मैं भी तुम्हारी तरह ही एक सामाजिक प्राणी हूँ. मैं आकार में बहुत छोटी जरूर हूँ पर मेरा परिवार आपके परिवारों से कई गुना बड़ा होता है. हमारे परिवार की मुखिया एक ‘रानी माँ’ होती है. हम सब चीटियाँ उसकी सेवा में रात-दिन व्यस्त रहती हैं क्योंकि वह हम सब की जननी है. इसके अलावा परिवार के लिए भोजन इकट्ठा करना हमारा एकसूत्री कार्यक्रम होता है. जहाँ कहीं मीठी चीज, पकवान, फल, अनाज के दाने या घी-मक्खन-मिठाई पड़े रहते हैं, हम उसकी तलाश में रहती हैं. भगवान ने हमको ऐसी घ्राण शक्ति दी है कि हम उसे दूर से ही पकड़ लेती हैं और फिर दलबल सहित कतार में पहुँच कर अपनी खाद्य सामग्री को टुकड़े टुकड़े करके अपने घर लेकर आती हैं. अगर सामग्री बड़ी हुई, काटी पीटी नहीं जा सके, तो सब मिलकर उसे उठा कर या घसीट कर खींच लाती हैं.
विश्व भर में हमारी कई प्रजातियां हैं कुछ बड़ी लाल या काली दीखने वाली लड़ाकू, जहरीली प्रजातियां बहुत खतरनाक होती हैं. अधिकांश प्रजातियां मांसाहारी होती हैं. तुमको ये जानकार आश्चर्य होगा कि हमारी विभिन्न प्रजातियों/कुनबों में आपसी दुश्मनी होती है, और मौक़ा मिलते ही सामनेवालों को टुकड़ों में काट कर मार डाला जाता है. यहाँ "माईट इज राईट" वाली बात चलती है.
हमारा घर जमीन की दरारों में बहुत गहरे खोद खोद कर गुफाओं जैसा बनाया जाता है या मोटे मोटे पेड़ों के खोखली जड़-तनों के कोटरों में या बड़े पत्थर-शिलाओं के नीचे अथवा आपके घरों की दीवारों की दरारों में ऐसे स्थान पर होते हैं, जहाँ हमारा परिवार बारिश के पानी से सुरक्षित रह सके. अगर रानी माँ को लगता है कि जगह सुरक्षित नहीं है तो बरसात का पूर्वाभास होते ही स्थान्तरण करना पड़ता है. इस स्थानांतरण में हमें बहुत परेशानी होती है क्योंकि परिवार के सभी अण्डों-बच्चों को को भी उठाकर ले जाना पड़ता है.
अपने बारे में मैं कुछ मजेदार बातें तुमको बताना चाहती हूँ कि हमारे परिवार में केवल मादाएं होती हैं और रानी माँ ‘क्लोनिंग’ के तरीके से हम सब को जन्म देती रहती है. हम चींटियाँ चौबीसों घन्टे जागती रहती हैं. नींद के नाम पर चौबीस घंटों में कई बार चलते चलते झपकी ले लेती हैं. हम जब भी घर के बाहर निकलती हैं तो अपने पीछे एक गन्ध छोडती जाती हैं ताकि वापसी में भटकना नहीं पड़े.
शायद तुमको ये भी ठीक से मालूम नहीं होगा कि हम चीटियाँ ‘द्विज’ होती हैं. द्विज का अर्थ है, दो बार जन्म लेने वाला. हिंदुओं में जिन लोगों को उपनयन संस्कार (जनेऊ) से संस्कारित किया जाता है, वे अपने आपको द्विज कहते हैं. उनका मानना है कि उपनयन संस्कार से उनका ज्ञानार्थी के रूप में दूसरा जन्म होता है. लेकिन मैं तुमको बताना चाहती हूँ कि सचमुच के द्विज तो वे हैं जिनको एक ही जीवन में दो बार यानि पहले अण्डे के रूप में और फिर कीट-प्राणी के रूप में जन्म मिलता है. बहुत से कीट, मच्छर, चिड़िया, कछुआ, मगर मच्छ, सरी-सृप व मछली आदि प्राणी पहले अण्डे में फिर समयांतर पर अण्डे से बाहर निकलते हैं.
इसी सन्दर्भ में प्रकृति की अनोखी माया यह भी है कि कंगारू का भ्रूणशिशु माँ के गर्भ से निकल कर बाहर आने के बाद कई महीनों तक माँ के पेट के बाहर बने थैले में विकसित होता है. असल द्विज तो हम होते हैं.
हमारी जनसंख्या के आंकड़े आज तक कोई इकट्ठे नहीं कर पाया है, लेकिन ये बात पक्की है कि विश्व भर में हमारी संख्या इंसानों से ज्यादा ही होगी.
बहुत से परभक्षी, जैसे कि, चिडिया, मेंढक, छिपकलियाँ व चींटीखोर जानवर हमारे बड़े दुश्मन हैं. वे हमारे कुनबे को चट करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. कहते हैं कि हमारे इस छोटे से शरीर से उनको बहुत सारा प्रोटीन मिल जाता है. मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि मनुष्य समाज में ऐसे बहुत से दयावान लोग हैं, जो हमारे जीवन के बारे में भी सोचते हैं और आटा-अनाज-चीनी के मिश्रण देकर ज़िंदा रहने में मदद करते हैं.
विश्व भर में हमारी कई प्रजातियां हैं कुछ बड़ी लाल या काली दीखने वाली लड़ाकू, जहरीली प्रजातियां बहुत खतरनाक होती हैं. अधिकांश प्रजातियां मांसाहारी होती हैं. तुमको ये जानकार आश्चर्य होगा कि हमारी विभिन्न प्रजातियों/कुनबों में आपसी दुश्मनी होती है, और मौक़ा मिलते ही सामनेवालों को टुकड़ों में काट कर मार डाला जाता है. यहाँ "माईट इज राईट" वाली बात चलती है.
हमारा घर जमीन की दरारों में बहुत गहरे खोद खोद कर गुफाओं जैसा बनाया जाता है या मोटे मोटे पेड़ों के खोखली जड़-तनों के कोटरों में या बड़े पत्थर-शिलाओं के नीचे अथवा आपके घरों की दीवारों की दरारों में ऐसे स्थान पर होते हैं, जहाँ हमारा परिवार बारिश के पानी से सुरक्षित रह सके. अगर रानी माँ को लगता है कि जगह सुरक्षित नहीं है तो बरसात का पूर्वाभास होते ही स्थान्तरण करना पड़ता है. इस स्थानांतरण में हमें बहुत परेशानी होती है क्योंकि परिवार के सभी अण्डों-बच्चों को को भी उठाकर ले जाना पड़ता है.
अपने बारे में मैं कुछ मजेदार बातें तुमको बताना चाहती हूँ कि हमारे परिवार में केवल मादाएं होती हैं और रानी माँ ‘क्लोनिंग’ के तरीके से हम सब को जन्म देती रहती है. हम चींटियाँ चौबीसों घन्टे जागती रहती हैं. नींद के नाम पर चौबीस घंटों में कई बार चलते चलते झपकी ले लेती हैं. हम जब भी घर के बाहर निकलती हैं तो अपने पीछे एक गन्ध छोडती जाती हैं ताकि वापसी में भटकना नहीं पड़े.
शायद तुमको ये भी ठीक से मालूम नहीं होगा कि हम चीटियाँ ‘द्विज’ होती हैं. द्विज का अर्थ है, दो बार जन्म लेने वाला. हिंदुओं में जिन लोगों को उपनयन संस्कार (जनेऊ) से संस्कारित किया जाता है, वे अपने आपको द्विज कहते हैं. उनका मानना है कि उपनयन संस्कार से उनका ज्ञानार्थी के रूप में दूसरा जन्म होता है. लेकिन मैं तुमको बताना चाहती हूँ कि सचमुच के द्विज तो वे हैं जिनको एक ही जीवन में दो बार यानि पहले अण्डे के रूप में और फिर कीट-प्राणी के रूप में जन्म मिलता है. बहुत से कीट, मच्छर, चिड़िया, कछुआ, मगर मच्छ, सरी-सृप व मछली आदि प्राणी पहले अण्डे में फिर समयांतर पर अण्डे से बाहर निकलते हैं.
इसी सन्दर्भ में प्रकृति की अनोखी माया यह भी है कि कंगारू का भ्रूणशिशु माँ के गर्भ से निकल कर बाहर आने के बाद कई महीनों तक माँ के पेट के बाहर बने थैले में विकसित होता है. असल द्विज तो हम होते हैं.
हमारी जनसंख्या के आंकड़े आज तक कोई इकट्ठे नहीं कर पाया है, लेकिन ये बात पक्की है कि विश्व भर में हमारी संख्या इंसानों से ज्यादा ही होगी.
बहुत से परभक्षी, जैसे कि, चिडिया, मेंढक, छिपकलियाँ व चींटीखोर जानवर हमारे बड़े दुश्मन हैं. वे हमारे कुनबे को चट करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. कहते हैं कि हमारे इस छोटे से शरीर से उनको बहुत सारा प्रोटीन मिल जाता है. मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि मनुष्य समाज में ऐसे बहुत से दयावान लोग हैं, जो हमारे जीवन के बारे में भी सोचते हैं और आटा-अनाज-चीनी के मिश्रण देकर ज़िंदा रहने में मदद करते हैं.
आत्म रक्षा के लिए हमारे पास एक ही हथियार होता है कि हम दुश्मन को अपने छोटे से जबड़े से पकड़ कर काट लें, या अगर डंक वाली प्रजाति के हों तो डंक मार कर विरोध कर लेते हैं. दुश्मन को डंक से जलन होती है क्योंकि डंक में जहरीला रसायन होता है. बहुत से लोग यह भी मानते हैं कि चींटी के काटने से हाथी जैसा बड़ा जानवर भी मर जाता है.
जीवन तो नश्वर होता है. जब हमारा अन्तिम समय आता है तो हमारे भी पँख निकल आते हैं और हम उड़कर पञ्च तत्व में विलीन हो जाते है. इति.
जीवन तो नश्वर होता है. जब हमारा अन्तिम समय आता है तो हमारे भी पँख निकल आते हैं और हम उड़कर पञ्च तत्व में विलीन हो जाते है. इति.
***
पानी पानी कर दिया आपने तो...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी मिली
जवाब देंहटाएंछोटी सी चींटी को इतना विस्तार दे दिया आपने, वाह बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंnice sharing. Good one. Plz visit My blogs.
जवाब देंहटाएंचींटी की रोचक आत्मकथा
जवाब देंहटाएंis kahani ko aapne bahut rochak banaa diyaa
जवाब देंहटाएंचींटी की आत्मकथा | वाह! क्या खूब वर्णन किया आपने विकेश भाई | साधू साधू
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत रोचक जानकारी....
जवाब देंहटाएंSir namaste me AAP se ye janana chahta hu ke Citi aapney sey Jada Bajan kese utati he or us me eesa Keya hota he jo ki vo etana Bajan uta sakte hai
जवाब देंहटाएं