अधबचे खपरेलों पर उगी हुई घास
गुज़री हुई झंझाओं को मुँह फाड़ कर
न भी कहे
कह भी न सके,
दूसरी मंजिल से त्याज्य पनियारी
अपने चेचक से दागों को भर ही सके
न भी बहे
बह भी न सके,
बृद्ध-बीमार गंधर्व की उलझती टांगें
अब केवल एक किलो भार भर
न भी सहे
सह भी न सके,
रहे मन में उलझा मेरा मीत सलोना
चाहे दूर क्षितिज या सत्य-प्रकृति
न भी रहे
रह भी न सके.
***
I am speechless. Bohot ki adbhut kavita hai
जवाब देंहटाएंबृद्ध-बीमार गंधर्व
जवाब देंहटाएंkitna sateek, dil ki aawaj....sadar..
gahre, satik bhaav... sundar.
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