बुधवार, 7 दिसंबर 2011

कददू ही कददू


"खाओ तो कद्दू से, ना खाओ तो कद्दू से." ये मुहावरा बहुत पुराना है. मेरी समझ में ये नहीं आता कि कद्दू की ऐसी बेइज्जती क्यों की जाती है?

हमारे यहाँ कद्दू एक सस्ता, सुलभ व स्वादिष्ट सब्जी-फल है. नरम हरे बेबी कद्दू की सब्जी घी+अजवाइन का तड़का लगाकर रोटी के साथ स्वादिष्ट डिश है. चावल के साथ मिला कर खाइए तो टप्किया बन जाता है. कुछ और मसाले डालेंगे, जैसे प्याज, अदरक, लहसुन, तो राजेश खन्ना की वावर्ची फिल्म की दास्तान की तरह अंगुली चाटते रह जाओगे. पक्के पीले कद्दू की तो बात ही कुछ और है. वह मीठा हो जाता है. अत: खटाई डाल कर खट-मीठा स्वादिष्ट बन जाता है. हमारे कूर्मांचल में कद्दू को ज्यादा स्वादिष्ट बनाने के लिए जाड़ों की तुषार (फ्रोस्ट) में छत की धुरी में लाइन से सजा कर रख दिया जाता है बाद में गर्मियों में इसका मजा लिया जाता है. आदमी तो आदमी आप अपनी भैंस को भी कद्दू खिलाएंगे तो वह बहुत खुश हो जायेगी. आपको ड्योडा दूध प्रदान करने लगेगी.  

कद्दू की बात पर मुझे अपने एक मित्र नागेश गर्ग याद आ रहे हैं. वे अब इस दुनिया में नहीं रहे. वे लखनऊ के रहने वाले थे. लखनऊ को नखलऊ ही उच्चारित करते थे. वे एक नम्बर के गप्पी थे. आपको हजम हो या ना हो, पर वे सहज में पेल जाते थे. उनकी मजेदार गप्पों में एक तो ये थी कि उनके बेटे की बारात नखलऊ से ४० मील दूर कानपुर गयी. अगले बाराती कानपुर पहुँच गए थे, पिछले नखलऊ में ही थे. दूसरी गप्प कद्दू के विषय में थी कि उनके घर के आगंन में पत्थरों की झिर्री में कद्दू का एक बीज ना जाने कहाँ से आन पड़ा, उग आया, उगा भी ऐसे कि पूरे मोहल्ले में बेल फ़ैल गयी. जब फलीभूत हुआ तो सब तरफ कद्दू ही कद्दू लग आये. नखलऊ वालों ने मुफ्त में खूब कद्दू खाये फिर भी जब अम्बार लग गया, रोड जाम हो गयी तो अपने दोस्त रेल मन्त्री से कह कर टेम्पररी रेल लाइन बिछाई गयी. कई वैगन भर-भर के लन्दन तक कद्दू भेजे गए.

खैर ये तो हुई गप्प, अब मैं आपको अमेरिकी कद्दू की सच्ची बात बताऊंगा कि वहाँ हर साल अक्टूबर महीने के आख़िरी रविवार को एक पर्व मनाया जाता है, जिसे हेलोवीन नाम से जाना जाता है. इस पर्व की कई दिन पहले से तैय्यारी शुरू हो जाती है. घरों के आगे पीछे भूतहा मूर्ति-चित्र, काले कपडे, मकड़ी के नकली जाले सजा दिये जाते हैं. भूत-पिशाचों को भगाने या सम्मानित करने का ये पर्व बड़े जोश-खरोश के साथ मनाया जाता है. बच्चे बूढ़े सभी डरावने मुखौटे लगा कर क्षेत्रीय जलूसों में सामिल होते हैं. विसर्जित होने से पहले बच्चों को टाफी-चाकलेट बांटे जाते हैं. मौज मस्ती का माहौल रहता है. मुझे इसका सांस्कृतिक महत्त्व मालूम नहीं है पर जो देखा वह बहुत मजेदार था. इस पर्व पर पीले रंग के कद्दू विशेष महत्व रखते हैं. हर घर के आगे सजे हुए रहेंगे. बड़े मॉल से लेकर निर्जन स्थानों तक में कद्दू के बाजार लग जाते है. कई जगह तो मैंने असंख्य कद्दू लाइटिंग के साथ क्रिसमस ट्री की तरह सजा कर लटके भी देखे. कुछ घरों के अन्दर-बाहर प्लास्टिक के पीले कद्दू भी देखने को मिले.

यहाँ के कद्दू का रंग हमारे देश के कद्दू से कुछ ज्यादा पीला या लालिमा लिए हुए रहता है. मैं सन २००६ में जब पहली बार अमेरिका आया था तो तब भी ये नजारा देखा था. मुझे एक जगह एक फूटा हुआ कद्दू नजर आया तो मैं उसके कुछ बीज अपने साथ भारत लाया था लेकिन यहाँ उस कद्दू की बेल फली नहीं.

हमारे गाँव में कद्दू के बीजों को भून कर छील कर उसके गूदे को, अखरोट की गिरी को, भंगीरे के बीज या भुने हुए तिल के बीज च्यूडे (भुने हुए चावल) तथा गुड़ सब मिला कर चबैना के रूप में चबाया-खाया जाता था. अभी भी जरूर खाया जाता होगा. मेरे लिए तो वह सब बहुत पीछे छूट गयी याद भर रह गयी हैं. अंत में मैं आपको ये कहना चाहता हूँ कि यदि आपकी कद्दू की बेल खूब फ़ैल रही हो तो उसके नरम टूक्कों की हरी सब्जी जरूर बनाएँ, बहुत मजेदार लगेगी.
***

4 टिप्‍पणियां:

  1. बढि़या पोस्‍ट। हमारे यहॉं भी गांवों में पहले हर शादी, त्‍योहार वगैरह के मौके पर कद्दू की सब्‍जी बनना अनिवार्य होता था।

    जवाब देंहटाएं
  2. kaddu ki sabji ka shubh karyon men mahaty aur hi hota hain achhi post

    जवाब देंहटाएं