चँचल चित्त पिपीलिका गतिमान
विशाल पीपल वृक्ष पर उर्ध्व
किसी आराध्य की अन्वेषक सी,
अनवरत दौड़ी चली जाती है.
कष्टमय साधना क्यों करती वह
अगर मधु संकलन ही करना था
बिखरे पड़े हैं सर्वत्र मधुमय फल-
विकसित-गंधित-सर्वस्व समर्पित.
भावना छुपी है इस प्रयास में उसके
गहन प्रकृति का अनुबंध सा है ये
उसको केवल मधु कामना नहीं है
चाहना विशेष है विशुद्धि की भी.
***
विशाल पीपल वृक्ष पर उर्ध्व
किसी आराध्य की अन्वेषक सी,
अनवरत दौड़ी चली जाती है.
कष्टमय साधना क्यों करती वह
अगर मधु संकलन ही करना था
बिखरे पड़े हैं सर्वत्र मधुमय फल-
विकसित-गंधित-सर्वस्व समर्पित.
भावना छुपी है इस प्रयास में उसके
गहन प्रकृति का अनुबंध सा है ये
उसको केवल मधु कामना नहीं है
चाहना विशेष है विशुद्धि की भी.
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बहुत ही प्रभावशाली रचना की प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंपिपीलिका की विशेष चाहना प्रेरणादायी है। बहुत सुन्दर पंक्तियां।
जवाब देंहटाएंशुचि कामना बहुत बढियां सर ।
जवाब देंहटाएंसच है, मीठा भी, पवित्र भी
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