रविवार, 7 अप्रैल 2013

शुचि कामना

चँचल चित्त पिपीलिका गतिमान
 विशाल पीपल वृक्ष पर उर्ध्व
  किसी आराध्य की अन्वेषक सी,
    अनवरत दौड़ी चली जाती है.

कष्टमय साधना क्यों करती वह
 अगर मधु संकलन ही करना था
  बिखरे पड़े हैं सर्वत्र मधुमय फल-
   विकसित-गंधित-सर्वस्व समर्पित.

भावना छुपी है इस प्रयास में उसके
 गहन प्रकृति का अनुबंध सा है ये
  उसको केवल मधु कामना नहीं है
   चाहना विशेष है विशुद्धि की भी.

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