बहुत से लोग पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं. वे कई ऐसे उदाहरण और साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं जिनसे पुनर्जन्म का सिद्धांत सही प्रतीत होता है. भगवदगीता में महर्षि वेदव्यास जी ने श्रीकृष्ण के वचन यों लिखे हैं:
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोपराणी .
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानी देही.
आप्त वचनों में भी कहा गया है कि मनुष्य अपने सद्कर्मों के बल पर स्वर्ग की प्राप्ति करता है, जहाँ उसकी आत्मा परम सुखों को भोग कर पुण्य क्षीण (खर्च) होने पर पुन: इस धरती पर जीवनचक्र में घूमने आ जाती है. ये भी कहा जाता है कि शुद्ध आत्माओं की यदि कुछ इच्छायें अतृप्त रह जाती हैं तो वे पुन: शरीर धारण करती हैं. आदि शंकराचार्य ने अपने द्वादस मंजरिका स्तोत्र में कहा है, "पुनरपि जननंम, पुनरपि मरणंम, पुनरपि जननी जठरे शयनंम". ये दर्शन शास्त्र व आध्यात्म की गहरी बातें हैं, यहाँ इसके विवेचन पर न जाकर प्रत्यक्ष रूप से स्वर्गीय रामेश्वरी देवी की कहानी पर आते हैं.
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोपराणी .
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानी देही.
आप्त वचनों में भी कहा गया है कि मनुष्य अपने सद्कर्मों के बल पर स्वर्ग की प्राप्ति करता है, जहाँ उसकी आत्मा परम सुखों को भोग कर पुण्य क्षीण (खर्च) होने पर पुन: इस धरती पर जीवनचक्र में घूमने आ जाती है. ये भी कहा जाता है कि शुद्ध आत्माओं की यदि कुछ इच्छायें अतृप्त रह जाती हैं तो वे पुन: शरीर धारण करती हैं. आदि शंकराचार्य ने अपने द्वादस मंजरिका स्तोत्र में कहा है, "पुनरपि जननंम, पुनरपि मरणंम, पुनरपि जननी जठरे शयनंम". ये दर्शन शास्त्र व आध्यात्म की गहरी बातें हैं, यहाँ इसके विवेचन पर न जाकर प्रत्यक्ष रूप से स्वर्गीय रामेश्वरी देवी की कहानी पर आते हैं.
श्रीमती बेला पाण्डेय की सास रामेश्वरी देवी आज से ठीक एक साल पहले ८८ वर्ष की उम्र में अपना शरीर छोड़ गयी थी. उनके पौत्र चारुचंद्र ने विधिवत उनका क्रियाकर्म करके अपना संतान-धर्म निभाया था. आज जब उनका वार्षिक श्राद्ध किया गया तो दोपहर बाद ही चारुचंद्र की पत्नी चित्रा ने एक बालिका को जन्म दिया है. चारु की माँ बेला नवजात पौत्री को देखकर भावविह्वल हो गयी. वह उस नन्ही गुड़िया को ईजा (माँ) कहकर पुकारने लगी. बेला पाण्डेय अपनी सास को ईजा ही संबोधित किया करती थी. बेला के अनुसार ईजा ने इसी घर में पुनर्जन्म लिया है. प्रमाणस्वरुप वे बताती हैं कि बच्ची के बांई हथेली पर ईजा की ही तरह छ: अंगुलिया हैं, और ठीक उनकी तरह ही ठोड़ी के नीचे तिल भी है.
बेला इस वक्त खुद भी ६५ वर्ष की उम्रदराज महिला है. अपनी सास के साथ उनका जो आत्मिक सम्बन्ध रहा उसे दो शरीर और एक आत्मा का नाम दिया जा सकता है.
स्व. रामेश्वरी देवी के पति ब्रिटिशकाल में अंगरेजी फ़ौज में सेकेंड लेफ्टीनेन्ट थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मध्य एशिया में तैनात थे, जहाँ उनकी बेटैलियन पर दुश्मन ने आकाशीय हमला किया और वे शहीद हो गए थे. इस प्रकार रामेश्वरी देवी का वैवाहिक जीवन केवल दो वर्षों का रहा. उस वक्त उनकी गोद में उनका ६ माह का बेटा विक्रमादित्य था. विक्रम को उन्होंने बड़ी हिफाजत और कष्टों के साथ बड़ा किया. वह नहीं चाहती थी कि विक्रम बड़ा होकर फ़ौज में भर्ती हो क्योंकि उन्होंने तब की जमीनी लड़ाइयां देखी सुनी थी, जिनमें हमेशा जान का खतरा होता था. पर फ़ौजी परिवार वालों की मानसिकता आम सिविलियनों से अलग हुआ करती है. अनुशासन और देशभक्ति उनके संस्कारों में स्वाभाविक रूप से आ जाते हैं. विक्रम हमेशा अपने पिता की तस्वीरों को एकटक देखा करता था और उसे फ़ौज में जाने का जूनून हो गया था. माँ को अंत में उसकी जिद मंजूर करनी ही पड़ी.
२४ वर्ष की उम्र में विक्रम की शादी धार्मिक परम्पराओं के अनुसार बेला जोशी से कर दी. रामेश्वरी देवी अपने वैधव्य के दु:ख भुला कर उन चालीस वर्षों में परिवार को पटरी पर ले आई. विक्रम बहुत जिम्मेदार अफसर था, परन्तु दुर्भाग्य ने इस परिवार को एक बार फिर पटखनी दे दी. सीमा क्षेत्र में कहीं एक सड़क दुर्घटना में उसकी जीप गहरी खाई में गिर गयी. वह भी अकाल ही इस दुनिया सी विदा हो गया. उसके दो बेटियाँ और एक बेटा है, जो अब सभी विवाहित हैं. बच्चे आर्थिक विपिन्नता में तो नहीं रहे, पर पिता के ना रहने का संताप वे लोग समझ सकते हैं जो कम उम्र में उन्हें खो देते हैं.
बेला और रामेश्वारी देवी एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह समझती थी. एक दूसरे का दु:ख बांटती रही. बेला उनको ईजा (माँ) कहती थी. उनमें अपनापन माँ शब्द के अर्थ से भी कहीं ज्यादा था. वे एक दूसरे के पूरक हो गए थे. रामेश्वरी देवी ने बहुत दु;ख देखे थे. अब वह बहू के दर्दों को खुद महसूस किया करती थी. ढाढस बंधवाती थी, उपदेश करती थी. अपनी चौथी उम्र में भी बेला के प्रति वह वैसा ही भाव रखती थी जिस तरह एक नौजवान माँ किशोर बेटी की चिंता करती है.
रामेश्वरी देवी के जीवन का एक शुक्ल पृष्ठ यह भी था कि वह हमेशा खुद को धार्मिक साहित्य में डुबोए रखती थी. किताब-समाचार पत्र पढ़ती थी. उन पर बेला से चर्चाएं किया करती थी. यों करीब सत्तर साल का वैधव्य जीवन काट कर अपनी जिम्मेदारियां निभाती हुई वृद्धावस्था के कारण शरीर छोड़ गयी. बेला को यद्यपि ये बात मालूम थी कि मृत्यु एक शाश्वत सत्य है, हर देहधारी को इसे एक ना एक दिन छोड़ कर जाना ही होता है, फिर भी उसके लिए ईजा का चले जाना सबसे बड़ी त्रासदी रही. वह नित्यप्रति ईजा को अपने सपनों में देखा करती थी. उनके चित्रों को पुष्पांजलि देती और स्मरण करके आंसू बहाया करती थी. उसे ईजा के देहावसान पर पति के वियोग से भी ज्यादा विषाद हुआ. समय किसी के कहने से रुकता नहीं है. ज्यों हर बरसात के बाद नई घास-वनस्पतियां उग आती हैं, इस सँसार में भी नई उत्पत्ति होती जाती है. आज ठीक वार्षिक श्राद्ध के दिन चारु की पत्नी ने किलकारी मारती हुई एक कन्या को घर में नए सदस्य के रूप में ला दिया तो परिथितिजन्य आनन्द यह हुआ है कि बकौल बेला पाण्डेय, ईजा पुनर्जन्म लेकर आ गयी है.
बेला इस वक्त खुद भी ६५ वर्ष की उम्रदराज महिला है. अपनी सास के साथ उनका जो आत्मिक सम्बन्ध रहा उसे दो शरीर और एक आत्मा का नाम दिया जा सकता है.
स्व. रामेश्वरी देवी के पति ब्रिटिशकाल में अंगरेजी फ़ौज में सेकेंड लेफ्टीनेन्ट थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मध्य एशिया में तैनात थे, जहाँ उनकी बेटैलियन पर दुश्मन ने आकाशीय हमला किया और वे शहीद हो गए थे. इस प्रकार रामेश्वरी देवी का वैवाहिक जीवन केवल दो वर्षों का रहा. उस वक्त उनकी गोद में उनका ६ माह का बेटा विक्रमादित्य था. विक्रम को उन्होंने बड़ी हिफाजत और कष्टों के साथ बड़ा किया. वह नहीं चाहती थी कि विक्रम बड़ा होकर फ़ौज में भर्ती हो क्योंकि उन्होंने तब की जमीनी लड़ाइयां देखी सुनी थी, जिनमें हमेशा जान का खतरा होता था. पर फ़ौजी परिवार वालों की मानसिकता आम सिविलियनों से अलग हुआ करती है. अनुशासन और देशभक्ति उनके संस्कारों में स्वाभाविक रूप से आ जाते हैं. विक्रम हमेशा अपने पिता की तस्वीरों को एकटक देखा करता था और उसे फ़ौज में जाने का जूनून हो गया था. माँ को अंत में उसकी जिद मंजूर करनी ही पड़ी.
२४ वर्ष की उम्र में विक्रम की शादी धार्मिक परम्पराओं के अनुसार बेला जोशी से कर दी. रामेश्वरी देवी अपने वैधव्य के दु:ख भुला कर उन चालीस वर्षों में परिवार को पटरी पर ले आई. विक्रम बहुत जिम्मेदार अफसर था, परन्तु दुर्भाग्य ने इस परिवार को एक बार फिर पटखनी दे दी. सीमा क्षेत्र में कहीं एक सड़क दुर्घटना में उसकी जीप गहरी खाई में गिर गयी. वह भी अकाल ही इस दुनिया सी विदा हो गया. उसके दो बेटियाँ और एक बेटा है, जो अब सभी विवाहित हैं. बच्चे आर्थिक विपिन्नता में तो नहीं रहे, पर पिता के ना रहने का संताप वे लोग समझ सकते हैं जो कम उम्र में उन्हें खो देते हैं.
बेला और रामेश्वारी देवी एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह समझती थी. एक दूसरे का दु:ख बांटती रही. बेला उनको ईजा (माँ) कहती थी. उनमें अपनापन माँ शब्द के अर्थ से भी कहीं ज्यादा था. वे एक दूसरे के पूरक हो गए थे. रामेश्वरी देवी ने बहुत दु;ख देखे थे. अब वह बहू के दर्दों को खुद महसूस किया करती थी. ढाढस बंधवाती थी, उपदेश करती थी. अपनी चौथी उम्र में भी बेला के प्रति वह वैसा ही भाव रखती थी जिस तरह एक नौजवान माँ किशोर बेटी की चिंता करती है.
रामेश्वरी देवी के जीवन का एक शुक्ल पृष्ठ यह भी था कि वह हमेशा खुद को धार्मिक साहित्य में डुबोए रखती थी. किताब-समाचार पत्र पढ़ती थी. उन पर बेला से चर्चाएं किया करती थी. यों करीब सत्तर साल का वैधव्य जीवन काट कर अपनी जिम्मेदारियां निभाती हुई वृद्धावस्था के कारण शरीर छोड़ गयी. बेला को यद्यपि ये बात मालूम थी कि मृत्यु एक शाश्वत सत्य है, हर देहधारी को इसे एक ना एक दिन छोड़ कर जाना ही होता है, फिर भी उसके लिए ईजा का चले जाना सबसे बड़ी त्रासदी रही. वह नित्यप्रति ईजा को अपने सपनों में देखा करती थी. उनके चित्रों को पुष्पांजलि देती और स्मरण करके आंसू बहाया करती थी. उसे ईजा के देहावसान पर पति के वियोग से भी ज्यादा विषाद हुआ. समय किसी के कहने से रुकता नहीं है. ज्यों हर बरसात के बाद नई घास-वनस्पतियां उग आती हैं, इस सँसार में भी नई उत्पत्ति होती जाती है. आज ठीक वार्षिक श्राद्ध के दिन चारु की पत्नी ने किलकारी मारती हुई एक कन्या को घर में नए सदस्य के रूप में ला दिया तो परिथितिजन्य आनन्द यह हुआ है कि बकौल बेला पाण्डेय, ईजा पुनर्जन्म लेकर आ गयी है.
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गीता कहती है कि मृत्यु के समय जिस विचार का प्राधान्य रहता है, अगला जन्म वहीं मिलता है। रामेश्वरी देवी के मन में परिवार का प्यार बसता था। ब्रायन वीज़ के प्रयोग भी यही इंगित करते हैं कि परिवार के लोग हर जन्म में भिन्न भिन्न संबंधों में आपके पास जन्म लेते रहते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत संभव है !
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