कृष्ण बिहारी दास एक अंतरप्रांतीय सीमेंट बनाने वाली कम्पनी की फैक्ट्री में सुपरवाइजर थे. उनको गुजरात की फैक्ट्री से प्रमोशन देकर राजस्थान की फैक्ट्री में भेजा गया. उनकी प्रामाणिक योग्यता तो खास नहीं थी, पर उनका काम के प्रति ईमानदारी के साथ साथ जिम्मेदारी महसूस करना बड़ी योग्यता थी. यहाँ आकर महज पाँच वर्षों के अन्दर ही उन्होंने अपने आपको एक अपरिहार्य व्यक्ति के रूप में स्थापित कर लिया. फैक्ट्री के अन्दर ही नहीं, बाहर कॉलोनी में सामाजिक कार्यों में, क्लब तथा अन्य समारोहों में उनकी उपस्थिति आवश्यक सी लगती थी. छोटे कर्मचारियों से लेकर उच्च मैनेजमेंट तक के लोगों को लगता था कि वे जिम्मेदार व्यक्ति हैं.
दास जी की अर्धांगिनी श्रीमती नयना बेन भी बहुत हँसमुख और मिलनसार महिला थी. उन्होंने भी खुद अपने लिए महिलाओं में आदरणीय स्थान बना लिया था.
दास दम्पति को जीवन में एक ही कमी खलती थी कि उनकी इकलौती संतान गौतम दास कुछ मंदबुद्धि सा था और एक पैर से लंगडाकर चलता था. लगातार ट्यूटर रख कर, पीछे पड़ पड़ कर बड़ी मुश्किल से उसे हाईस्कूल पास कराया और मौक़ा पाते ही मैनेजमेंट से उसके लिए कोई स्थाई नौकरी का निवेदन भी कर दिया.
दास जी के रसूकात काम कर गए, और गौतम को कारखाने में डाक छाँटने-भेजने के काम में रख लिया गया. उसके लिए कारखाने में इससे हल्का काम था भी नहीं. दास दम्पति मानो सारी मुरादें पा गए थे, बहुत खुश हुए, और मिलने वालो को दावत भी दी.
इसी बीच कारखाने के चीफ इंजीनियर प्रमोशन लेकर जब गुजरात की फैक्ट्री में स्थानान्तरित हुए तो उन्होंने वहाँ अपनी नई टीम बनाई जिसमें कृष्ण बिहारी दास को भी बुला लिया. इधर गौतम जब अकेला हो गया तो कुछ छड़े-छाँटे कर्मचारी उसके दोस्त बन गए. उसके घर को खाने-पीने का अड्डा बना लिया.
उधर दास दम्पति ने सोचा कि गौतम की शादी कर दी जाये तो ठीक रहेगा. एक अति सुन्दर स्नातकोत्तर पढ़ी लड़की रोशनी से रिश्ता तय करके गुजरात में धूमधाम से उसका विवाहोत्सव कर दिया. यहाँ तक सब बढ़िया चल रहा था. रोशनी को शायद राजस्थान आकर ही मालूम हुआ होगा कि गौतम मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ नहीं है. और शायद यह भी कि वह बहुत मामूली नौकरी में है. देखने वाले तो यही समझ रहे थे कि गौतम की बहू फ़िल्मी हीरोइनों की तरह अति सुन्दर है. बधाई देते हुए सबको खुशी हो रही थी. मजाक करने वाले पीठ पीछे यों भी कह रहे थे कि “बाजुए हूर में लंगूर, खुदा की कुदरत. कौवे की चोंच में अंगूर खुदा की कुदरत.”
गौतम की यार-दोस्तों की चौकड़ी पूर्ववत उसे घेर कर चल रही थी. वहाँ कोई सयाना तो था नहीं, जो रोक टोक करता. 'नए जमाने के बच्चे हैं’, यह सोच कर कृष्ण बिहारी दास के शुभचिंतक भी अपने काम से काम रखते थे. दुर्भाग्य शायद अन्दर ही अन्दर सुलग रहा था. गौतम ने एक रात आत्मह्त्या कर ली. कोहराम मच गया. पुलिस आई, जाँच पड़ताल हुई, कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. रोशनी गुमसुम थी. कुछ कहने की स्थिति में नहीं थी. आत्महत्या के कारणों के कई कयास लगाए गए, लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं मिल सका. कृष्ण बिहारी दास सपत्नी आये. उनकी की तो जैसे सारी दुनिया ही उजड़ गयी. घटनाक्रम पर यही कहा जा सकता है, "जैसी हो होतव्यता, तैसी आवै बुद्धि."
छ:माह बाद लोगों को यह समाचार सुनने को मिला कि रोशनी ने गौतम के मित्र सुजीत मोहंती से शादी कर ली है. सुजीत मोहंती गौतम के घर आने वालों में एक था. वह कारखाने में कैमिस्ट के बतौर कार्यरत था. शादी के बाद ये नवविवाहित जोड़ा राजस्थान लौट कर नहीं आया. कहीं अन्यत्र चला गया. इस शादी पर दास दम्पति की प्रतिक्रिया क्या थी, इसका भी पता नहीं चल पाया.
दास जी की अर्धांगिनी श्रीमती नयना बेन भी बहुत हँसमुख और मिलनसार महिला थी. उन्होंने भी खुद अपने लिए महिलाओं में आदरणीय स्थान बना लिया था.
दास दम्पति को जीवन में एक ही कमी खलती थी कि उनकी इकलौती संतान गौतम दास कुछ मंदबुद्धि सा था और एक पैर से लंगडाकर चलता था. लगातार ट्यूटर रख कर, पीछे पड़ पड़ कर बड़ी मुश्किल से उसे हाईस्कूल पास कराया और मौक़ा पाते ही मैनेजमेंट से उसके लिए कोई स्थाई नौकरी का निवेदन भी कर दिया.
दास जी के रसूकात काम कर गए, और गौतम को कारखाने में डाक छाँटने-भेजने के काम में रख लिया गया. उसके लिए कारखाने में इससे हल्का काम था भी नहीं. दास दम्पति मानो सारी मुरादें पा गए थे, बहुत खुश हुए, और मिलने वालो को दावत भी दी.
इसी बीच कारखाने के चीफ इंजीनियर प्रमोशन लेकर जब गुजरात की फैक्ट्री में स्थानान्तरित हुए तो उन्होंने वहाँ अपनी नई टीम बनाई जिसमें कृष्ण बिहारी दास को भी बुला लिया. इधर गौतम जब अकेला हो गया तो कुछ छड़े-छाँटे कर्मचारी उसके दोस्त बन गए. उसके घर को खाने-पीने का अड्डा बना लिया.
उधर दास दम्पति ने सोचा कि गौतम की शादी कर दी जाये तो ठीक रहेगा. एक अति सुन्दर स्नातकोत्तर पढ़ी लड़की रोशनी से रिश्ता तय करके गुजरात में धूमधाम से उसका विवाहोत्सव कर दिया. यहाँ तक सब बढ़िया चल रहा था. रोशनी को शायद राजस्थान आकर ही मालूम हुआ होगा कि गौतम मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ नहीं है. और शायद यह भी कि वह बहुत मामूली नौकरी में है. देखने वाले तो यही समझ रहे थे कि गौतम की बहू फ़िल्मी हीरोइनों की तरह अति सुन्दर है. बधाई देते हुए सबको खुशी हो रही थी. मजाक करने वाले पीठ पीछे यों भी कह रहे थे कि “बाजुए हूर में लंगूर, खुदा की कुदरत. कौवे की चोंच में अंगूर खुदा की कुदरत.”
गौतम की यार-दोस्तों की चौकड़ी पूर्ववत उसे घेर कर चल रही थी. वहाँ कोई सयाना तो था नहीं, जो रोक टोक करता. 'नए जमाने के बच्चे हैं’, यह सोच कर कृष्ण बिहारी दास के शुभचिंतक भी अपने काम से काम रखते थे. दुर्भाग्य शायद अन्दर ही अन्दर सुलग रहा था. गौतम ने एक रात आत्मह्त्या कर ली. कोहराम मच गया. पुलिस आई, जाँच पड़ताल हुई, कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. रोशनी गुमसुम थी. कुछ कहने की स्थिति में नहीं थी. आत्महत्या के कारणों के कई कयास लगाए गए, लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं मिल सका. कृष्ण बिहारी दास सपत्नी आये. उनकी की तो जैसे सारी दुनिया ही उजड़ गयी. घटनाक्रम पर यही कहा जा सकता है, "जैसी हो होतव्यता, तैसी आवै बुद्धि."
छ:माह बाद लोगों को यह समाचार सुनने को मिला कि रोशनी ने गौतम के मित्र सुजीत मोहंती से शादी कर ली है. सुजीत मोहंती गौतम के घर आने वालों में एक था. वह कारखाने में कैमिस्ट के बतौर कार्यरत था. शादी के बाद ये नवविवाहित जोड़ा राजस्थान लौट कर नहीं आया. कहीं अन्यत्र चला गया. इस शादी पर दास दम्पति की प्रतिक्रिया क्या थी, इसका भी पता नहीं चल पाया.
***
विडंबना से पूर्ण कहानी।
जवाब देंहटाएंन जाने, जीवन किस पथ बढ़ जाता है। हम तो सदा अच्छा ही चाहते हैं।
जवाब देंहटाएंमाँ के सिर पर ही होता है कलश पवित्रता का .ॐ शान्ति .माँ ही होती है घर की लाज शान और मान .चाहे तो उघाड़ दे चाहे तो ढके रहे .
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जवाब देंहटाएंपुरुषोत्तम पांडे जी आपकी रचनाएं सामाजिक परतों को उघाड़कर उनका सटीक विश्लेषण ही नहीं करती ,पात्रों को आईना भी दिखाती हैं .ऊपर वाली टिपण्णी दिगम्बर नासवा भाई के ब्लॉग की गलती से लग गई है .क्षमा प्रार्थी हूँ .ॐ शान्ति .
जवाब देंहटाएंपुरुषोत्तम पांडे जी आपकी रचनाएं सामाजिक परतों को उघाड़कर उनका सटीक विश्लेषण ही नहीं करती ,पात्रों को आईना भी दिखाती हैं .ऊपर वाली टिपण्णी दिगम्बर नासवा भाई के ब्लॉग की गलती से लग गई है .क्षमा प्रार्थी हूँ .ॐ शान्ति .
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