मंगलवार, 11 जून 2013

चक्की का आटा

गोपू उर्फ गोपालकृष्ण सेंट जेवियर में सेवन्थ स्टेंडर्ड में पढ़ता है. आज जब वह स्कूल बस से उतर कर घर की तरफ चला तो पीछे से एक औरत ने अपने साथ चलने वाली दूसरी औरत से कहा, “ये मोटू किस चक्की का आटा खाता होगा?”

गोपू ने मुड़ कर उस औरत की तरफ देखा तो वे दोनों उसके डील-डौल पर हँस रही थी. गोपू को बहुत गुस्सा आया. अगर आस पास कोई डंडा होता तो वह इन चिढ़ाने वालों पर मार ही देता, पर मन मसोस कर रह गया.

दरअसल गोपू खाते-पीते घर का बच्चा है. छुटपन से ही दादी और मम्मी दोनों उसके पीछे पड़ी रहती थी कि “और खा... और खा” वजन बढ़ाने के तमाम लज़ीज़ खाने, फास्ट फूड और मिठाइयाँ बड़े प्यार व अनुग्रह के साथ परोसती थी.

जब आठ साल में ही गोपू का साइज उसके उम्र के हिसाब से दुगुना-ड्योढ़ा और वजन ७० किलोग्राम तक पहुँच गया, तब सबको उसकी चिंता सताने लगी. पापा उसे बॉम्बे हॉस्पिटल के बालरोग विशेषज्ञ डॉक्टर गोविल के पास ले गए डॉक्टर ने बताया कि गोपू के शरीर में कुछ हॉर्मोन्स के असंतुलन से मोटापा बढ़ रहा है. उन्होंने थायराइड सहित अनेक खून के जांच भी करवाए. बाद में कुछ महंगी महंगी गोलियाँ खाने को लिख दी. साथ ही उन्होंने खाने पर नियंत्रण करने की हिदायतें भी दी. इस प्रकार गोपू के भोजन पर पूरी निगरानी रखी जाने लगी. उसे भरपेट तसल्ली पूर्वक खाने को नहीं दिया जाने लगा, लेकिन गोपू भी क्या करता, भूख तो मोटे व्यक्ति को ज्यादा ही सताती है. वह चोरी छुपे अपनी तृप्ति कर लेता था .खास तौर पर डॉक्टर ने आइसक्रीम खाने को मना किया था, लेकिन आइसक्रीम में गोपू की जान बसती थी, मौक़ा मिलते ही आइसक्रीम भी खा लेता था.

मोटापे का क्या है, दुनिया की एक चौथाई आबादी मोटापे से ग्रस्त है. "सब टी.वी." पर "मेहता जी का उल्टा चश्मा" धारावाहिक में डॉ. हाथी और उनके बेटे छोटे हाथी के पात्रों को देख कर गोपू को बड़ी तसल्ली मिलती थी कि वह अकेला नहीं है. जापानी सूमो पहलवान तो अच्छी खासी कुश्ती लड़ लेते हैं. वह सोचता था, "पता नहीं दुनिया के लोगों को क्या तकलीफ है उसके ऊपर राह चलते फब्ती कस कर जाते हैं. जैसे कि उनके बाप का माल खाया हो." गोपू ने इंगलैंड के भूतपूर्व लोकप्रिय प्रधानमंत्री विन्स्टन चर्चिल के विषय में पढ़ा था. उनकी स्थूल काया की फोटो भी देखी थी. इतने बड़े महापुरुष गोलगप्पा हो सकते हैं, तो क्यों चिंता की जाये? 

पर इस मोटापे से उसे कभी कभी बहुत तकलीफ होती थी. थकान जल्दी होती थी, दम फूलने लगता था, और भूख भी बहुत लगती थी. और चौड़े चौड़े कपड़े पहनने पड़ते थे. सबसे बड़ा दुःख यह था कि देखने वाले अजूबे की तरह देखते थे, जैसे कि वह चिड़ियाघर का कोई प्राणी हो.

आज इस औरत के ‘बोल’ पर और उनकी खी-खी की हंसी ने गोपू के अन्दर तक चोट पहुंचा दी. वह घर पहुँचते ही धम्म से सोफे पर पसर गया. पापा ने उसे देखा तो पूछा, “क्या बात है बेटा, ज्यादा थकान हो गयी है क्या?”

गोपू ने गंभीरता से पापा से कहा, "पापा, ये चक्की का आटा क्या होता है? एक औरत अभी रास्ते में मेरी मजाक बना रही थी कि 'कौन सी चक्की का आटा खाता है'?"

मुम्बई महानगर के पैडर रोड इलाके में रहने वाले बच्चे ने कभी आटा चक्की देखी भी नहीं थी, और न उसे चक्की के बारे में कोई जानकारी थी. पापा गोपू की बात का मतलब समझ गए और उसको सान्त्वना देने के लिए उन्होंने एक मजेदार भाषण दे डाला, “क्या तुमको मालूम है कि आग के आविष्कार के बाद आदि मानव ने जो बड़ा महत्वपूर्ण आविष्कार किया वह ‘ह्वील’ यानि पहिया था जिसके आधार पर दूसरे तमाम छोटे-बड़े यंत्र बने और सुधरते रहे. अगर पहिये का आविष्कार नहीं होता तो आज की मशीनें कहाँ चल पाती? 

"उस जमाने में बिजली नहीं होती थी. सब काम हाथों से करना पड़ता था. अनाज पीसने के लिए पत्थरों का चाक बना जिसमें कठोर सैंडस्टोन के दो गोल पाट होते हैं. ऊपर वाले पाट के बीच में एक छेद द्वारा अनाज डाला जाता है और ऊपर की पाट को एक हैंडल से गोल घुमाया जाता है. तब आटा बाहर निकलता है. अब तो बिजली से चलने वाली चक्कियों में अनाज पीसा जाता है. हमारे देश के दूर दराज गाँवों में आज भी हाथ से घुमाई जाने वाली चक्कियां चलती हैं. पहाड़ों में पानी की धारा से फिरकनी घुमाकर ‘घराट’ चक्कियां अनाज पीसा करती थी, अब ये सिर्फ इतिहास की बातें होती जा रही हैं. आजकल बड़ी बड़ी मिलों में स्वचालित मशीनें अनाज को साफ़ करती हैं, धोती हैं, सुखाती हैं, और फिर पीस कर पैक करती हैं. वह आटा बाजार में आने के बाद हम खाया करते हैं.

"'कौन सी चक्की का आटा खाते हो?' यह तो एक मुहावरा है, जो लोग मोटे व्यक्ति को देख कर अकसर बोला करते हैं. इसमें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. तुम अपनी डाईट पर खुद कंट्रोल रखो. हाई कैलोरी और फैट्स वाले फास्ट फूड से बचो. खूब सलाद खाया करो, जरूरी व्यायाम किया करो. स्वस्थ रहने की दिनचर्या खुद तय करो.”

पापा ने आगे यह भी कहा, “तनाव में बिलकुल नहीं आना चाहिए. बहुत से मोटे थुलथुल लोग खुद पर ही हँस लेते है. हंसना बहुत बदी नियामत है, जिससे उनका स्नायुमंडल दुरुस्त रहता है.”

गोपू ने पापा के बातों का खूब मजा लिया और उसकी सारी परेशानी दूर हो गयी. खाने के मामले में आत्मसंयम करने की ठान कर हँसते हुए डाइनिंग टेबल पर परिवार के साथ बैठ गया, जहाँ सब लोग एक ही चक्की का आटा खा रहे थे.
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2 टिप्‍पणियां:

  1. आनन्द में रहना चाहिये, जितना कम हो पाये उतने में ही आनन्द रहे।

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  2. सार्थक बातें, सार्थक सोच
    बहुत सुंदर

    मीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
    हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
    http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html

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