गुरुवार, 7 जून 2012

बड़ी माई

गलती किस इन्सान से नहीं होती? पर चम्पा से तो ऐसी भारी गलती हुई थी जिसका कोई प्रायश्चित भी नहीं था. उसका पति धन कमाने के लिए एक ठेकेदार के साथ ओमान चला गया था और तीन सालों से लौटा नहीं था. सास-ससुर ने बहुत बुरी तरह प्रताड़ित किया, मारापीटा भी, मायके वालों को बुला लिया उनके सामने भी अपमानित किया क्योंकि चम्पा के नादानी व अंधी जवानी के जोश में गाँव के ही किसी लड़के से शारीरिक सम्बन्ध बना कर गर्भ धारण कर लिया था. बहुत दिनों तक तो जलोदर का रोग बता कर वैद्य जी का ईलाज चलता रहा, लेकिन एक दिन पोल खुलनी ही थी. बच्चा पैदा हुआ, कोहराम मच गया. चम्पा के ससुर ने बच्चे का गला दबाकर तुरन्त मार डाला. बच्चे के बाप के बारे में बहुत धमका धमका कर पूछा गया पर चम्पा ने कतई मुंह नहीं खोला.

मिल्ट गाँव में खुसर-पुसर भी खूब हुई, पर हीरानंद यानि चम्पा का ससुर दबंग किस्म का आदमी था. बात सड़क पर तो नहीं आई, लेकिन घर के अन्दर जो क्रियाकलाप हुए उसके बाद चम्पा जरूर सड़क पर आ गयी. ससुरालियों द्वारा बुरी तरह अपमानित किये जाने पर सगे भाई ने भी उसे अपने साथ ले जाने के लिए मना कर दिया. बेसहारा, बेहद कमजोर, अनपढ़ चम्पा निरुद्देश्य शमशान घाट की तरफ लड़खड़ाते हुए चल दी. ये संयोग ही था कि शमशान घाट वाले मठ-मंदिर के लाल लंगोट वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध सन्यासी बाबा रास्ते में मिल गए. वे भी आगे बढ़ गए थे, पर ना जाने उनकी समझ में क्या आया, वे वापस लौटे और चम्पा से कुशल-बात पूछने लगे. चम्पा के पास सिसकने के अलावा कोई उत्तर नहीं था.

बाबा को दया आई और उसे अपने साथ मठ में लिवा ले गये. जहाँ पहले से ही दो जोगनियां (एक परिवार द्वारा किन्ही कारणों से परित्यक्ता व दूसरी समय समाज की सताई हुई बाल विधवा) मौजूद थी.

मठ-मंदिर के चारों तरफ काफी जमीन बाबा के गुरु तथा उनके भी गुरुओं ने उस जमाने से घेर रखी है, जब लोग जमीन का कोई महत्व नहीं समझते थे. अब शमशान के पास ये स्थान एक नखलिस्तान की तरह विकसित हो गया है. मंदिर में नियमित घन्टे-घंटियाँ बजती हैं, अनेक छायादार फल-फूलों का बगीचा बन गया था. बहरहाल यहाँ चम्पा को एक आश्रय मिल गया.

हीरानंद को जब मालूम हुआ कि उसकी कुल्टा बहू को बाबा ने शरण दे रखी है, तो उसने बाबा से बहुत भला-बुरा कहा, धमकी भी दी, लेकिन बाबा बड़े अक्खड़ स्वभाव के थे. चिमटा लेकर उस पर टूट पड़े. हीरानंद ने भाग कर जान बचाई.

थोड़ा स्वस्थ हो जाने पर चम्पा भी अपनी दोनों जोगिन साथिनों के साथ गेरुवे वस्त्र धारण करके दूर दूर के गाँवों में जाकर भिक्षा मांगने के लिए जाने लगी. ये ही उसका नित्यक्रम हो गया.

नजदीक के गांव मे विशेषकर हीरानंद की बिरादरी व रिश्तेदारी में इस काण्ड की खूब चटाखेदार चर्चाएँ  हुई, पर मामला धीरे धीरे शांत हो गया.

इस बात को गुजरे लगभग पचास वर्ष हो चुके हैं. इस बीच सरयू और गोमती में लाखों टन पानी बह चुका है. आम लोग इस प्रकरण को भूल चुके हैं. गाँव की नौजवान पीढ़ी रोजगार तथा सुविधाओं की तलाश में पहाड़ से मैदानी इलाकों की तरफ पलायन करते चले गए हैं. खुद हीरानंद जो अब इस सँसार में नहीं है, परिवार सहित तराई-भाबर में जा बसा था.

लाल लंगोट वाले बाबा की समाधि मठ के आहाते में ही बनी हुई है. मंदिर को भव्य रूप दे दिया गया है. बाबा के दो चेले मठ का कारोबार सम्हाले हुए हैं, पर उन पर हुकुम चलता है, चम्पा, यानि बड़ी माई का.

मठ में अनेक धार्मिक आयोजन होते रहते हैं. चार साल पहले राज्य के समाज कल्याण मन्त्री को आमन्त्रित करके एक नारी-अनाथालय, मठ की जमीन पर बनवा दिया गया था, जहां निराश्रित स्त्रियों को भोजन-कपड़ा उपलब्ध रहता है तथा कुछ घरेलू कार्यों की शिक्षा की व्यवस्था भी की गयी है.
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2 टिप्‍पणियां:

  1. Galti to har insaan se ho jati hai par etni badi saza. Wo to sukar hai sanyasi ka jo unhone sahara diya.Varna n jane kaya hota...

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  2. Who are we to raise fingers at others, when we ourselves have so many faults. I admire the way you write about simple things , sometimes from pahad, which we all can identify with, yet it's present everywhere.
    In the end she hasn't forgotten her lesson, for she will help many others who are in her shoes now. liked it!

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