंने एक दर्दनाक हादसा देखा. हमारे तुलसी के गमले की आड़ में एक बिल्ली बैठी थी, जिसने घात लगाकर रॉबिन चिड़े को दबोच लिया और लेकर चम्पत हो गयी. इस तरह रॉबिन रानी के विधवा होने का हमको बड़ा सदमा लगा क्योंकि ये काण्ड नजरों के सामने हुआ था रोबिन रानी भी इस अप्रत्याशित दुखदाई घटना की प्रत्यक्षदर्शी रही थी. अपनी मन:स्थिति को तो मैं शब्दों में बयान कर सकता हूँ, पर बेचारी रॉबिन रानी पर क्या बीत रही थी, यह सोच सोच कर कई दिनों तक बेचैन रहा.
रॉबिन रानी की सारी चपलता खो गयी. वह डरी हुई रहने लगी. उसे चारा करते हुए भी हम नहीं देख पा रहे थे. इस सँसार में बहुत सी ऐसी बातें हैं, जिन पर हम प्राणियों का कोई वश नहीं होता है; हम केवल संवेदनशील होकर दु:ख या अफ़सोस प्रकट कर पाते हैं. मैं रॉबिन रानी पर पूरी निगरानी रख रहा था. वह अकेली सहमी सहमी रहती थी. वातावरण में गर्मी की आहट आ चुकी थी, उसे अब तक हर वर्ष की तरह पहाड़ों की तरफ लौट जाना चाहिए था पर वह गयी नहीं. ठीक एक महीने के बाद वह उसी स्थान पर मृत पड़ी दिखाई दी, जहाँ पर उसका प्रियतम बिल्ली का निवाला बना था. शायद वह उसकी विरह-वेदना नहीं सह पायी थी.
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पक्षि-जगत की सुन्दर मन को छूती कथा.लौकिक संस्कृत का तो पहला छंद ही क्रौंची की व्यथा से प्रेरित था.
जवाब देंहटाएंओह बहुत सुंदर, कम ही ऐसी रचनाएं पढने को मिलती हैं..
जवाब देंहटाएंइस सँसार में बहुत सी ऐसी बातें हैं, जिन पर हम प्राणियों का कोई वश नहीं होता है; हम केवल संवेदनशील होकर दु:ख या अफ़सोस प्रकट कर पाते हैं..............बहुत ही मर्मांतक, सुन्दर, संवेदनापूर्ण संस्मरण।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंउनकी भावानात्मक पीड़ा हम न समझ पायें, पर वे भी हम जैसे ही हैं।
जवाब देंहटाएंओह! हृदय विदारक घटना!
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