रविवार, 7 अक्टूबर 2012

हमारा एम.एल.ए.

रामपुर जिले के खेड़ा गाँव के हरिपाल सिंह एक छोटे काश्तकार थे. उनके दो बेटे थे. बड़ा ओमपाल सिंह बहुत तीव्रबुद्धि और मेहनती था. एम.एससी.करने के बाद मुरादाबाद के एक कॉलेज में लेक्चरर हो गया और छोटा बेटा गगनपाल सिंह उम्र में बड़े से १५ साल छोटा था, पढ़ाई लिखाई से मन चुराता था, बहुत कोशिश करके हाईस्कूल तक पहुँचा लेकिन दसवीं में तीन बार फेल हो जाने से पढ़ाई का रास्ता छोड़ना पड़ा. तब अल्मोड़ा शहर के कोतवाल उसके जीजा जी थे, उनके पास रह कर आख़िरी बार दसवीं की परीक्षा प्राइवेट शिक्षार्थी के रूप में जी.आई.सी. अल्मोड़ा से दिलवाई गयी, पर गगन का दिमाग तो ठस था सभी विषयों में फेल रहा.

वैसे तो गगन का दिमाग शरारतों या बदमाशियों में खूब चलता था, पर विद्या की देवी उससे रूठी ही रही. बड़ा भाई भी उसके भविष्य के बारे में चिंता करता था उसने कई बार समझाते हुए कहा, “गगन, तू पढ़ाई के बारे में कोताही मत किया कर अन्यथा जिंदगी में धक्के खाते फिरेगा. बाद में मत कहना कि भाई ने पढ़ाया नहीं.” लेकिन गगन पर इसका कोई असर नहीं हुआ.

अब जब गगन हाईस्कूल ही पास नहीं कर पाया तो औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान से ‘ब्लैक स्मिथ’ ट्रेड में प्रवेश ले लिया, और इसकी ट्रेनिंग करने लगा. उसी दौरान अखबारों में खबर छपी कि "जी.आई.सी. अल्मोड़ा के रिकॉर्ड रूम में भयंकर आग लगी और सम्पूर्ण पिछला रिकॉर्ड जल कर राख हो गया."

गगन ने मौके का फ़ायदा उठाने के लिए अपनी परीक्षा के कुछ सबूत बताकर, जुगाड़ लगाया और वहाँ से हाईस्कूल पास होने की मार्कशीट निकलवा ली. उन दिनों ज्यादा पूछताछ भी नहीं होती थी. मार्कशीट लेकर उसने जीजा जी की मदद से पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज मुरादाबाद में कॉन्स्टेबल बनने के लिए प्रवेश पा लिया. इस तरह गगनपाल सिंह सिपाही बन गया. १० वर्षों के अंतराल में वह पहले मुंशी फिर हैड कॉन्स्टेबल हुआ, फिर कई थानों का अनुभव प्राप्त करते हुए ऋषिकेश थाने में बतौर दरोगा नियुक्त हो गया. जीजा जी रसूख वाले थे. उनकी असीम कृपा थी, वे हमेशा उसके विभागीय हितों को दूर से ही साधते रहते थे. हालाँकि गगनपाल सिंह अपने कामों मे होशियारी नहीं बरतता था और कई बार लाइन हाजिर भी किया गया, पर सब चलता है सभी तरह के लोग सरकारी नौकरी में निभाए जाते हैं. उसके बारे में रिश्वतखोरी व अपराधियों को संरक्षण देने के अनेक आरोप थे. उच्चाधिकारी उसके काम काज से नाखुश रहते थे.

इस बीच जीजाजी रिटायर हो चुके थे इसलिए अब कोई  गॉडफादर भी नहीं था. गगनपाल खुद मुख्त्यार हो चला था. एक शराब तस्कर का अवैध रूप से ले जाया जा रहा ट्रक उसने पकड़ लिया था और ४लाख रूपये रिश्वत लेकर छोड़ भी दिया. रिपोर्ट खुर्दबुर्द कर दी. लेकिन यह मामला तब सुर्ख़ियों में आ गया जब एक स्थानीय अखबार ने पूरी कहानी मुखपृष्ट पर छाप दी. साख बचाने के लिए आला अफसरों ने  गगनपाल सिंह का स्थानांतरण बुंदेलखंड के उस इलाके में कर दिया जो उन दिनों डाकूप्रबल क्षेत्र था और पुलिस वाले जान-जोखिम के कारण वहाँ जाना कतई पसंद नहीं करते थे.

गगनपाल सिंह छुट्टी की दर्ख़्वास्त दे कर घर बैठ गया. प्रशासन ने सख्ती की, और उसे निलंबित कर दिया गया. कई महीनों तक यह स्थिति बरक़रार रही. इन्क्वायरी में उसे दोषी पाया गया तथा नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया.

इस निर्णय के विरुद्ध उसने अदालत में अपील की पर निचली अदालतों ने उसकी सजा को कम नहीं किया इसलिए वह अपील पर अपील करते हुए उच्च न्यायालय में पहुँचा है और अभी तक अंतिम निर्णय नहीं हो पाया है. उसको उम्मीद है कि एक दिन उसके पक्ष में फैसला आएगा तथा पूरे हर्जे-खर्चे के साथ उसकी वसूली होगी.

वह मजबूरन सपरिवार अपने गाँव लौट आया और एक छोटी सी दूकान खोल कर बैठ गया. जिसमें बीड़ी-सिगरेट, गुटखा-तम्बाकू, चिप्स-नमकीन के पैकेट बेचा करता था. साथ में एक पी.सी.ओ. भी खोल लिया.

अब जब उत्तर प्रदेश का विभाजन करके उत्तराखंड अलग राज्य बना तो बॉर्डर के जिलों में ज्यादा राजनैतिक उथल-पुथल रही. दरोगा जी इसमें सक्रिय हो लिए. पिछले विधान सभा चुनावों में वह वर्तमान रूलिंग पार्टी का टिकट हासिल करने में कामयाब रहे और अच्छे मार्जिन से विजयी भी हो गए. मन्त्री पद तो अभी तक नहीं मिल सका है, हाँ पुलिस डिपार्टमेंट के सीनियर लोग भी वक्त की नजाकत को समझते हुए एम.एल.ए. श्री गगनपाल सिंह जी को सलाम ठोका करते हैं.

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