सोमवार, 12 दिसंबर 2011

छप्पर फाड़ के


सोनी टी.वी. पर कौन बनेगा करोड़पति के एपीसोड देखकर मुझे भी लगता था कि काश! मैं भी हॉट सीट तक पहुँच पाता. फिर तो मैं एक करोड़ की रकम जीत कर ही लौटता क्योंकि जो प्रश्न पूछे जाते हैं वे अधिकाँश मुझे आते हैं. मेरा छोटा पोता कहता था कि दादा जी आपको वहाँ पहुँचने के लिए ट्राई करना चाहिए. पर मैं जाऊं कैसे? कोई करिश्माई करामात हो जाये तो ही मैं मंजिल पा सकता हूँ. इस बार तो खैर, मैं ज्यादा समय विदेश में रहा पर पिछले हर बार मैं रोज ही SMS करके इन्तजार ही करता रह गया था. रूपये कमाने का लालच तो था ही. टी.वी. पर आकर सभी मित्रों-अमित्रों को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाना भी मेरी मंशा रही है. अफ़सोस इस बात का रहा कि सोनी वाले मेरे जैसे उमरदार लोगों को बुलाने से डरते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि अनुभव का कोई शार्टकट नहीं होता है. बूढ़े तो जानवर भी ज्ञानी हो जाते हैं.

धन, भगवान तो नहीं है, पर इससे बहुत सी नियामतें खरीदी जा सकती हैं. ये सांसारिक खेल-व्यापार धन को केन्द्र बना कर ही चल रहे हैं. खूब दौलत जमा हो जाये फिर भी मन कभी नहीं भरता है. दुनिया के ज्यादातर झगड़े-लफड़े, मार-काट के पीछे धन ही तो है जो सब करवा रहा है. रमता जोगी भी सुखी नहीं है. पेट भरने के लिए उसको भी किसी न किसी रूप में धन चाहिए होता है.

मैं जब कड़की में जी रहा था तो सोचता था कि अलादीन के चिराग की तरह कोई जादू की छड़ी मुझे भी मिल जाए तो पौ बारह हो जाएँ. मैं अकसर दिवास्वप्न देखा करता था कि ऐसा दैवीय वरदान प्राप्त हो जाये कि इच्छा करने पर शहर भर के बैंकों व सेठों की तिजोरियों में रखे गए करेन्सी नोट वहाँ से सरक आयें और आसमान के रास्ते कबूतरों की तरह उड़ कर मेरे घर की चौड़ी छत पर बरस जाएँ. मैं उन तमाम नोटों को लोहे के बक्सों में या ड्रमों में सहेजता जाऊं. कभी कभी यों भी मन में आता रहा कि नोटों के अलावा सोने के बिस्किट भी जमा हो जाये तो मजा आ जाये. उसके बाद मैं क्या क्या कर लेता? अनेक तरह की योजनाओं पर जाकर स्वप्न समाप्त होता था. वैसे ऊपर वाले ने दो टाइम घी में चुपड़ी दाल-रोटी का इन्तजाम मेरे लिए कर ही रखा है. पर इंसान का मन है ये सोचता ही रहता है कि कहीं से छप्पर फाड़ के दौलत आ जाये और ऐश की जाये. मृगतृष्णा कभी खतम नहीं होती है.

ये तो मेरे मन की बात है पर मैं आपको एक सत्यकथा से रूबरू कराता हूँ जो कि मेरे एक मित्र परमानन्द जी (रिटायर्ड पोस्ट मास्टर) ने मुझे सुनाई है.

सन १९६०-६१ में बिजली विभाग में पेट्रोल-मैन (तार खीचने वाला श्रमिक) भवान सिंह को जब यह सूचना दी गयी कि उसको पोस्ट आफिस की लाटरी में एक लाख रुपयों का इनाम लिकला है तो उसने उसे अपने साथियों का मजाक समझा. लेकिन जब खुद पोस्ट मास्टर ने आकर उसको बताया तो उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था. एक लाख रूपये उन दिनों बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी.

भवान सिंह प्राइमरी तक ही पढ़ा था और बिजली विभाग में सबसे निम्न श्रेणी का कर्मचारी था. नैनीताल् जिले के किसी गाँव से दूर बागेश्वर कस्बे में उसको काम पर लगाया गया था. पिछले आठ महीनों में वेतन से बचत करके सुरक्षा की दृष्टि से दो सौ रूपये, बचत खाता खोल कर पोस्ट आफिस में रख दिये ताकि अपने गाँव जाते समय निकाल कर ले जा सके. उसको ये पता भी नहीं था कि बचत खाते पर पोस्ट आफिस ने कोई ईनामी योजना भी निकाली है.

पोस्ट मास्टर जनरल की तरफ से ६ माह पूर्व उन सभी खातेदारों के नाम मांगे गए थे जिनके बचत खाते में कम से कम २०० रुपये जमा थे. ये स्कीम बचत खातों में रूपये जमा रखने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए निकाली गयी थी. लाटरी का जो भी तरीका रहा होगा बहरहाल भवान सिंह के नाम एक लाख रुपयों का ईनाम घोषित हो गया. ये सूचना टेलीग्राफ द्वारा जब बागेश्वर आई तो जाँच करने पर पाया कि भवान सिंह ने तो अपना पूरा रुपया दो महीने पहले निकाल कर खाता बंद कर लिया था. पोस्ट मास्टर जनरल को यथास्थिति की जानकारी दी गयी तो उनका जवाब आया कि चूंकि उस निर्धारित तिथि को भवान सिंह के खाते में २०० रूपये थे इसलिए वह ईनाम का हकदार है, अतः उसे ढूंढा जाये और ईनाम की राशि का चेक समारोह करके सौंपा जाये.

जब भवान सिंह की तलाश की गयी तो वहाँ पेट्रोल मैन के रूप में दो व्यक्तियों का नाम भवान सिंह निकला. खैर पूछताछ करके असली भवान सिंह को समारोह में बुलाया गया, जिसमें पोस्ट आफिस के कारिन्दों के अलावा बिजली बिभाग के कर्मचारी और कुछ सामान्य नागरिक भी शामिल हुए. उन दिनों दूर दूर तक कोई बैंक नहीं था, न इस बारे में ज्यादा जानकारी ही थी. भवानसिंह के सामने ये समस्या आ गयी कि अब उस चेक का क्या किया जाये?
पोस्ट मास्टर की सलाह पर फिर से नया खाता खोल कर चेक पोस्ट आफिस में ही जमा कर दिया गया. मजेदार बात ये थी कि उन दिनों सिर्फ दो रुपयों से खाता खोला जा सकता था.

भवान सिंह का यह दृष्टांत पोस्टल डिपार्टमेंट की ईमानदार कार्य प्रणाली व चरित्र का उदाहरण है. भवान सिंह को तो ऊपर वाले ने ये रूपये छप्पर फाड़ कर दिये थे और उसे रातों रात सेलेब्रिटी बना दिया था. मैं सोचता हूँ कि मेरे साथ भी ऐसी ही करामात हो जाती तो सत्य नारायण भगवान की कथा अवश्य करवाता. अलबत्ता इसी उम्मीद में मैंने पोस्ट आफिस में बचत खाता खोल कर एक हजार रूपये रख छोड़े हैं.
                                      ***

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह न्बहुत हु रोचक कहानी अच्छा लगा पढ़कर बहुत डीनो बाद कुछ हटकर पढ़ने को मिला आभार समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका सवागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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