“तेरा सत्यानाश हो, तेरे कीड़े पड़ें, तू पैदा होने से पहले ही मर जाता तो अच्छा होता! अरे दुष्ट, तुझे पाला-पोसा पढ़ाया-लिखाया, शादी कर दी, और अब तू अपने बाप पर हाथ उठा रहा है? मुझे लात मार कर धक्का दिया? जा तुझे मेरी बददुआ लगेगी, तेरा कभी भी भला नहीं होगा!” ये धाराप्रवाह गालियाँ आक्रोशित सरोजिनी देवी अपने बड़े बेटे चिंतामणि पाठक को दे रही थी. चिंतामणि साइकॉलाजी में एम.ए. करने के बाद यू.पी. पुलिस में थानेदार हो गया था और बदायूं जिले में कार्यरत था. आज ही सुबह सितारगंज में अपने माँ-बाप के पास लौट कर आया था.
सरोजिनी देवी के पति लोकमणि पाठक २५ साल पहले फ़ौज से सूबेदार के पद से रिटायर हुए थे. उसके बाद सरकार ने उनको ऑनरेरी कैप्टन का तमगा भी दिया था. वे मूल रूप से चम्फावत के एक छोटे से गाँव के रहने वाले हैं. उनके दो बेटे और एक बेटी हैं, जिनको पढ़ाने के उद्देश्य से उनकी पत्नी बच्चों के साथ सितारगंज रहती थी. जहाँ कई वर्षों तक किराए के मकान में रहने के बाद उन्होंने मेन रोड पर ७५,००० रुपयों में एक रिहायशी प्लाट खरीद कर बढ़िया सा घर बनवा लिया था. तब चिंतामणि नौकरी पर लग चुका था, पर उसने खर्चे में बिलकुल भी हाथ नहीं बटाया. घर की सभी व्यवस्थाओं में सरोजनी देवी का रोल हमेशा अध्यवसायी रहा. समय पर दोनों बेटों की शादियां भी कर दी.
चूंकि चिंतामणि जल्दी ही पुलिस की नौकरी में आ गया था, माता-पिता उसकी तरफ से बेफिक्र हो गए. बेटी सयानी होते ही उसकी शादी एक फ़ौजी लड़के से कर दी. छोटा बेटा चंद्रमणि लिखने पढ़ने में फिसड्डी रहता था इसलिए कोई डिग्री-डिप्लोमा हासिल नहीं कर पाया. वह फ़ौज के लायक भी नहीं था क्योंकि शरीर से कमजोर था. इसलिए माता-पिता उसकी ज्यादा फ़िक्र किया करते थे. रिटायर होने के बाद, कैप्टन लोकमणि पाठक को सितारगंज में ही एक कैमिकल फैक्ट्री में सेक्यूरिटी ऑफिसर की नौकरी मिल गयी. यों सारी गृहस्थी व्यवस्थित चल रही थी. चंद्रमणि के भविष्य को आर्थिक दृष्टि से सुनिश्चित करने के लिए उसके लिए एक लोहे की ग्रिल, चेनल, गेट, व जालियां आदि बनाने वाला छोटा वर्कशॉप खोल दिया. दो कारीगर भी रख लिए. बाद में पूरी दूकान का मालिकाना हक भी चंद्रमणि को दिलवा दिया. इस प्रकार कैप्टन साहब ने अपनी सारी बचत छोटे बेटे पर खर्च कर दी. उनका सोचना था कि बड़े बेटे चिंतामणि की तो वेतन के अलावा भी खूब कमाई है और वह उसे निवेश करने में भी समर्थ है.
चिंतामणि का परिवार बढ़ गया था. वह पद में भी प्रमोशन पाकर सी.ओ. हो गया. उसकी पत्नी बहुत लालची किस्म की महिला थी. नित्यप्रति उससे कहा करती थी कि “बाबू जी ने सारी जायदाद देवर जी के नाम कर दी है और तुम्हें ठनठन गोपाल बना कर रखा है.” जब एक ही बात बार बार चुभोई जाये तो कभी तो असर दिखाती है. इस बार बाबू जी से साफ़ साफ़ जायदाद के बटवारे की बात करने के इरादे से ही वह सितारगंज आया था. कैप्टन साहब फैक्ट्री की अपनी नौकरी से रिटायर हो चुके थे. उनको अपनी पेन्शन का बड़ा सहारा था. जब से सरकार ने पेन्शन को महंगाई भत्ते के साथ जोड़ा तथा एक-रैंक-एक-पेन्शन का फार्मूला लागू किया, रकम में अच्छी बढ़ोत्तरी हो गयी है.
चिंतामणि ने अभी तक की अपनी बारह वर्षीय नौकरी में कभी दो पैसा बाप के हाथ में नहीं रखा. वह समझता था कि उनके पास रुपयों की कोई कमी नहीं है. यद्यपि माँ ने कई बार उससे कहा भी था कि “तू रूपये कमाता है, थोड़ा बहुत अपने पिता की भी मदद किया कर, उनके खर्चे बहुत हैं.” वह ये बताने की कोशिश भी करती रही है कि पिता को आर्थिक रूप से मदद करने से आपस में भरोसा बढ़ता है, पर चिंतामणि ने इन बातों पर कभी गौर नहीं किया और अपनी बचत के रुपयों से अपनी पत्नी के नाम जमीन-जायदाद खरीदता रहा. पिता को खबर भी नहीं होने देता था. जब आदमी नियानब्बे के फेर में पड़ जाता है तो लालच बढ़ता जाता है.
आज ऐसा ही हुआ. उसने कैप्टन साहब से कह डाला “अब आप जायदाद का बटवारा कर दीजिए. मेरा हिस्सा मुझे चाहिए.” ये बात सुन कर कैप्टन साहब ने हैरानी भरे स्वर में कहा, “किस जायदाद की बात कर रहा है? क्या तूने कभी एक रुपया भी यहाँ जमा किया है? मेरी जायदाद में तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं है. ये मेरी अकेले की कमाई है.”
“अच्छा तो ये सब छोटे को ही देने का इरादा है?” उसने गुस्से में आँखें दिखाते हुए कहा.
उसके तेवर और तल्ख़ आवाज पर कैप्टन साहब का फ़ौजी गुस्सा फूट पड़ा, “ये पुलिसिया धौंस यहाँ मत दिखा. बेहतर है तुम अपने परिवार सहित अभी इस घर से दफा हो जाओ.”
इस पर चिंतामणि आपे से बाहर हो गया और अपने बाप को मारने के लिए हाथ उठा लिया. तब उसकी माँ बीच में आई. चिंतामणि ने माँ को जोर से लात मार कर धक्का दे दिया, जिससे वह बुरी तरह गिर पड़ी. चंद्रमणि, उसकी पत्नी तथा घर पर काम करने वाला उनका नौकर चिंतामणि पर पिल पड़े और उसे एक तरफ कर दिया.
इस स्थिति में सरोजनी देवी के मुँह से अपनी ही औलाद के लिए हजारों बद्दुआएँ फूट पडी.
सरोजिनी देवी के पति लोकमणि पाठक २५ साल पहले फ़ौज से सूबेदार के पद से रिटायर हुए थे. उसके बाद सरकार ने उनको ऑनरेरी कैप्टन का तमगा भी दिया था. वे मूल रूप से चम्फावत के एक छोटे से गाँव के रहने वाले हैं. उनके दो बेटे और एक बेटी हैं, जिनको पढ़ाने के उद्देश्य से उनकी पत्नी बच्चों के साथ सितारगंज रहती थी. जहाँ कई वर्षों तक किराए के मकान में रहने के बाद उन्होंने मेन रोड पर ७५,००० रुपयों में एक रिहायशी प्लाट खरीद कर बढ़िया सा घर बनवा लिया था. तब चिंतामणि नौकरी पर लग चुका था, पर उसने खर्चे में बिलकुल भी हाथ नहीं बटाया. घर की सभी व्यवस्थाओं में सरोजनी देवी का रोल हमेशा अध्यवसायी रहा. समय पर दोनों बेटों की शादियां भी कर दी.
चूंकि चिंतामणि जल्दी ही पुलिस की नौकरी में आ गया था, माता-पिता उसकी तरफ से बेफिक्र हो गए. बेटी सयानी होते ही उसकी शादी एक फ़ौजी लड़के से कर दी. छोटा बेटा चंद्रमणि लिखने पढ़ने में फिसड्डी रहता था इसलिए कोई डिग्री-डिप्लोमा हासिल नहीं कर पाया. वह फ़ौज के लायक भी नहीं था क्योंकि शरीर से कमजोर था. इसलिए माता-पिता उसकी ज्यादा फ़िक्र किया करते थे. रिटायर होने के बाद, कैप्टन लोकमणि पाठक को सितारगंज में ही एक कैमिकल फैक्ट्री में सेक्यूरिटी ऑफिसर की नौकरी मिल गयी. यों सारी गृहस्थी व्यवस्थित चल रही थी. चंद्रमणि के भविष्य को आर्थिक दृष्टि से सुनिश्चित करने के लिए उसके लिए एक लोहे की ग्रिल, चेनल, गेट, व जालियां आदि बनाने वाला छोटा वर्कशॉप खोल दिया. दो कारीगर भी रख लिए. बाद में पूरी दूकान का मालिकाना हक भी चंद्रमणि को दिलवा दिया. इस प्रकार कैप्टन साहब ने अपनी सारी बचत छोटे बेटे पर खर्च कर दी. उनका सोचना था कि बड़े बेटे चिंतामणि की तो वेतन के अलावा भी खूब कमाई है और वह उसे निवेश करने में भी समर्थ है.
चिंतामणि का परिवार बढ़ गया था. वह पद में भी प्रमोशन पाकर सी.ओ. हो गया. उसकी पत्नी बहुत लालची किस्म की महिला थी. नित्यप्रति उससे कहा करती थी कि “बाबू जी ने सारी जायदाद देवर जी के नाम कर दी है और तुम्हें ठनठन गोपाल बना कर रखा है.” जब एक ही बात बार बार चुभोई जाये तो कभी तो असर दिखाती है. इस बार बाबू जी से साफ़ साफ़ जायदाद के बटवारे की बात करने के इरादे से ही वह सितारगंज आया था. कैप्टन साहब फैक्ट्री की अपनी नौकरी से रिटायर हो चुके थे. उनको अपनी पेन्शन का बड़ा सहारा था. जब से सरकार ने पेन्शन को महंगाई भत्ते के साथ जोड़ा तथा एक-रैंक-एक-पेन्शन का फार्मूला लागू किया, रकम में अच्छी बढ़ोत्तरी हो गयी है.
चिंतामणि ने अभी तक की अपनी बारह वर्षीय नौकरी में कभी दो पैसा बाप के हाथ में नहीं रखा. वह समझता था कि उनके पास रुपयों की कोई कमी नहीं है. यद्यपि माँ ने कई बार उससे कहा भी था कि “तू रूपये कमाता है, थोड़ा बहुत अपने पिता की भी मदद किया कर, उनके खर्चे बहुत हैं.” वह ये बताने की कोशिश भी करती रही है कि पिता को आर्थिक रूप से मदद करने से आपस में भरोसा बढ़ता है, पर चिंतामणि ने इन बातों पर कभी गौर नहीं किया और अपनी बचत के रुपयों से अपनी पत्नी के नाम जमीन-जायदाद खरीदता रहा. पिता को खबर भी नहीं होने देता था. जब आदमी नियानब्बे के फेर में पड़ जाता है तो लालच बढ़ता जाता है.
आज ऐसा ही हुआ. उसने कैप्टन साहब से कह डाला “अब आप जायदाद का बटवारा कर दीजिए. मेरा हिस्सा मुझे चाहिए.” ये बात सुन कर कैप्टन साहब ने हैरानी भरे स्वर में कहा, “किस जायदाद की बात कर रहा है? क्या तूने कभी एक रुपया भी यहाँ जमा किया है? मेरी जायदाद में तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं है. ये मेरी अकेले की कमाई है.”
“अच्छा तो ये सब छोटे को ही देने का इरादा है?” उसने गुस्से में आँखें दिखाते हुए कहा.
उसके तेवर और तल्ख़ आवाज पर कैप्टन साहब का फ़ौजी गुस्सा फूट पड़ा, “ये पुलिसिया धौंस यहाँ मत दिखा. बेहतर है तुम अपने परिवार सहित अभी इस घर से दफा हो जाओ.”
इस पर चिंतामणि आपे से बाहर हो गया और अपने बाप को मारने के लिए हाथ उठा लिया. तब उसकी माँ बीच में आई. चिंतामणि ने माँ को जोर से लात मार कर धक्का दे दिया, जिससे वह बुरी तरह गिर पड़ी. चंद्रमणि, उसकी पत्नी तथा घर पर काम करने वाला उनका नौकर चिंतामणि पर पिल पड़े और उसे एक तरफ कर दिया.
इस स्थिति में सरोजनी देवी के मुँह से अपनी ही औलाद के लिए हजारों बद्दुआएँ फूट पडी.
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दुर्गति की गति कोई न जानी..
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जवाब देंहटाएंयही है बाप बड़ा रुपैया -अकृतग्य संतान
latest दिल के टुकड़े
latest post क्या अर्पण करूँ !
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ३ महान विभूतियों के नाम है २३ जुलाई - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंक्या बात है, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
मुझे लगता है कि राजनीति से जुड़ी दो बातें आपको जाननी जरूरी है।
"आधा सच " ब्लाग पर BJP के लिए खतरा बन रहे आडवाणी !
http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/07/bjp.html?showComment=1374596042756#c7527682429187200337
और हमारे दूसरे ब्लाग रोजनामचा पर बुरे फस गए बेचारे राहुल !
http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/blog-post.html
पैसा माँ बाप से भी बड़ा लगता है ...
जवाब देंहटाएंJoru ka gulam !! ..LAdkiyob ko apne saas sasur ko apne mata pita saman rkhna chahiye.. aur devar ko apna bhai samjhna chahiye usi se parivar chlte hai....Paise se jyada jaruri rishtey hote hai...
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