शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

औकात में रहा करो


दिनेशचंद्र कांडपाल मूल रूप में हमारे पड़ोसी गाँव, ढोंन का रहने वाला हैं. उसके पिता एक साधारण कास्तकार थे. वह और मैं पहली कक्षा से ही साथ साथ पढ़ते रहे. यद्यपि घमंड करने वाली जैसी कोई बात नहीं थी फिर भी दिनेश शुरू से ही अपने आप को सुपर समझता था. दूसरों से बात-बात में कहता था, औकात में रहा करो.

गाँव के स्कूल के बाद हम दोनों शहर के स्कूल में भी साथ-साथ पढ़े और फिर कॉलेज में भी एक ही साथ नैनीताल आ गए. वह टोटल मार्क्स लाने में कभी भी मुझे पीछे नहीं कर पाया जिसका उसको अफ़सोस तो था लेकिन उसका बड़बोलापन या ओछापन हमेशा मुझ पर हावी रहा क्योंकि मेरे घर की आर्थिक स्थिति कभी अच्छी नहीं रही जिसके बारे में उसको पूरा मालूम था.

बी.ए. करने के बाद मुझे न्याय विभाग में क्लर्क की नौकरी मिल गयी. मैं तहसील कोर्ट में बतौर पेशकार काम करने लग गया. उधर दिनेश ने इकोनोमिक्स में एम.ए. किया उसके बाद नौकरी की तलाश शुरू की. वह बहुत दिनों तक बेरोजगारी झेलता रहा. उस बीच कई बार वह मेरे आवास पर भी आता रहता था. उसके बड़े बड़े सपने थे. वह ये जानते हुए भी कि में क्लर्क हूँ, बाबू लोगों की औकात पर छींटाकसी करने में नहीं चूकता था.

भगवान ने उसके साथ थोड़ा सा अन्याय जरूर किया था कि वह शक्ल सूरत से अनाकर्षक व बेडौल था पर उसे इस बात का कोई मलाल नहीं था. औरों के सामने वह अपनी पर्सनैलिटी को इस तरह जाहिर करता था कि इसमें उसकी कोई गलती नहीं है, थी भी नहीं.

सन १९६२ में जब हिंद-चीन के लड़ाई लगी तो वह आर्मी में शार्ट-सर्विस कमीशन पाकर भर्ती हो गया और उसके सिविलियन विंग के सप्लाई डिपार्टमेंट में किसी जिम्मेदार पद पर नियुक्त हो गया. करीब सात साल तक उसने वहां काम किया. अब तो उसके ठाट निराले हो गए थे. लोगों से मैं भी सुनता था कि वह अब वी.आई.पी. का सा व्यवहार करने लगा था. अपने निकट रिश्तेदारों को भी तुच्छ समझकर व्यवहार करता था. यहाँ वह वास्तव में अपनी औकात भूल रहा था. ऊपर वाले का निजाम पक्का रहता है. दिनेश खरीद फरोख्त के धन्धे में हेरा-फेरी करते हुए पकड़ा गया और सस्पेंड कर दिया गया. इस बीच उसने बहुत रुपया कमा भी लिया था. सस्पेंड होते ही उसने रामनगर आकर बस स्टेशन के पास एक मुख्य जगह पर आधा एकड़ जमीन खरीद ली. उस पर एक बढ़िया सी दुमंजिला बिल्डिंग बना कर एक बैंक को मोटे किराए पर लीज पर दे दी. खुद एक टैक्सी खरीद कर पर्यटकों की सेवा में लग गया. सस्पेंसन का केस लंबा चला, और जैसा कि आम तौर पर अपने देश में होता है एक दिन सबूतों के अभाव में वह बरी हो गया तथा बैक वेजेज व पेन्शन सहित रिटायर हो गया.

टैक्सी  संचालन के दौरान एक दिन दिनेश ने अखबार में उत्तर प्रदेश सरकार की नायब तहसील के पदों की रिक्तियों को देख कर अपना आवेदन भेज दिया, परीक्षा में बैठा, फलस्वरूप नियुक्ति पा गया. नायब तहसीलदार रहते हुए दो साल बाद उसने सरकार को शार्ट सर्विस कमीशन में की गई सात साल की सेवा काल को भी जोड़ने के लिए प्रतिवेदन भेजा जो स्वीकार कर लिया गया, और वह सीनिओरिटी पाकर तहसीलदार बन गया. गढ़वाल व कुमायूं मंडलों से होता हुआ एक दिन वह मेरे कोर्ट में न्यायिक अधिकारी बन कर आ गया और मैं वहीं का वहीं उसका पेशकार. मुझे उससे कोई जलन नहीं है, पर मैं देख रहा था कि जायज-नाजायज तरीकों से उसने अकूत सम्पति जमा कर ली थी. उसका बेटा नैनीताल में शेरवुड में पढ़ रहा था और मेरा सरकारी स्कूल में. वह अब सामाजिक समारोहों में बहुत कम शामिल होता था क्योंकि वह सचमुच वी.आई.पी. हो चुका था. उसके बेटे मनोज ने जब एन.डी.ए. में एडमिशन पा लिया तब तो उसके घोड़े सातवें आसमान में उड़ने लगे.

वह सीढियां चढता गया, कमिश्नर हो गया. उसका दायरा मेरे पहुँच से काफी दूर हो गया. लोग उसके बारे में चर्चाए जरूर करते थे, और उसके भाग्य को अध्यवसाय व प्रबल भाग्य की देन समझते थे.

कभी कभी आदमी शिखर पर पहुँच कर ओंधे मुँह गिर जाता है. कुछ ऐसा ही हुआ विजिलेंस डिपार्टमेंट ने उसे दो लाख रूपये रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया. वह तुरन्त प्रभाव से सस्पेंड कर दिया गया. उसके बैंक खाते सीज कर दिए गए. घर खंगाला गया तो करेन्सी नोटों का अम्बार मिला. उसे जेल हो गयी.

समय खराब हो तो बनते काम भी बिगड़ने लगते हैं. दुर्भाग्य अकेले नहीं, अनेक आपदाओं को साथ लेकर आता है. उसका बेटा मनोज मेजर हो गया था जो काश्मीर बोर्डर पर उसी दौरान शहीद हो गया.

सारा पटाक्षेप एक साथ हो गया. उसने सन्देश भेज कर मुझे बुलाया. मैं अपने एडवोकेट बेटे के साथ उससे मिलने जेल में गया. उसके आँखों में पश्चाताप के आंसू थे, बोला, भैया, मैं अपनी औकात भूल गया था. उसी का नतीजा भुगत रहा हूँ.

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक उसकी जमानत नहीं हो पाई है.
                                         ***

4 टिप्‍पणियां:

  1. बिना सोचे विचारे कुछ न किया जाये ....

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  2. समय बड़ा बलवान उससे कोई नहीं जीत सकता अच्छी कहानी

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  3. सच में , औकात नहीं भूलनी चाहिए.
    आपके लेख पर मेरी नुक्ताचीनी - सूरज के सामने जुगनूँ की तरह होगा .

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