शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

विक्रम-उपक्रम


एक छोटी सी कहानी मैंने कभी अपने बचपन में पढ़ी या सुनी थी कि दो चींटियों की अचानक एक दिन मुलाक़ात हो गयी, एक नमक के पहाड़ पर रहती थी और दूसरी का बसेरा शक्कर के पहाड़ पर था. नमक के पहाड़ वाली ने अपनी दुनिया की बहुत तारीफ़ की तो शक्कर वाली ने कहा कि तुम एक बार मेरे लोक में आकर भी देखो और अनुभव करो कि क्या फर्क है? इस प्रकार नमक वाली ने जब शक्कर लोक में आकर देखा-भाला तो उसे विस्मय पूर्वक लगा कि अपनी सीमाओं से बाहर भी दुनिया बहुत प्यारी, सुन्दर और ज्यादा रसीली-मधुर है, यद्यपि अपने घर सँसार की कोई तुलना नहीं हो सकती है चाहे वह नमक का खुरदुरा पहाड़ ही क्यों ना हो.

ठीक इसी प्रकार का अनुभव मुझे तब हुआ है जब मैं मध्य प्रदेश के नीमच जिले के विक्रम सीमेंट उद्योग की ऑफीसर्स कालोनी में अपने मित्र के पास पहुँचा. प्रथम दृष्टया ऐसा लगा कि मैं भारत में नहीं, अपितु कहीं यूरोपीय देश में हूँ. साफ़-सुथरी सड़कें, पुष्पाच्छादित क्यारियां, सर्वत्र हरे भरे पेड़; जिनमें अमलतास, शिरीष, मौलिश्री, पीपल, बट, अशोक, नीम, जामुन, बबूल, बाटल पाम, आम, नारियल, आँवला, कचनार, कनेर, और गुड़हल आदि अनेकों प्रजातियों के पेड़ हैं. सड़क के किनारे करीने से कटे हुए रंग बिरंगे पुष्पित बोगनविलिया की कतार, हरे व पीले मेहंदी की बाड़ तथा सड़क के किनारों पर लाल सफ़ेद रंगों से की गयी सजावट बहुत अच्छी लगती है. मुख्य सड़क से निकलने वाली उप शाखाओं के ऐतिहासिक या पौराणिक नायकों के नाम से लिखे गए शिलापट्ट अशोक मार्ग, कालीदास पथ, महावीर पथ, टैगोर पथ, दधीचि पथ, सिद्धार्थ पथ, कौटल्य पथ, मानस पथ, नीति पथ, मीरा मार्ग आदि नाम स्वप्नदृष्टा के सनातन व ऐतिहासिक बोध का परिचायक है.

सड़क के किनारे ट्रैफिक चिन्हों, जेब्रा मार्कों के अलावा कई निषेधात्मक आदेश, जैसे : 'परिसर में तम्बाकू व गुटखे का इस्तेमाल वर्जित है, यहाँ कूड़ा डालना निषिद्ध है जैसे अनुशासनात्मक आलेख दर्शक को अपील करती हैं. कालोनी की देखरेख व नियमित मैंटेनेंस में व्यस्त अनेक कर्मचारी पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता के परिचायक हैं.

स्कूल, अस्पताल, क्लब, अतिथिगृह, खेल के मैदान, बच्चों का पार्क, कोणार्क पार्क, एक्यू पार्क. सद्यस्नाता स्त्री मूर्ति, हाथी-घोड़े-ऊँट के बुत, मीराबाई का तम्बूरे सहित मूर्ति और बहुविध बने आधुनिक सुविधाओं युक्त घर, सब जैसे गागर में सागर हों.

आवासीय कालोनी के शीर्ष पर बना भव्य राधा-कृष्ण मंदिर, दूर से ऐसा लगा जैसे मथुरा-बृंदावन के वासुदेव की लीलाविहार का ही कोई परिदृश्य हो. बहुत बड़े इलाके में संगमरमर की पट्टियों व स्तंभों की नयनाभिराम सजावट,
मंदिर परिसर में बड़े चौकोर कुंडों में बहुविध प्रकाशित फव्वारे जिन्हें कृष्ण चरित से सम्बंधित घटनाओं से नामांकित किया गया है. चारों ओर दूर्वाच्छादित लैंडस्केप व सुन्दर फूलों से सजी क्यारियां मनोहारी हैं. मंदिर परिसर में ही दो छोटे पेड़ रुद्राक्ष के भी पल्लवित हैं. वहीं मंदिर परिसर से लगा हुआ कल्याणकारी महादेव भगवान शिव का तथा उन्हीं के अवतार बजरंग बली हनुमान जी का सुन्दर आराधना स्थल, हवन कुण्ड आदि कुल मिला कर एक स्वर्गीय अनुभूति.

मैं स्वयं भी सीमेंट से जुड़ा हुआ व्यक्ति हूँ. ए.सी.सी. में कार्यरत रहते हुए मैंने रचनाधर्मी दृष्टि से देखकर अनेक लेख व आर्टीकल सीमेंट फैक्ट्रियों के पर्यावरण सम्बन्धी विषयों पर लिखे हैं पर यहाँ मैं मोहित हूँ और अभिभूत हूँ कि बिड़ला जी ने सीमेंट उद्योग के साथ-साथ सनातन धर्म की मान्यताओं की स्थापना करके जनमानस को सद् मार्ग दिखाने का पुनीत कार्य किया है. वैसे बिड़ला जी ने जहाँ भी उद्योग लगाए हैं वहाँ आस्था के स्थल भी बनाए हैं, जिनकी कोई गिनती नहीं है. पर विक्रम सीमेंट का ये बिंदु अनूठा व अतिउत्तम लगता है.

यहाँ नीमच की ये उपजाऊ धरती जो कभी अनाज के साथ अफीम उगलती थी अब अल्ट्राटेक नाम से सीमेंट उगल रही है, जो राष्ट्र निर्माण में आज एक प्रमुख नाम है.
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1 टिप्पणी:

  1. परिवर्तन/ विकाश की ऐसी ही उम्मीद हम 'भारत के कोने कोने तक' के लिए करते हैं.

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