बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

कागज़ के पहिये

डोरीलाल ने नया नया प्रॉपर्टी डीलर का काम शुरू किया था. तहसील में अर्जीनवीस ने उससे रजिस्ट्री के कागजातों में 'कागज के पहिये' लगाने को कहा तो पहले वह कुछ समझा नहीं, पर जब उसने साफ़ साफ़ कहा, “इसमें दो प्रतिशत के हिसाब से सुविधा शुल्क देना पड़ता है तो उसकी समझ में आया कि यहाँ की दुनियादारी कैसे चलती है. बाद में तो वह इस काम में माहिर हो गया और बिना झिझक के कागजातों पर कागज के पहिये लगा देता और तुरत-फुरत अपना काम निकाल लेता रहा. अब तो वह बड़ा आदमी हो गया है. उसके नौकर चाकर ही जाकर इस तरह कागज़ के पहिये लगा कर काम करा लेते हैं.

डोरीलाल के बाप होरीलाल ने बकरे-मुर्गे काटते हुए जिंदगी निकाल दी. और करता भी क्या? जाति से खटीक था. यही पुस्तैनी धंधा रहा था. अच्छा गुजारा भी चल जाता था, पर बेटा पढ़ लिख गया और इस काम को बिलकुल पसंद नहीं करता था. वह किसी ऐसे धन्धे की तलाश में रहा जिसमें खून-माँस का काम नहीं हो. ‘जिन खोजा तिन पाइयां,’ एक दिन उसकी मुलाक़ात राधेश्याम पंजाबी से हो गयी और बात बात में उसने उसे अपना पार्टनर बनने को कहा.राधेश्याम छोटी पूंजी वाला आदमी था. छोटी-मोटी प्रॉपर्टी खरीदने बेचने का काम किया करता आ रहा था. अब दोनों में दोस्ती हो गयी. एक और एक ग्यारह होते ही उनकी चल निकली. फाइनैंसर भी बढ़िया मिल गया. कई जगह बड़े भूखण्ड सस्ते में खरीद डाले और बाद में टुकड़ों में बेचना शुरू कर दिया. धन्धे का ‘गुर’ कागज़ के पहियों ने बड़ा काम किया. देखते ही देखते डोरीलाल लखपति से करोड़पति हो गया. जब सारा कारोबार समझ में आ गया तो उसने अपना धन्धा राधेश्याम से अलग कर लिया. और अपने तीनों भाइयों को भी इसी कारोबार में लगा दिया. भाग्य ने भी साथ दिया अचानक जमीन जायदाद के भावों में बढ़ोत्तरी आ गयी.

साइकिल से मोटर साइकिल फिर फिएट कार से होंडा सिटी तक का सफर यों ही तेजी से चलता रहा. कागज़ के पहियों के लगते ही तमाम सरकारी मुलाजिम उसके गुलाम होते चले गए. मात्र बीस वर्षों में डोरीलाल क्रीमी लेयर से बहुत ऊपर आ गया अब उसके नाम का डोरी हिस्सा हट गया वह ‘लाल बाबू ’ कहलाने लगा.

लाल बाबू  ने उत्तराखंड बनते ही भांप लिया था कि यहाँ की जमीन भविष्य में सोने के भाव बिका करेगी. जहाँ भी, जैसी भी, जमीन मिली उसके कारिंदे खरीदते रहे. जहाँ अड़चन या नम्बर दो का काम होता था कागज़ के पहिये लगते रहे. राजधानी देहरादून, कोटद्वार तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दिल्ली के निकट नोयडा व गाजियाबाद तक लाल साहब के साम्राज्य की जड़ें फ़ैल गयी. वह कोलोनाईजर से बिल्डर भी बन गया. समृद्धि तो सबको दीखती है पर उसकी बुनियाद को केवल वही जानता है, जिसने अध्यवसाय किया हो.

गुड़ होता है तो मक्खियां भी अपने आप खींची चली आती हैं. समय समय पर राजनैतिक दलों को भी भरपूर चन्दा दिया जाता रहा. एक समय ऐसा आया कि एक नामी क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टी पर लाल बाबू  का वर्चस्व हो गया वह स्वयं टिकट बांटने वाला हो गया. अपने भाईयों को भी उसने राजनीति में सक्रिय कर दिया. स्वयं विधान सभा का चुनाव जीत कर देश सेवा के कार्य भी करने लगा है..

अपने बाप की ‘मीट की दूकान’ उसने अपने एक रिश्तेदार को सौंप दी थी, लेकिन उसको हमेशा यह अहसास रहता था कि उसके धन्धे को जो जो कागज़ के पहिये लगे थे, वे इसी दूकान की उपज थे.

होरीलाल अपने बेटों की बढ़त देखते-देखते बूढ़ा हुआ और चल बसा. बेटे पितृ भक्त हैं, उन्होंने उसके नाम से एक आधुनिक सुविधा संपन्न बड़े अस्पताल तथा एक कॉलेज की स्थापना की है जो कालान्तर में बढ़िया ढंग से चलाये जा रहे हैं लेकिन है सब व्यावसायिक स्तर पर.

कभी कभी एकांत में डोरीलाल अपने पिछले जीवन चक्र को निहारता है और सोचता है कि पूरी दुनिया कागज़ के पहियों पर ही दौड़ रही है.

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6 टिप्‍पणियां:

  1. धन्धे का ‘गुर’ कागज़ के पहियों ने बड़ा काम किया.

    यह गुर भी सबको कहाँ आता है .... बेटों ने अस्पताल और कॉलेज खुलवा कर काम तो अच्छा किया है पर यह भी व्यवसाय ही है ।

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  2. बहुत अच्छा नाम दिया आपने ..कागज़ के पहिये !!!

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  3. जिसे ताउम्र पानी से बचाने में ही निकल जाता है..

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  4. साइकिल से मोटर साइकिल फिर फिएट कार से होंडा सिटी तक का सफर यों ही तेजी से चलता रहा. कागज़ के पहियों के लगते ही तमाम सरकारी मुलाजिम उसके गुलाम होते चले गए. मात्र बीस वर्षों में डोरीलाल क्रीमी लेयर से बहुत ऊपर आ गया अब उसके नाम का डोरी हिस्सा हट गया वह ‘लाल बाबू ’ कहलाने लगा.....सच पैसा आता है तो फिर जात-पात उंच-नीच, छोटी-बड़ी बिरादरी के मायने बदल जाते हैं ..

    गुड़ होता है तो मक्खियां भी अपने आप खींची चली आती हैं. समय समय पर राजनैतिक दलों को भी भरपूर चन्दा दिया जाता रहा. एक समय ऐसा आया कि एक नामी क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टी पर लाल बाबू का वर्चस्व हो गया वह स्वयं टिकट बांटने वाला हो गया. अपने भाईयों को भी उसने राजनीति में सक्रिय कर दिया. स्वयं विधान सभा का चुनाव जीत कर देश सेवा के कार्य भी करने लगा है.....वर्तमान समय का सटीक खाका ...
    बहुत बढ़िया जीवंत कहानी प्रस्तुति हेतु आभार

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