शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

जानवर तो जानवर होते हैं

(१)
डी.एम. साहब अपने एक परिचित एडवोकेट के साथ सिविल लाईन्स में घूमने निकले थे. दिनभर काम की आपाधापी से निजात पाते हुए शाम को उजाला रहते हुए वे सुकून महसूस कर रहे थे.

उन्होंने देखा सामने से सड़क पर एक सांड मस्ती में खरामा खरामा उनकी ओर बढ़ रहा था. डी.एम. साहब तुरन्त दूसरी तरफ रुख करके दूर जा खड़े हो गए और सांड के निकलने का इन्तजार करते रहे. एडवोकेट बोला “सर, ये सांड तो बहुत शरीफ है. किसी को सींग नहीं मारता है फिर आप तो डी.एम. हैं, डरने की कहाँ जरूरत थी?”

डी.एम. साहब ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “तुमने दो मुद्दे उठाये हैं - पहला कि सांड बहुत शरीफ है, सो तुमको मालूम होना चाहिए कि सींग, नाखून व बड़े दांत वाले जानवर कभी भी हिंसक हो सकते हैं. ऐसा शास्त्रों में भी लिखा गया है. दूसरी बात, मेरे डी.एम. होने की है, तो आपको इस बाबत जरूर मालूम है, पर इस सांड को नहीं.”

(२)
डिस्कवरी चैनल द्वारा प्रसारित एनीमल प्लैनेट पर जंगली जानवरों के बारे में कई एपीसोड दिखाए जाते हैं. ह्यूस्टन के एक चिड़ियाघर में शेरों को ट्रेनिंग देने वाले एक ट्रेनर बेधड़क उनके पिंजड़ों के पास जाकर उनको खोलता व बन्द करत था. उसके हाथ में केवल चार फुट का एक डंडा रहता था. तीन अवयस्क शावक उसके साथ खेलते भी थे. ट्रेनर ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि शेर के बच्चे उस पर जानलेवा हमला भी कर सकते है. लेकिन उस दिन एक शावक उस पर टूट पड़ा. देखा देखी अन्य दो शावक भी हिंस्र हो गए. उसके शरीर के माँस को जगह जगह से फाड़ने लगे. उसके डंडे का उन पर कोई असर नहीं हो रहा था. तीनों शावक उसके चीथड़े करने पर तुल गए. उसको अपनी मौत साक्षात नजर आ रही थी. अच्छा हुआ कि शावकों ने उसकी गर्दन पर दांत नहीं  गड़ाए. ट्रेनर सहायता के लिए चिल्लाया भी, थोड़ी दूरी पर एक मजदूर था, जिसने उसकी आवाज सुनी तो आनन फानन में अपना फावड़ा लेकर बाड़े में कूद गया. एक एक फावड़ा शावकों पर मारते ही वे अधमरे ट्रेनर को छोड़कर अपने पिंजड़े में घुस गए.

ट्रेनर को बेहोशी हालत में अस्पताल ले जाया गया. वह बच तो गया, पर अपाहिज हो गया. उसे चलने फिरने लायक होने में पूरे छ: महीने लग गए.

(३) 
स्पेन का राष्ट्रीय खेल बुल फाईटिंग है. वहाँ मरखने सांडों को परेशान करते हुए फाइटर लोग एक लाल कपड़ा दिखा कर चिढ़ाते हैं और वह उसके पीछे पड़ जाता है. खिलाड़ी अपने को बचाता रहता है, पर कई बार वह उसके सीगों की जद में आ ही जाता है और उछाल दिया जाता है या कुचल दिया जाता है तथा बुरी तरह जख्मी हो जाता है. ऐसी दुर्धटनाओं में कई खिलाड़ी अपनी जान भी गंवा बैठते हैं. लेकिन लोग इस हिंसक खेल को छोड़ नहीं पाते हैं. हजारों लोग इस खतरनाक नजारे को मनोरंजन के तौर में देखते हैं.

दर्शक दीर्घा पाँच-छ: फुट ऊँची होती है, ताकि सांड वहाँ नहीं पहुँच सके, पर मैड्रिड में एक बार एक सांड ने ऐसी ऊँची कूद लगाई कि दर्शक दीर्घा में बैठे हुए लोगों को रौंदता हुआ इधर-उधर दौड़ने लगा. अफरा तफरी में अनेक लोगों की जानें गयी तथा अनेक जख्मी हुए, जिनमें छोटे बच्चे व औरतें ज्यादा थी.

(४)
सेना के एक कर्नल साहब की श्रीमती ने अपनी सुरक्षा अथवा शौक के लिए एक जर्मन शेपर्ड नस्ल का कुत्ता पाला. वह बड़ा शरीफ व समझदार लगता था, लेकिन जब भी कर्नल साहब छुट्टी आते तो वह नाखुश सा रहता था और उन पर गुर्राया करता था. कर्नल साहब ने उससे दोस्ती करने की पूरी कोशिश की, पर शायद उसने उनकी दोस्ती कबूल नहीं की.

टाइगर को पूरे घर में खुले घूमने की छूट थी. एक रात वह बेडरूम में कर्नल साहब पर झपट पड़ा और उनकी गर्दन को अपने जबड़े में इतनी जोर से पकड़ डाला कि छटपटाते हुए उनके प्राण पखेरू उड़ गए. वह एक दर्दनाक मौत थी.

***

उपरोक्त चारों दृष्टांत हमें सीख देते हैं कि जानवर तो जानवर होते है, उनसे उचित दूरी बनाए रखनी चाहिए.

***

9 टिप्‍पणियां:

  1. सावधान करती घटनायें..पर ध्यान से देखा जाये तो आदमी भी आदमी होता है..

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  2. जानवर कब हिंसक हो जाएँ पता नहीं रहता ॥सावधानी रखना ज़रूरी है ।

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. बहुत बढ़िया। जानवर और आदमी एकसमान हो गए हैं। इनसे इतर की तलाश है।

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  5. अब क्या ये दिन आगये हैं की जानवर भी इंसानों जैसा हो गया है...
    बहुत बढ़िया आलेख मनोरंजक साथ ही ज्ञानवर्धक....
    धन्यवाद ....

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  6. यहाँ आपने सिर्फ चार उदहारण दिए हैं, आपको कम से कम चार सौ उदहारण ऐसे भी मिल जायेंगे जब जानवरों ने इंसानों कि जान अपनी जान देकर बचाई है. फिलहाल आपके पोस्ट से असहमत हूँ.

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    1. पी.डी. साहब, टिप्पणी के लिए धन्यवाद. पर इसमें आपकी सहमति की कहाँ जरूरत है.?

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    2. डेढ़ वर्ष बाद रिप्लाई करने के लिए आपका भी धन्यवाद. :-)

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