मेरा बचपन उत्तरांचल के आँचल में ही बीता. मैंने बसंत ऋतु के आगमन पर आड़ू और सेव को बौराते हुए देखा था. शिशिर/हेमंत की ठण्ड की मार के बाद पेड़ों में एक भी पत्ता नहीं रह जाता है, और थोड़ी सी गर्माहट मिलते ही, पहले बैगनी आभा वाले श्वेत पुष्प निकलने के बाद ही नव कोपल पत्तों के रूप में प्रस्फुटित होते हैं. एक मदमाती गन्ध फूलों से आती है, मधुमक्खियाँ परागण तो करती ही हैं, स्वयं भी मधु लेकर जाती हैं. हमारे घर गाँव में इक्के-दुक्के पेड़ दूर-दूर लगे रहते थे और वहां के लोगों के लिए ये नजारा विशेष कौतुक या आकर्षण का नहीं होता था. क्योंकि ये उनके जीवन का नित्यक्रम जैसा रहता था.
मैं सन २००८ की सर्दियों में अपने परिवार के साथ हिमांचल के मनाली में हिमपात का आनंद लेने गया तो रास्ते में कुल्लू की मुख्य सड़क के दोनों ओर असंख्य सेव के नंगे पेड़ देखे. इतने सेव के पेड़ एक साथ मैंने पहली बार देखे. मैं उन पेड़ों के एक साथ पुष्पित होने की छटा की कल्पना करके अपने कवि मन को आह्लादित पा रहा था.
इस साल यानि २०११ में, अपने अमेरिका प्रवास के दौरान, मेरी बेटी-दामाद ने मुझे और मेरी श्रीमती को अनेक दर्शनीय स्थलों तक ले जाकर नए-नए अनुभव करने के अवसर दिये. उनमें से एक है, हिलक्रेस्ट ओर्चार्ड, GA, यानि जॉर्जिया राज्य का सेव का बगीचा. अगर आप इन्टरनेट पर तलाश करेंगे तो आपको अमेरिका के अनेकों हिलक्रेस्ट ओर्चार्ड की लिस्ट मिल जायेगी. पर जब आप GA यानि जॉर्जिया लिखेंगे तो उपरोक्त बगीचा मिल जाएगा.
जॉर्जिया एक बहुत बड़ा राज्य है जो संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी हिस्से में है. वैसे तो पूरा देश एक समृद्ध व विकसित राष्ट्र है, पर मुझे जॉर्जिया का हर इलाका, हर संस्थान व हर दर्शनीय स्थल कई मायनों में उत्तम लगे. जॉर्जिया के उत्तर में टेनेसी प्रांत के जोड़ पर हरे भरे पर्वत मालाओं का घेरा है, इसी के आँचल में है ये सेव का बगीचा. अटलांटा से करीब डेढ़ घन्टे की सड़क यात्रा के बाद जो दृश्य मैंने देखा उसकी कल्पना भी नहीं की थी.
अक्टूबर माह, शनिवार का दिन, सार्वजनिक रूप से अवकास का दिन, जब हमारी कार हिलक्रेस्ट के गेट पर पहुँची तो १००० गाड़ियों की पार्किंग फुल मिली. थोड़ी देर बाद जब कुछ गाड़ियों की निकासी हुई तब जाकर ऐंट्री हो सकी. ओर्चार्ड के अन्दर जाने का टिकट तीन डालर था. खुद सेव तोड़ कर घर ले जाने के लिए एक जालीदार थैला ६ डालर में उपलब्ध था. जाली में ढाई तीन किलो तक सेव रखने की गुंजाइश थी.
बिक्री के लिए सेवों का ढेर वहाँ पड़ा था पर जब हम बागीचे के अन्दर घुसे तो वहा का विहंगम दृश्य देख कर स्वप्न-लोक का सा नजारा लग रहा था. हजारों पेड़ लाल-हरे रंगों के फलों से लदे हुए थे. नीचे जमीन पर गिरे हुए सेव भी असंख्य थे. ऐसा लग रहा था जैसे सेवों के समुद्र में उतर आये हों.
हम ५ भारतीय परिवार साथ गए थे. कुछ के छोटे बच्चे भी साथ में थे. सबने खूब आनंद लिया. अपने घरों से खाना बना कर ले गए थे साथ बैठ कर पिकनिक का सा मजा ले रहे थे. भोजन स्थल पर एक स्टेज था जिस पर आर्केस्ट्रा के धुनों पर कलाकार गाना गा रहे थे. घोड़ा-बग्घी व ट्रेक्टर गाड़ी में इस कई एकड़ में फैले हुए बाग को देखने का इन्तजाम था. दो शताब्दी पुरानी अमरीकी पारिवारिक व्यवस्था का एक मजेदार म्यूज़ियम भी अन्दर देखने को मिला. बच्चों के मनोरंजन के लिए कई खेल तथा झूले थे. अद्भुत मेले जैसा नजारा था.
इसी बाग के दक्षिणी छोर पर बच्चों के लिए विशेष ऐनीमल पार्क बना रखा था, जहां बकरी, खरगोश, मुर्गी, बत्तख, गाय आदि घरेलू जानवर बंधे हुए थे. वहाँ के जानवरों के साथ स्पर्श-सुख (animal petting) लेने का टिकट अलग से ३ डालर था. वहां पर दूध देने वाली गाय भी थी. बच्चे एक-दो धार खींच कर आगे बढ़ जाते थे.
पर्यटकों के लिए रेस्टोरेंट + रेस्टरूम (अमेरिका में बाथरूम को रेस्टरूम कहा जाता है) की सुविधा बहुत थी. वेबसाईट पर लिखा है कि ये मेला सिर्फ सेवों के तैयार होने पर अक्टूबर माह में निश्चित अवधि तक ही चलता है. यहाँ के लोगों को इस अवसर का हर साल इन्तजार रहता है.
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सुन्दर, सजीव 'चित्रण'.
जवाब देंहटाएंSimilar experience we had near Minneapolis!
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