“जो जहाँ गया है, वहीं रह जाएगा,” घर के दरवाजे पर आकर बड़ी डरावनी कड़कती आवाज में बाबा बोला तो गृहिणी मालती देवी बेहद डर गयी. उसके पति मास्टर आनन्द वल्लभ तब घर पर नहीं थे. दीपावली के दिनों में वह अक्सर अपने यार दोस्तों के साथ तीनपत्ती खेलने व दाँव लगाने में मगन हो जाता था. दो दो, तीन तीन दिनों तक घर नहीं आता था. इस तरह जुए का फड हर वर्ष इस अवसर पर चलता था मानो यह एक सांस्कृतिक विरासत वाला कार्यक्रम हो. जब से पुलिस ने सख्ती की और छापेमारी शुरू की तब से बिलकुल गुप्त स्थान को अड्डा बना दिया है. जुआ खेलना एक लत है क्योंकि लालच में कमाते कम तथा गंवाते ज्यादा हैं. और हार जाना बहुत ज्यादा गम देता है.
बाबा के कठोर वचन सुन कर मालती और घर में मौजूद तीनों छोटे बच्चे सहम कर रह गए. मालिक घर में नहीं था यह समझते हुए वक्त की नजाकत देख कर बाबा ने अपना नाटक और तेज कर दिया. काल भैरव की जयकार करते हुए और अपनी घुँघरू बंधी मोटी, टेढ़ी-मेढ़ी लाठी को बार बार पटक अपनी भिक्षा के लिए हुडदंग किये जा रहा था.
आनन्द वल्लभ एक कॉलेज में प्राध्यापक है और कॉलेज परिसर में निवास है. जहाँ दो-तीन कमरों वाले आवासीय क्वार्टर बने हुए हैं. इस परिसर में छुट्टी के दिनों के अलावा अन्य दिनों में भी दिन भर चहल-पहल, विद्यार्थियों की धमाचौकड़ी रहती है पर जब छुट्टी हो तो सुनसान बियावान जैसा लगने लगता है. क्वार्टर भी कुछ इस ढंग से बने हैं कि एक घर का हल्ला-गुल्ला दूसरे तक मुश्किल पहुँच पाता है.
मालती देवी ने एक कटोरे में चावल व पाँच रूपये बाबा को देने के लिए निकाले, पर बाबा का अंदाज निराला था वह घमकाते हुए बोला, “तुम्हारे ऊपर कालसर्प दौड़ रहा है. अगर बचना है तो पाँच सौ रूपये निकालो.” गृहिणी और भयभीत हो कर अलमारी में से पाँच सौ रुपयों का नोट निकाल कर ले आई और बाबा को समर्पित कर दिया. बाबा डरी हुई औरत की कमजोरी को भांप गया फिर बोला, “कोई नया कपड़ा भी निकाल अन्यथा यहीं भस्म कर दूंगा.”
बेचारी मालती की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था. वह हिप्नोटाइज्ड यानि सम्मोहित जैसी हालत में हो गयी. नया कपड़ा तो घर में था नहीं, मास्टर साहब दीपावली पर पहनने के लिए नया चिकन का कुर्ता-पायजामा लाये थे, सो निकाल कर बाबा को दे दिया. बाबा कुछ और बोलता एक बच्चे ने फट से दरवाजा बन्द कर दिया. बाबा आगे बढ़ गया तब कुछ राहत महसूस की. बाद में उसको लगा कि बाबा उसे धमका कर लूट कर ले गया, पर अब क्या हो सकता था?
दोपहर को जब आनन्द वल्लभ भोजनार्थ घर लौटा तो बहुत थका हारा था. परेशान यों भी था कि इस बार वह दो हजार रूपये हार कर आया था. बच्चों ने बाप के घर में घुसते ही ‘बाबा-प्रकरण’ को चुस्ती से कह सुनाया. आनन्द वल्लभ पहले से ही चोट खाया हुआ था, घर से इस प्रकार रूपये और कपड़े लुटने की बात सुनकर मालती पर आगबबूला हो गया कि ‘उसे दो कौड़ी की अकल नहीं है...बाबा के झांसे में आ गयी...बेवकूफी की भी कोई सीमा होती है. आदि आदि."
मालती के पास अपने बचाव में कोई शब्द नहीं थे वह केवल ये कह सकी कि “मैं बहुत डर गयी थी क्योंकि बाबा कह रहा था कि जो जहाँ है वहीं रह जाएगा.”
इस बार इस परिवार की दीपावली बहुत फीकी रही. अगर मास्टर जी जुआ खेलने नहीं जाते तो शायद यह कांड नहीं होता. कहा गया है:-
जहाँ सुमति तहं संपत्ति नाना, जहाँ कुमति तंह बिपति निदाना.
खैर, यह बात आई-गयी हो गयी. कॉलेज स्टाफ में इस कांड पर खूब चटखारेदार चर्चाएं हुई. कुछ ने लानत-मलानत भी की. आनन्द वल्लभ ने सबक लेते हुए संकल्प किया कि भविष्य में इस बदनामी की जड़ जुएबाजी से दूर रहेंगे.
इस घटना के दो महीने बाद वही ढोंगी बाबा फिर एक दिन सुबह सुबह उनके क्वार्टर के बाहर प्रकट हुआ. पिछली बार तो वह काले कपड़ों के ऊपर लाल वास्कट, माथे पर काला कपड़ा, नीचे काली लुंगी पहन कर आया था, पर इस बार आनन्द वल्लभ की पत्नी द्ववारा प्रदत्त चिकन के कुर्ते में था. मालती ने उसे आवाज से ही पहचान लिया. उस वक्त आनन्द वल्लभ भी घर पर ही था. जब मालती ने बताया कि “यह वही बाबा है,” तो आनन्द वल्लभ ने आव देखा ना ताव, बिना कोई वार्ता किये बाबा की घुँघरू वाली लाठी छीन ली और दे दना दन आठ दस वार कर दिये. बाबा की समझ में देर से आया कि ये उसकी पिछली करतूत का ईनाम है. अन्य अध्यापक भी जुट गए, बाबा की अच्छी फजीहत की गयी. रस्सी से बाँध कर थाने पहुंचाने की तैयारी की जाने लगी.
एक अन्य प्राध्यापक ने कहा, “यह बाबा नहीं है, ठग है, ऐसे लोगों ने सन्यासियों को बदनाम कर रखा है. इसकी तलाशी लो.”
बाबा गिड़गिड़ाते हुए बोला, “आपके रूपये लौटा देता हूँ.” उसने अपनी अंटी में से बहुत से रूपये निकाल कर दिखाए और हाथ जोड़ कर छोड़ देने की गुहार करने लगा.
लोगों का कहना था कि "इसका पूरे इलाके में आतंक है, इसे हल्का नहीं छोड़ना चाहिए. बहरहाल आनन्द वल्लभ ने अपने पाँच सौ रूपये नकद व कपड़ों की कीमत पाँच सौ रूपये, कुल एक हजार रुपये वसूलने के बाद दो चार लात घूंसे लगा कर उसे थाने पहुंचाने का इंतजाम कर दिया. उसके बाद वह ठग बाबा दुबारा आस-पास नहीं दिखाई दिया.
बाबा के कठोर वचन सुन कर मालती और घर में मौजूद तीनों छोटे बच्चे सहम कर रह गए. मालिक घर में नहीं था यह समझते हुए वक्त की नजाकत देख कर बाबा ने अपना नाटक और तेज कर दिया. काल भैरव की जयकार करते हुए और अपनी घुँघरू बंधी मोटी, टेढ़ी-मेढ़ी लाठी को बार बार पटक अपनी भिक्षा के लिए हुडदंग किये जा रहा था.
आनन्द वल्लभ एक कॉलेज में प्राध्यापक है और कॉलेज परिसर में निवास है. जहाँ दो-तीन कमरों वाले आवासीय क्वार्टर बने हुए हैं. इस परिसर में छुट्टी के दिनों के अलावा अन्य दिनों में भी दिन भर चहल-पहल, विद्यार्थियों की धमाचौकड़ी रहती है पर जब छुट्टी हो तो सुनसान बियावान जैसा लगने लगता है. क्वार्टर भी कुछ इस ढंग से बने हैं कि एक घर का हल्ला-गुल्ला दूसरे तक मुश्किल पहुँच पाता है.
मालती देवी ने एक कटोरे में चावल व पाँच रूपये बाबा को देने के लिए निकाले, पर बाबा का अंदाज निराला था वह घमकाते हुए बोला, “तुम्हारे ऊपर कालसर्प दौड़ रहा है. अगर बचना है तो पाँच सौ रूपये निकालो.” गृहिणी और भयभीत हो कर अलमारी में से पाँच सौ रुपयों का नोट निकाल कर ले आई और बाबा को समर्पित कर दिया. बाबा डरी हुई औरत की कमजोरी को भांप गया फिर बोला, “कोई नया कपड़ा भी निकाल अन्यथा यहीं भस्म कर दूंगा.”
बेचारी मालती की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था. वह हिप्नोटाइज्ड यानि सम्मोहित जैसी हालत में हो गयी. नया कपड़ा तो घर में था नहीं, मास्टर साहब दीपावली पर पहनने के लिए नया चिकन का कुर्ता-पायजामा लाये थे, सो निकाल कर बाबा को दे दिया. बाबा कुछ और बोलता एक बच्चे ने फट से दरवाजा बन्द कर दिया. बाबा आगे बढ़ गया तब कुछ राहत महसूस की. बाद में उसको लगा कि बाबा उसे धमका कर लूट कर ले गया, पर अब क्या हो सकता था?
दोपहर को जब आनन्द वल्लभ भोजनार्थ घर लौटा तो बहुत थका हारा था. परेशान यों भी था कि इस बार वह दो हजार रूपये हार कर आया था. बच्चों ने बाप के घर में घुसते ही ‘बाबा-प्रकरण’ को चुस्ती से कह सुनाया. आनन्द वल्लभ पहले से ही चोट खाया हुआ था, घर से इस प्रकार रूपये और कपड़े लुटने की बात सुनकर मालती पर आगबबूला हो गया कि ‘उसे दो कौड़ी की अकल नहीं है...बाबा के झांसे में आ गयी...बेवकूफी की भी कोई सीमा होती है. आदि आदि."
मालती के पास अपने बचाव में कोई शब्द नहीं थे वह केवल ये कह सकी कि “मैं बहुत डर गयी थी क्योंकि बाबा कह रहा था कि जो जहाँ है वहीं रह जाएगा.”
इस बार इस परिवार की दीपावली बहुत फीकी रही. अगर मास्टर जी जुआ खेलने नहीं जाते तो शायद यह कांड नहीं होता. कहा गया है:-
जहाँ सुमति तहं संपत्ति नाना, जहाँ कुमति तंह बिपति निदाना.
खैर, यह बात आई-गयी हो गयी. कॉलेज स्टाफ में इस कांड पर खूब चटखारेदार चर्चाएं हुई. कुछ ने लानत-मलानत भी की. आनन्द वल्लभ ने सबक लेते हुए संकल्प किया कि भविष्य में इस बदनामी की जड़ जुएबाजी से दूर रहेंगे.
इस घटना के दो महीने बाद वही ढोंगी बाबा फिर एक दिन सुबह सुबह उनके क्वार्टर के बाहर प्रकट हुआ. पिछली बार तो वह काले कपड़ों के ऊपर लाल वास्कट, माथे पर काला कपड़ा, नीचे काली लुंगी पहन कर आया था, पर इस बार आनन्द वल्लभ की पत्नी द्ववारा प्रदत्त चिकन के कुर्ते में था. मालती ने उसे आवाज से ही पहचान लिया. उस वक्त आनन्द वल्लभ भी घर पर ही था. जब मालती ने बताया कि “यह वही बाबा है,” तो आनन्द वल्लभ ने आव देखा ना ताव, बिना कोई वार्ता किये बाबा की घुँघरू वाली लाठी छीन ली और दे दना दन आठ दस वार कर दिये. बाबा की समझ में देर से आया कि ये उसकी पिछली करतूत का ईनाम है. अन्य अध्यापक भी जुट गए, बाबा की अच्छी फजीहत की गयी. रस्सी से बाँध कर थाने पहुंचाने की तैयारी की जाने लगी.
एक अन्य प्राध्यापक ने कहा, “यह बाबा नहीं है, ठग है, ऐसे लोगों ने सन्यासियों को बदनाम कर रखा है. इसकी तलाशी लो.”
बाबा गिड़गिड़ाते हुए बोला, “आपके रूपये लौटा देता हूँ.” उसने अपनी अंटी में से बहुत से रूपये निकाल कर दिखाए और हाथ जोड़ कर छोड़ देने की गुहार करने लगा.
लोगों का कहना था कि "इसका पूरे इलाके में आतंक है, इसे हल्का नहीं छोड़ना चाहिए. बहरहाल आनन्द वल्लभ ने अपने पाँच सौ रूपये नकद व कपड़ों की कीमत पाँच सौ रूपये, कुल एक हजार रुपये वसूलने के बाद दो चार लात घूंसे लगा कर उसे थाने पहुंचाने का इंतजाम कर दिया. उसके बाद वह ठग बाबा दुबारा आस-पास नहीं दिखाई दिया.
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सबको अपने स्वभाव के अनुसार बाबा मिल जाते हैं।
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जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ३० /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |
इन्हीं बाबाओं के व्यवहार को देखकर मैने लिखा था ..
जवाब देंहटाएंअपने बचने के लिए कुछ भी करो बाबा ..
पर ज्योतिष और धर्म को यूं बदनाम न करो !!
जैसी करनी तैसी भरनी ...
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