सोमवार, 15 अक्टूबर 2012

दुश्मनों के नाम

दुनिया में मैं एक ऐसा प्राणी हूँ जिसका कोई दोस्त नहीं है. सब मुझे मारने की फिराक में रहते हैं. इन्सान तो मेरे वंशनाश के तरीके ईजाद करता रहा है, पर मैं कहता हूँ कि मैं आज भी हूँ और कल भी रहूँगा.

एक डॉक्टर ने अपने अस्पताल के बाहर बड़े बड़े शब्दों में बोर्ड पर लिखा है, ‘मुझे अपने भोजन के लिए बीमार लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है. भगवान मुझे क्षमा करें.’ मुझे उसकी यह बात बहुत पसंद आई क्योंकि मेरा भी हाल कुछ ऐसा है कि जिन लोगों से मुझे भोजन मिलता है वे बाद में बीमार हो जाते हैं.

मैं मच्छर हूँ, अनादिकाल से बदनाम हूँ, और इसी कारण मारा जाता हूँ. मेरा कसूर सिर्फ यह है कि मुझे भगवान ने जन्मजात खून का प्यासा बनाया है. इंसानी बच्चों को उनके स्कूलों में पढ़ाया जाता है कि वे मुझसे किस प्रकार बचें. कालेजों में रिसर्च की जाती है कि मेरा सर्वनाश कैसे किया जा सकता है. मैं एक बहुत छोटा सा प्राणी जिसे मलेरिया, फाइलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, व मस्तिष्क ज्वर के वाहक के रूप में बदनाम किया जाता है, ज़रा सोचिये, मेरे थूक-लार में अगर पैरासाईट रहते हैं तो इसमें मेरा क्या कसूर? मैं तो जब पापी पेट भरने के लिए किसी का खून चूसने के लिए अपनी नाजुक सी बाल से भी बारीक सूंड प्यार से खुली चमड़ी में अन्दर डालता हूँ मेरी कोशिश यही रहती है कि मेरे मेजबान को मालूम न हो. भला भोजन देने वाले का बुरा कौन सोच सकता है?

पहले समय में मलेरिया के ज्वर को, चाहे वह तिजारा हो, चौथ हो, या रोज ही आता हो, लोग उसे भूत-प्रेत की महिमा मानते थे. माल+एयर यानि ‘बुरी हवा ‘ के रूप में ज्वर का नामकरण ‘मलेरिया’ किया गया. तब तक किसी को यह मालूम नहीं था कि यह ‘एनाफिलीज’ मच्छर के काटने से होता है. सर्व प्रथम सन १८८० में एक डॉक्टर ने लाल रक्त कणों में परजीवी यानि पेरासाईट पाकर यह सिद्ध किया कि यह भूत - पिचाशों से नहीं बल्कि मच्छरों के कारण होता है. यह हिसाब भी लगाया गया कि इस बीमारी से करोड़ों लोग हर वर्ष भगवान को प्यारे होते रहते हैं.

अब सवाल यह है कि जो प्राणी पैदा होगा वह मरेगा भी, लेकिन कसूरवार मुझे ठहराया जाता है. मेरे विरुद्ध तरह तरह की दवाएं, इंजेक्शन तथा मुझे मारने के लिए अगरबत्ती, गैस, फॉग, फयूम, व रसायन ईजाद किये गए हैं. इस धन्धे में भी लाखों-करोड़ों लोगों का रोजगार चल रहा है. पर मैं भी ढीठ हूँ. अपना वंशनाश करने की इजाजत कैसे दे सकता हूँ? मैंने खुद को इन दवाओं से इम्यून कर लिया है, यानि अब ये बेअसर हो रही हैं.

दुनियाभर में मलेरिया उन्मूलन जैसे बड़े कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, पर मैं हूँ कि अपनी छोटी सी जान को बचाए रखने के लिए सीलन वाली जगहों, नालों, घरों के कूलरों मे रुके हुए पानी या सड़े पानी वाले तालाबों में छुपकर अपना परिवार बढ़ाता जाता हूँ.

मैं अपने दुश्मनों  को सावधान कर देना चाहता हूँ. अभी तक तो मैं आपके कान पर आकर संगीत की धुन भी छेड़ता था, अब अगर आप लोग मेरे पीछे ही पड़े रहेंगे तो मैं चुपके से आपके बाथरूम या घर के पर्दों में छिप कर 'गोरिल्ला वॉर' करना शुरू कर दूंगा. मच्छरदानियों और जालियों में घुस जाऊंगा.

इसे सलाह समझिए या चेतावनी, अब जब मलेरिया का वैक्सीन (टीका) बन ही गया है तो मेरा वंशनाश करके मुझे म्यूजियम में रखने की व्यवस्था मत कीजिये.
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4 टिप्‍पणियां:

  1. मच्छर की व्यथा कथा पर ईश्वर ने बनाया ही ऐसा है।

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  2. "अब सवाल यह है कि जो प्राणी पैदा होगा वह मरेगा भी, लेकिन कसूरवार मुझे ठहराया जाता है. मेरे विरुद्ध तरह तरह की दवाएं, इंजेक्शन तथा मुझे मारने के लिए अगरबत्ती, गैस, फॉग, फयूम,........(फ्यूम )....... व रसायन ईजाद किये गए हैं. इस धन्धे में भी लाखों-करोड़ों लोगों का रोजगार चल रहा है. पर मैं भी ढीठ हूँ. अपना वंशनाश करने की इजाजत कैसे दे सकता हूँ? मैंने खुद को इन दवाओं से इम्यून कर लिया है, यानि अब ये बेअसर हो रही हैं."

    और लोग भी कितने बे -वकूफ हैं नहीं जानते मुझे भगाने के तमाम उपाय मच्छर भागाओं युक्तियाँ बूम्रांग करतीं हैं पलट वार करतीं हैं इनके श्वसन तंत्र पर .कई की तो सांस उखड़ जाती है .खैर बे -वकूफों की इस दुनिया में कोई कमी नहीं है एक ढूंढो हजार मिलेंगे .


    "दुनियाभर में मलेरिया उन्मूलन जैसे बड़े कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, पर मैं हूँ कि अपनी छोटी सी जान को बचाए रखने के लिए सीलन वाली जगहों, नालों, घरों के कूलरों मे।।।।।(में )......रुके हुए पानी या सड़े पानी वाले तालाबों में छुपकर अपना परिवार बढ़ाता जाता हूँ."

    और भाई साहब किसी गलतफहमी में न रहना वेक्सीन की काट भी है मेरे पास मैं रूप बदलके आऊँगा ,फ्ल्यू वैक्सीन की तरह खिजाऊँगा .बहरूपिया बन आऊँगा .

    अच्छा फिर मिलेंगे बैड टाइम पर .

    बहुत बढ़िया प्रस्तुति रूपक के माध्यम से सेहत के सवालों की सीख दे रहें हैं आप .

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  3. भाई साहब आपके इस आलेख पे पहले भी टिपण्णी कर चुका हूँ 15 अक्टूबर के चर्चा मंच पर भी .कमाल है दोनों जगहसे टिपण्णी गायब है .

    आपने मच्छर की शैतानियों और मच्छर भागाओं उपायों के खिलाफ मच्छर द्वारा प्रतिरोध खड़े करने की तरकीबों पे बहुत व्यंजनात्मक शैली में प्रकाश डाला है .ये तमाम उपाय हमारी हवा को भी गंधाते हैं

    श्वशन तंत्र को भी .बेहतरीन विज्ञान सम्प्रेषण पद्धति आपने ईजाद की है एक दम से आपकी मौलिक और अनुकरणीय .बधाई .

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    लिंक 18-
    विछोह -पुरुषोत्तम पाण्डेय

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