पाप-पुण्य से परे
अप्रभाषित-
और अपरिमित,
विकारी भी है
ये चित्तवृति है.
अदृश्य अनाहत सी
अठखेलियां करती है
किसी को सन्मार्ग –
किसी को भटकाती है
ये चित्तवृति है.
ये मन की चितवन है
बहुत चँचल है
कोई भूल नहीं-
चाहे लगे नहीं अनुकूल कभी,
ये चित्तवृति है.
जीवन को गति मिलती है
तन-मन में स्पंदन से
चाहे-अनचाहे भी
स्पंदन देती है
ये चित्तवृति है.
ये तो सुरताल-
बिना बजाये जो बजती है
ये राग नि:शब्द-
यदाकदा जो छा जाती है.
ये चित्तवृति है.
***
अप्रभाषित-
और अपरिमित,
विकारी भी है
ये चित्तवृति है.
अदृश्य अनाहत सी
अठखेलियां करती है
किसी को सन्मार्ग –
किसी को भटकाती है
ये चित्तवृति है.
ये मन की चितवन है
बहुत चँचल है
कोई भूल नहीं-
चाहे लगे नहीं अनुकूल कभी,
ये चित्तवृति है.
जीवन को गति मिलती है
तन-मन में स्पंदन से
चाहे-अनचाहे भी
स्पंदन देती है
ये चित्तवृति है.
ये तो सुरताल-
बिना बजाये जो बजती है
ये राग नि:शब्द-
यदाकदा जो छा जाती है.
ये चित्तवृति है.
***
पुलक पुलक मन भटकत छिटकत
जवाब देंहटाएंबढिया, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंचाहे-अनचाहे भी
जवाब देंहटाएंस्पंदन देती है
ये चित्तवृति है...........किवाड़ के भीतरी किवाड़ को खोल दिया आपने।
जवाब देंहटाएंये तो सुरताल-
बिना बजाये जो बजती है
ये राग नि:शब्द-
यदाकदा जो छा जाती है.
ये चित्तवृति है.
काश ये चित्त वृत्ति एकाग्र और निरुद्ध भी बने .
जीवन को गति मिलती है
जवाब देंहटाएंतन-मन में स्पंदन से
चाहे-अनचाहे भी
स्पंदन देती है
ये चित्तवृति है.
सही कहा आपने आदरणीय पुरुषोत्तम पाण्डेय सर। बहुत-बहुत बधाई। मेरे ब्लॉगपर आपका हार्दिक स्वागत है।
really these lure atracts our and led us on many unfamilier ways.
जवाब देंहटाएंyeh raag ni shabd...wah sir ati sundar.....even i write i would appreciate if you can see my blog too www.thinkndshare.blogspot.com hindi poems
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .....
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