गुरुवार, 12 जनवरी 2012

कुलीन


नैनीताल, भवाली, व रामगढ़ क्षेत्रों में बहुत से राज नेताओं, भूतपूर्व नरेशों, दीवानों तथा धन्ना सेठों की अनेक कोठियां हैं. आजादी से पहले कई अंग्रेजों ने भी अपनी-अपनी एस्टेट्स बना रखी थी. वे जाते समय अपनी जायदाद को खुर्द-बुर्द कर गए अथवा अपने सेवकों के नाम करा गए.

गर्मियों में जब देश का मैदानी हिस्सा लू से झुलसता है तो ये कोठियां आबाद हो जाती हैं अन्यथा साल के बाकी महीनों में चौकीदार, नौकर, या केयरटेकर यहाँ राज करते हैं.

शिल्पकार बचीराम की जवान विधवा खिमुली, किस्मत की मारी, किसी रिश्तेदार के माध्यम से आश्रय ढूढते हुए यहाँ आ गयी थी और यहीं बिसनगढ़ के दीवान साहब की कोठी में उसे काम मिल गया. कुछ सालों के बाद उसने यहीं एक बेटे को जन्म दिया, उसका नाम रखा राम. राम का जैविक पिता कौन था ये खिमुली को भी नहीं पता क्योंकि परिस्थितियों ने उसको बहुसेजगामिनी बना दिया था. राम अपनी माँ के साये में बड़ा होने लगा. वह देखने में बहुत सुन्दर, गोरा और हष्ट-पुष्ट था. एक बार दीवान साहब उसे अपने साथ राजपुताना ले आये और अपनी सेवादारी में रख लिया. कुछ बर्षों बाद खिमुली मर गयी तो राम दुबारा पहाड़ नहीं लौटा. जब वह जवान हो गया तो दीवान साहब ने उसे अपनी रियासत की पुलिस में भर्ती करवा दिया. नाम लिखा गया रामसिंह. रामसिंह बाद में मुंशी हो गया था इसलिए लोग उसे असल नाम से ज्यादा मुंशी नाम से जानते थे. यही उसकी जाति हो गयी. चूँकि उन दिनों जाति-पाति का बड़ा झमेला होता था इसलिए मुंशी को बहुत समय तक कोई जीवन साथी नहीं मिल सकी. पर कहते हैं कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं, ठिकाने की ही एक सेविका की बेटी, जो उसी की तरह अनाम खानदान की थी, के साथ उसका औपचारिक ब्याह हो गया.

इस बीच देश आजाद हो गया था और रियासत का राजस्थान राज्य में विलय हो गया.

रामसिंह मुंशी का बेटा विवेकसिंह मुंशी देखने में सुन्दर और पढ़ने लिखने में बुद्धिमान निकला, हाईस्कूल तक पढ़ने के बाद अध्यापन के लिए आवश्यक योग्यता की ट्रेनिंग लेकर, सरकारी स्कूल में अध्यापक हो गया. कालांतर में वह प्रधानाध्यापक हुआ. उसका रिश्ता एक चौहान परिवार में हुआ.

विवेकसिंह मुंशी के दो पुत्र हुए, बड़ा त्रिलोकसिंह मुंशी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के पद पर टाटा उद्योग में जमशेदपुर में कार्यरत है. अखबार में मैट्रिमोनियल द्वारा उसका विवाह इंदौर के एक ठाकुर परिवार की प्रोफ़ेसर कन्या के साथ हुआ है. छोटा बेटा जिसे बचपन में प्यार से सिल्लू पुकारा जाता था बड़ा होकर पुष्पेन्द्र सिंह मुंशी हो गया है. पिलानी से बी.टेक. करके मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग में स्थित एक बिड़ला उद्योग में असिस्टेंट मैनेजर है. गत वर्ष उसने अपनी प्रेयसी मृदुला शर्मा से बिधिवत विवाह कर लिया है. मृदुला शर्मा, पंडित राम किशोर शर्मा शास्त्री की पुत्री है. वह एम.सी.ए. में गोल्ड मेडलिस्ट रही है.

पंडित राम किशोर शर्मा शास्त्री से जब इस सम्बन्ध में वंश की कुलीनता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने दो अच्छी बातें कही कि इस सँसार में पैदा होने वाला कोई भी बच्चा अबैध नहीं होता है, और दूसरा, व्यक्ति की कुलीनता उसके चरित्र व व्यवहार में होती है.
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3 टिप्‍पणियां:

  1. हमारे समाज़ में जो आजकल कुलीनता और जाति और ख़ानदान के नाम पर अपने ही लोगों के प्रति बैरभाव पनप रहा है.. आपकी यह लघु-कथा शायद उस तरफ से हमारा ध्यान "कुल" की वास्तविक परिभाषा की ओर खीचने में सहायक हो रही है.

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  2. बहुत सारे प्रश्नों के उत्तर मांगती हैं यह पोस्ट ऑंखें खोलने में सक्षम आभार

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  3. शास्त्री जी की दोनों बातें सटीक एवं विद्वता से परिपूर्ण हैं, ज्ञान बोधक कथा.-- धन्यवाद.

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