रविवार, 21 अक्टूबर 2012

जूठन का दंश

कई लोग विश्वास करते हैं कि काले सांप-सापिन की आँखों में कैमरे का सा लेंस होता है, अगर जोड़े में से किसी को मार दिया जाता है तो दूसरा अपने मृत साथी को खोजता है और उसकी आँखों में दृश्य देखकर मारने वाले को ढूंढ कर डंस लेता है. इसीलिये कुछ लोगों की मान्यता है कि मरे हुए सांप के मुँह में गोबर डाल देने से या सांप को जला देने से ये खतरा नहीं रहता.

जयंत सिंह को भी यह बात मालूम थी इसलिए वह अपनी जेब में एक पौलीथीन की थैली में थोड़ा सा गोबर और एक चम्मच रख कर ले गया. मेहरबान सिंह जयंत का निकट रिश्तेदार था लेकिन जयंत उसे हमेशा काले सर्प के रूप में देखता था क्योंकि जब जयंत सिंह फ़ौज की नौकरी में था तो उसकी अनुपस्थिति में मेहरबान सिंह ने उसकी पत्नी प्रेमा से सम्बन्ध बना लिए थे. जयंत को इस बात का बहुत पहले अहसास हो गया था, पर कर कुछ नहीं सका, बस घुटता रहा. पत्नी के प्रति उसका व्यवहार आक्रामक हो गया. उसकी मनोदशा विकृत सी हो गयी. वह मेहरबान सिंह की ह्त्या करने का इरादा रखता था पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. जयंत मानता था इसमें बड़ी गलती प्रेमा की भी थी. उसने इस मामले में उसे जान से मारने की धमकी दी तो कातर प्रेमा ने बताया कि मेहरबान सिंह ने उसके साथ बलात्कार किया था, और वह बाद में मजबूर हो गयी थी.

जयंत की जिंदगी में जहर घुल गया था. वह इस कालिख के बोझ को मुश्किल से ढो रहा था. जब भी वह प्रेमा के निकट होता था उसे लगता था कि वह जूठन चाट रहा है, उसका मुँह कड़वे थूक से भर जाता. एक समय था वह प्रेमा के प्यार में पागल रहता था. सुनहरे स्वप्निल सँसार में विचरता था, पर अब उसे कुल्टा-दुश्चरित्रा की बदबूदार छवि दिखती थी. वह उसे मार देने की कल्पना से सिहर उठता. उसे लगता था कि उसका अंत करने के बाद वह अवश्य पकड़ा जाएगा, तब जेल की यातनाएं तो होंगी ही साथ ही दोनों बच्चों का जीवन निराश्रय होकर बर्बाद हो जाएगा. इस प्रकार जयंत खुद को एक जलती लाश की तरह देखने लगा क्योंकि उसे अपने आक्रोश का कोई तुरंत हल नहीं मिल रहा था.

एक दिन मालूम हुआ कि मेहरबान सिंह को ‘ब्रेन स्ट्रोक’ हुआ है और वह अपनी अन्तिम साँसें गिन रहा है. पहचान वाले, मिलने वाले उसकी कुशल पूछने उसके घर जा रहे थे. जयंत सिंह अन्दर ही अन्दर जलते हुए उसके घर गया. एम्बुलेंस १०८ का इन्तजार हो रहा था, वह बिस्तर पर निढाल पड़ा हुआ था. चेहरा निश्तेज, बोलचाल बन्द, आँखें जरूर खुली हुई थी. उस समय कमरे में दो लोग और भी उपस्थित थे. जयंत ने उनसे सविनय निवेदन किया कि थोड़ी देर उसे बीमार के साथ अकेले रहने दिया जाए. तदनुसार वे लोग उठकर बाहर चले गए. जयंत सिंह ने जेब से गोबर की थैली निकाली और चम्मच से मेहरबान सिंह के मुँह में अन्दर तक घुसेड दिया, ऊपर से पच्च से थूक भी दिया तथा मुँह बन्द कर दिया. बोला भी, “जा साले, नरक में जा.” मेहरबान सिंह इस हालत में नहीं था कि प्रतिवाद कर सके.

एम्बुलेंस १०८ के पहुँचने से पहले ही मेहरबान सिंह श्वास अवरोध के कारण मर गया. मृत्योपरांत जब घर वालों ने उसके मुँह में गँगाजल तथा स्वर्णपत्र डालना चाहा तो सबको आश्चर्य हुआ कि उसके मुँह में बदबूदार गोबर भरा हुआ था.

घाट पर जब कच्ची लकड़ियों व टायर के टुकड़ों पर चिता बनी, घासलेट डालकर आग प्रज्वलित की गयी तो जयंत को बहुत सुकून मिल रहा था, पर जूठन की कड़वाहट अभी भी उसके जेहन में बाकी थी.

***

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 22-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1040 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  2. Virendra Kumar SharmaOctober 22, 2012 7:42 PM

    कहानी जूठन का दंश मन कसैला कर गई ..प्रति शोध की विभीत्सता पाठक को भी अपनी चपेट में ले लेती है .

    लिंक 17-
    जूठन का दंश -पुरुषोत्तम पाण्डेय
    ReplyDelete

    जवाब देंहटाएं
  3. यह भारतीय संस्कृति का विकृत पक्ष है....

    जवाब देंहटाएं