रविवार, 5 मई 2013

लल्ली

नाम तो उसका लल्ली है, पर भाग्य ऐसा कि दरिद्र माँ-बाप के घर पैदा हुई. अभावों व कुपोषण के साथ पली जवानी की दहलीज में पहुँचने से पहले ही उसके बाप ने अपनी बराबरी वाले खानदान में उसकी शादी भी कर दी. एक टूटी झोपड़ी से निकल कर दूसरी टूटी झोपड़ी में आन पड़ी. पति भी मिला तो ऐसा कि सारे गाँव वाले उसे ‘निखट्टू’ नाम से जानते थे. दिन में कहीं कुली-मजदूरी करता भी था तो शाम होते होते कमाई की कच्ची दारू पी जाता. दारू पीकर तो वह बादशाह हो जाता था, चाहे बीवी भूखी रह जाये. यों लल्ली को कभी खाना नसीब होता था तो कभी सिर्फ उसकी गालियाँ ही खाकर सो जाती. वह अपने इस वातावरण की आदी हो चली थी.

सचमुच हमारे देश में आज भी दूर-दराज के अनेक गाँवों में गरीबों में अति गरीब, पिछडों में अति पिछड़े, बाहरी दुनिया तथा अपने अधिकारों से बेखबर नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं. उन पर बीमारियों और अंधविश्वासों की छाया रहती है. अस्मिता की बात कौन करता है? दो वक्त की सूखी रोटी की चिंता रहती है. भले ही सरकार ने गरीबों के हितार्थ बहुत से नियम-क़ानून बनाए हैं कि ‘कोई भूख से मरने ना पाए,’ ‘मनरेगा के तहत कम से कम एक सौ दिनों की काम मिलने की गारंटी हो, न्यूनतम मजदूरी मिले.’ लेकिन इन अनपढ़-अज्ञानी लोगों के लिए तो ये हवाई बातें हैं. बहुत सारे बिचौलियों से बचकर कर जो मिल जाये उसी में सन्तोष कर लेते हैं.

लल्ली बचपन से ही कुपोषित और बदसूरत थी. मरियल शरीर पर दो बड़ी बड़ी बाहर को निकली हुयी आँखें, मोटे मोटे होंठ लगता है कि वह जरूर थाइराइड से भी पीड़ित होगी, क्योंकि उसके शरीर में बढ़त बिलकुल नहीं थी. इन सारे दोषों मे उस बेचारी का भला क्या कसूर था?

ज्यादा शराब सेवन से उसके पति का लीवर खराब हो गया. पूरे शरीर में सूजन रहने लगी. ऐसे में एक दिन कहीं मुफ्त की मिल गयी थी तो जमकर पीकर आया और सुबह हमेशा के लिए सोता ही मिला. इसमें भी लल्ली का कोई कसूर नहीं था. फिर भी जाहिल गाँव वालों ने इसमें लल्ली के अन्दर विराजमान राक्षसी दोष नजर आने लगे. अब लल्ली के आगे पीछे कोई नहीं रहा, वह अकेले में बैठकर प्रलाप करती और अंधेरी कल्पनाओं में खोई रहती थी.

गाँव के नादान बच्चे उसे ‘पगली’ कह कर चिढ़ा जाते, पर वह कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करती थी. खाने का इंतजाम न हो तो मंदिर की सीढ़ियों पर बैठ जाती, कुछ लोग दातार भाव से, कुछ हिकारत से खाने का प्रसाद/चढ़ावा उसके आँचल में भी फैंक जाते.

एक दिन प्रधान जी की मरखनी भैंस उसके पीछे पड़ गयी और उसने अपने बचाव में एक लकड़ी उठाई तो पूरे गाँव में बात फ़ैल गयी कि ‘लल्ली ने भैंस को नजर लगा दी है, इसलिए भैंस का दूध कम हो गया है’

हद तो तब हो गयी जब पूरे गाँव के बच्चों में खसरा फैल गया,  जिसकी वजह से चार बच्चों की मौत भी हो गयी. गाँव में सनसनी फैला दी गयी कि लल्ली ‘चुड़ैल-डाकिनी’ है. यही बच्चों को खा रही है.

लल्ली की शक्ल डरावनी लगती है तो इसमें उसका क्या कसूर?

शैतान बच्चे उसकी तरफ पत्थर फेंक जाते हैं. कभी कभी उनको डराने के लिए उन्ही पत्थरों को बच्चों की तरफ वापस फेंक देती है तो इसमें सब लोगों को तकलीफ होने लगी. इस बार ग्राम पंचायत में यह विषय जोरशोर से उठाया गया और सब परेशानियों के लिए लल्ली-पगली-डाकिन को जिम्मेदार ठहराया गया. यहाँ तक कि वर्षा देर से होने की तोहमत भी लल्ली के सर आ गई. सिरफिरे लोगों ने लल्ली के साथ बहुत दुर्व्यवहार किये. उसको निर्वस्त्र करके जुलूस निकालने की बात होने लगी. किसी तरह ये खबर स्थानीय अखबार में छप गयी. जिले की महिला डी.एम. ने संज्ञान लेते हुए तुरन्त पुलिस भेजी. गाँव वालों को पाबन्द करते हुए लल्ली को गाँव से लाकर शहर में समाजकल्याण विभाग द्वारा संचालित नारी निकेतन में विशेष संरक्षण में रख दिया.

लल्ली गुमसुम रहती थी. हर अजनबी को शंका की नजर से देखती थी. नारी निकेतन के डॉक्टर ने जब सबके सामने कहा कि “लल्ली पागल नहीं है,” तो लल्ली रो पड़ी क्योंकि उसकी संवेदनाए पूरी तरह ज़िंदा थी. लल्ली की अच्छी देखभाल होने लगी और उसकी हालत बहुत सुधर गयी.
***

3 टिप्‍पणियां:

  1. क्या से क्या कर देते हैं हम अपने ही समाज के लोगों को..कोई संवेदनशील उठा होता गाँव में ही।

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्‍छी ठीकठाक लल्‍ली को गांववाले सच में पागल बना देते यदि उसे नारी निकेतन नहीं भेजा जाता तो। ऐसे हालात मन पर बुरी तरह चोट करते हैं। आपने चिंतनीय विषय पर आलेख लिखा है।

    जवाब देंहटाएं
  3. क्या बात, बहुत बढिया
    आज के समाज की असल तस्वीर तो शायद यही है

    जवाब देंहटाएं