रविवार, 12 मई 2013

अशोक महातम्य - १

मेरे घर के पिछवाड़े, दक्षिण की तरफ मेरे पड़ोसी ने कतार में अनेक अशोक वृक्ष लगा रखे हैं. ग्रीष्म के दिनों में तेज गर्म हवाओं का सामना करते हुए इनके सुन्दर हरे पत्तों की सरसराहट बहुत प्यारी लगती है. सुबह सुबह खिड़की पर से इन अशोक वृक्षों के दर्शन से सुखद अनुभूति भी होती है.

हमारी धार्मिक मान्यताएं हैं कि अशोक वृक्ष रोग, शोक और विघ्न हरण करने वाला होता है. आम या अशोक के पत्तों का वन्दनवार लगाने के पीछे यह विचार होता है कि इनके पत्ते नकारात्मक ऊर्जा पर रोक लगाए रखती है. इन सब मान्यताओं के परे भी पर्यावरण को शुद्ध करने में ये घने छायादार वृक्ष अपना महत्वपूर्ण कार्य करते हैं. वास्तुशास्त्र वाले भी घर की चौहद्दी में अशोक वृक्षों की अनुशंसा किया करते हैं.

अशोक के वृक्ष दो तरह के पाए जाते हैं. एक, जो आम-जामुन की तरह फ़ैली हुई शाखाओं के साथ बढ़ते हैं, दूसरा तिकोने पिरामिड की तरह अपनी शाखाओं को लटका कर सीधे सीधे ऊपर को जाते हैं. इनमें अपने मौसम के अनुसार सुनहरे फूल भी आते हैं. कई पुस्तकों में इनको 'हेमापुष्पा' नाम भी दिया गया है. इसे संस्कृत, हिन्दी व मराठी में अशोक, गुजराती में आसोपालव, बँगला में अस्पाल, ग्रीक-लेटिन में सराका इंडिका तथा हमारी अलग अलग प्रांतीय भाषाओं में विभिन्न नामों से पहचाना जाता है.

प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में अशोक के पत्तों व छाल में अनेक औषधीय यौगिक बताए गए हैं, जिनको आधुनिक विज्ञान ने भी प्रमाणित किया है कि इनमें हिमोटाक्सिलिन, टैनिन, कैटोरेस्टॉल और कार्बनिक कैल्शियम होते हैं. अशोकारिष्ट, अशोक के क्वाथ-आशव प्रदर आदि गर्भाशय सम्बन्धी विकारों में बहुत उपयोगी औषधि के रूप में जानी जाती है. प्राय: सभी आयुर्वैदिक फार्मेसीस इसका उत्पादन करती हैं.
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