शनिवार, 27 अप्रैल 2013

ठलुआ पंचायत - ४

आज की बैठक देश में बढ़ते हुए यौन अपराधों व उन पर काबू पाने में असहाय प्रशासन पर विचार करने के लिए बुलाई गयी थी. उपस्थिति २१ सदस्यों की रही.

न. १ - जैसा कि आप सभी सज्जनों को मीडिया के जरिये मालूम हो रहा है कि पिछले दिसम्बर माह में ‘दामिनी-काण्ड’ के बाद देश के सभी तबकों में इसके विरोध की ज्वाला जलने लगी थी. संसद में कड़े क़ानून की पैरवी हो रही थी, लेकिन अभी भी लगता है कि स्थिति में कोई सुधार के लक्षण नहीं हैं. न्यूज चैनलों की सुर्ख़ियों में हर रोज नए नए यौन अपराधों की चर्चा व दुराचार की खबरें बुरी तरह परोसी जा रही हैं. इन जघन्य समाचारों की आड़ में राजनीतिज्ञ लोग कुर्सी वालों की कुर्सियां खिसकाने की बात पर अड़े हुए हैं तथा आम धारणा बनाई जा रही है कि इन सब के लिए पुलिस वाले भी दोषी हैं. कहा जा रहा है कि ‘उनकी सोच आज भी ब्रिटिशकालीन है. उनके तौर तरीके ठीक नहीं हैं, पुलिस अपराधियों को संरक्षण देती है.’ आप सभी अनुभवी, वरिष्ठ नागरिक हैं, अपने अनुभवों से इसके निदान और समाधान बतावें.

न. ४ - ये पूरी तरह सत्तानशीं लोगों की नाकामी व अयोग्यता का नतीजा है. दिसम्बर काण्ड से कोई बड़ा सबक नहीं लिया गया. अब तक घर घर, गली गली इसका सन्देश पंहुचाया जाना चाहिए था. अपराधजन्य भय आम लोगों की सोच में आ जाना चाहिए था.

न. ११ – पर क्या ये सच नहीं है कि महिलाओं या छोटी बच्चियों के साथ दुराचार करने वाले अधिकतर मामलों में उनके नजदीकी लोग पाए जाते हैं? ऐसे में ये कहना कि केवल सरकार दोषी है ये बात हजम नहीं होती है. पुलिस की कार्यपद्धति अवश्य विचारणीय मुद्दा है.

न. २५ – (जनार्दन जोशी- रिटायर्ड प्रिंसिपल) देश के सामाजिक ढांचे में आज के सिनेमा का अहम रोल रहा है. सेंसर बोर्ड के लोग अपनी पाश्चात्य दृष्टि से देखते हैं, जिसका कुप्रभाव हमारे छोटे छोटे बच्चों में देखा जा सकता है. यौन अपराधों के दृश्य जब बेड-रूम तक में दिखाए जा रहे हों तो अवश्य ये एक सांस्कृतिक हमला है जिसका नतीजा आप देख रहे हैं.

न. ५ – ये तो सही है कि सिनेमा से बच्चे अपराध, गुंडागिरी आदि सीखते हैं, लेकिन पुलिस भी अपराध और अपराधियों को छिपाने में बड़ा रोल अदा करती है. बड़े बड़े अपराधी अदालतों से छूट जाते हैं, क़ानून का भय रहा ही नहीं. केजरीवाल तो कहते हैं कि “संसद व विधान सभाओं में आधे से ज्यादा अपराधी बैठे हैं.” ऐसे में आप लोग सुधार की बातें कर रहे हैं.

न., ४- हमको स्वीकारना होगा कि वर्तमान पीढ़ी संस्कारविहीन हो चली है. नौजवान बच्चे चरित्र को समझते ही नहीं. जब माता-पिता सभी भोगवादी हो चले हैं तो बच्चों से क्यों उम्मीद की जा रही है? नैतिक शिक्षा घर से शुरू होती है और स्कूलों में भी आदर्श जीवन मूल्यों के बारे में बच्चों को घोट घोट कर पिलाया जाना चाहिए.

न. ८ – कोई भी सरकार आये, जब तक ‘ग्रास रूट’ से इस दिशा में काम नहीं होगा, स्थिति और बिगड़ती जायेगी. जहाँ तक पुलिस वालों की बात है पुलिस वाले भी तो हमारे ही परिवारों से आते हैं. जरूरत है कि इनको ट्रेनिंग में लाठी-गोली चलाने के बजाय सेवा और सहायता करने के पाठ ज्यादा पढ़ाए जाएँ. इनके प्रति समाज का नजरिया अपने आप बदलने लगेगा.

न. ६ - यौन अपराध अनंतकाल से होते रहे हैं. पहले उजागर करने में पीड़ित पक्ष भी डरता था, अब मीडिया बहुत सक्रिय हो गया है चटखारे ले कर एक ही समाचार को कई दिनों तक घसीटता है. अब कठोर क़ानून बनते ही उस पर अमल होना चाहिए. दो चार को मृत्युदंड मिलेगा तब भय पैदा होगा.

न. १८ – (गोविन्द भट्ट, रिटायर्ड फार्मासिस्ट) आजकल नगर पचायतों के चुनाव हो रहे हैं. चुनाव लड़ने वाले युद्ध स्तर पर अपनी बात कह रहे हैं. इसी तरह की मुहिम पूरे देश में चलाई जानी चाहिए.

न. १० – तुलसी दास ने रामायण में लिखा है, ‘भय बिन होय न प्रीत’ जब तक अपराधियों को सरेआम सजा नहीं दी जायेगी, इस पर कंट्रोल होने वाला नहीं है. कई अरब देशों में देखिये वहाँ अपराध करने पर तुरतदान सजा मिलती है और अपराधों का ग्राफ बहुत नीचे रहता है.

न. ४ - लेकिन अपना देश लोकतांत्रिक है. यहाँ ना तो राजशाही और ना ही तानाशाही है. कोई भी सजा पूरी न्यायिक प्रक्रिया के बिना नहीं दी जा सकती है.

न. १- मासूम बच्चों पर यौन अत्याचार करने वाले मामलों में स्पेशल अदालतें अधिक से अधिक एक साल में अपना फैसला दें. जजों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए.

न. २२ (आर.एस.राणा, रिटायर्ड आर्मी कर्नल) हर बात के लिए पुलिस को दोष देना ठीक नहीं है. राजनैतिक दबावों में जिस तरफ पुलिस को काम करना पड़ता है, उससे सही व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जा सकती है. होना ये चाहिए कि चौकियों तथा थानों में स्थाई नागरिक कमेटियां बनाई जाएँ, इन कमेटियों को कानूनी मान्यता दी जाये.

न. १- ये जानकार अच्छा लगा कि आप सभी सदस्य इस ज्वलंत समस्या पर चिंतित हैं, हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम जिस समाज में रहते हैं, अपनी हद तक स्वस्थ व निष्कलंक रखने का पूरा प्रयास करें. आज की मीटिंग की पूरी रिपोर्ट सभी जन प्रतिनिधियों और प्रेस को भेजी जायेगी.

धन्यवाद के साथ बैठक समाप्त की गयी.
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3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी पंचायत में बहुत गहरी बातें होती हैं। सम्मिलित विद्वता को उभरने में समय अधिक लगता है, उसमें लोगों की अपनी पूर्वधारणाओं को घुलने में समय लग सकता है, पर एक बार सब अपने विचार तन्तु सम्यक कर लें तो बहुत ही सशक्त मार्ग निकलता।

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  2. :):) यानि कोई सकारात्मक निर्णय नहीं निकाला ।

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  3. तानाशाही शब्‍द मुझे विकल्‍प लग रहा है समस्‍याओं को समाप्‍त करने के लिए। बशर्ते तानाशाह और उसका तन्‍त्र चरित्रवान और सज्‍जन हो।

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