पुरानी कहावत है कि पुरुष के भाग्य का कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. इस कहानी के नायक रूपचंद मौर्य गोरखपुर के पास एक साधनहीन, पिछड़े गाँव के मूल निवासी हैं. उनके मामा जी बरसों पहले नैनीताल जिले के भाबर (मैदानी) इलाके में आकर जमीन मालिकों के साथ मिलकर खेती-पाती का कारोबार करते रहे. उनके जैसे सैकड़ों-हजारों लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश से या बिहार से आकर रोजी-रोटी के चक्कर में खूब मेहनत मजदूरी करते हैं.
यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि तराई और भाबर की खेती इन्ही ’साझेदारों’ के बल पर चलती है. धरती बहुत उपजाऊ है और पानी की भी कमी नहीं है पर खेती का काम ऐसा है कि सर्दी हो, गर्मी हो, या बरसात हो, चौबीसों घन्टे लगे रहना पड़ता है. मेहनत का फल जब लोगों के सामने आता है तो वे कहते हैं, “इन पूरबियों -बिहारियों के हाथों में जादू होता है.” चाहे रबी की फसल हो या खरीफ की, इनको खूब फलती है. बीच बीच में कैश-क्रॉप (सब्जी-फल-कन्द) भी उगाते हैं. नतीजन यह इलाका इनकी मेहनत की वजह से समृद्ध है. आज तो स्थिति यह है कि ये खेतिहर मजदूर झोपडियों में रहते रहते अपने निजी पक्के घरों में आ गए हैं.
हाँ तो, रूपचंद मौर्य बचपन में ही अपने मामा जी पास आया और उनकी खेती में हाथ बँटाते हुए स्कूल भी जाने लगा. उसने स्थानीय हाईस्कूल से दसवीं पास कर ली; ये दीगर बात है कि डिविजन तीसरा ही आ पाया. एक दिन जब वह मंडी में आड़तिया के पास टमाटरों की पेटियां पहुंचाने गया तो आड़तिया ने उसे एक पेटी टमाटरों की लेकर अल्मोड़ा के डी.एम. को पहुँचाने का काम सौंप दिया. संयोग था कि उनके बंगले पर उसकी मुलाक़ात खुद डी.एम. साहब से हो गयी. उन्होंने रूपचंद से उसकी कैफियत पूछी और पूछा, "नौकरी करोगे?”
रूपचंद को मानो मुँह माँगी मुराद मिल गयी. उन्होंने उसे सिफारिशी पत्र के साथ हार्टीकल्चर डिपार्टमेंट के डेप्युटी डाईरेक्टर, नैनीताल, के पास भेज दिया. डी.एम. साहब के पसीजने व हमदर्दी का विशेष कारण यह भी था कि वे स्वयं पिछड़ी जाति से थे. हर पिछड़े को आगे बढ़ाने का भाऊ साहेब अम्बेडकर जी का विचार उनमें कूट कूट कर भरा था.
बहरहाल, रूपचंद मौर्य चौखुटिया, अल्मोड़ा के सरकारी बागान में निगरानी कर्मचारियों में शामिल हो गया. वहाँ पर नर्सरी के अलावा आड़ू, नाशपाती, खुबानी, प्लम, चेरी आदि अनेक प्रकार के फलों के पेड़ थे. फल-फूलों कों कीट-पतंगों से बचाने के लिए उचित कीटनाशक दवाओं का प्रयोग वैज्ञानिक तरीकों से होता है. लेकिन फसल को जंगली चिड़ियों से बहुत नुकसान पहुंचता है. खासतौर पर तोते तो खाते कम हैं, बर्बाद ज्यादा कर देते हैं. इसलिए चिड़ियों को भगाने के लिए निगरानी कर्मचारियों को तैनात किया जाता है. जो टीन-कनस्टर बजा कर, सीटियाँ बजा कर, मुँह से आवाजें निकाल कर, फायर गन से पटाखे छोड़ कर दिन भर चिड़ियों को उड़ाते रहते हैं. नायक रूपचंद को भी चिड़ियों को उड़ाने का काम मिल गया.
ऑफ सीजन में वह एक बार डी.एम. साहब से मिलने अल्मोड़ा जा पहुँचा. वह उनके अहसान के लिए कृतज्ञता भी प्रकट करना चाहता था, पर डी.एम. साहब तो बड़े दयालु थे. उन्होंने उससे कहा, “जिंदगी भर चिडिया भगानी हैं क्या? आगे की कक्षाओं की परीक्षा देते रहो, अपनी योग्यता बढ़ाओ. रिजर्वेशन का लाभ उठाओ. जल्दी ऑफिसर बन जाओ.”
जब सदगुरू मिल जाता है और लगन हो तो मंजिल की तरफ बढ़ना आसान हो जाता है. डी.एम. साहब ने रूपचंद को आसान रास्ता बताया कि “नेपाल की त्रिभुवन युनिवर्सिटी से सीधे बी.ए. कर सकते हो." उन्होंने उसको इस विषय में बहुत सी जानकारी दी. रूपचंद अति उत्साहित होकर पढ़ाई भी करने लगा, पर बुनियाद कमजोर होने के कारण दो बार परिक्षा में फेल हो गया. अंतत: जब पास हो गया तो किस्मत का दरवाजा खुलता चला गया. वह ऑफिस में क्लर्क बना दिया गया. कालान्तर में सुपरवाईजर, इंस्पेक्टर, तथा सुपरींटेंडेंट बनते हुए सीढ़ियाँ चढ़ता चला गया. इस तेजी से हुई पदोन्नति में जातिगत आरक्षण का बहुत बड़ा योगदान था.
अपने देश में अधिकाँश सरकारी विभागों के कर्मचारी नौकरी में रहते हुए भी पेंशन सी भोगते हैं. काम करो तो करो, अन्यथा सब निभ जाता है. यह जुमला कई जगह फिट होता है, "दास मलूका कह गए सबके दाता राम." काम करने वाले करते भी हैं, पर ऑफिस में दर्जनों लोग दिन भर मटरगश्ती करके समय निकाल जाते हैं. अफसर भी उन्हीं जैसे है--खुशामद पसन्द और रिश्वतखोर. गड़बड़झाला इतना बड़ा है कि नमक में आटा सा हो गया है. रूपचंद मौर्य भी इसी मुख्यधारा में बहता चला गया.
जिला हार्टीकल्चर के तब डेप्युटी डाईरेक्टर एक मिस्टर डी.जोशी हुआ करते थे. वे लंबे समय तक इस पद पर विराजते रहे. उनके ऑफिस के ठाठ निराले थे. उनका रहन-सहन व बर्ताव बिलकुल अंग्रेजों का जैसा रहता था. उनकी एक खूबसूरत स्टेनो सेक्रेटरी थी, मिसेज चेरियन. पता नहीं वह सुदूर दक्षिण केरला से कैसे लखनऊ, फिर नैनीताल पहुँची. डिपार्टमेंट के लोग उसे ‘चेरियन’ के बजाय ‘चिड़िया मैडम’ कहा करते थे.
उत्तर प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण होते ही एस.सी.\एस.टी. कर्मचारियों को प्राथमिकता मिल गयी. अगड़ों की वरीयता धरी की धरी रह गयी. इस नियम से रूपचंद मौर्य भी लाभान्वित हुए. उनको डेप्युटी डाईरेक्टर के पद पर प्रमोशन देते हुए पिथौरागढ़ स्थानातरण का आदेश मिला, लेकिन किसी मिनिस्टर की सिफारिश लगा कर कोई दूसरा ही सज्जन वहां नियुक्ति पा गया. इस तरह रूपचंद मौर्य को अपनी ही जगह पर प्रमोशन मिल गया.
अब रूपचंद मौर्य डेप्युटी डाइरेक्टर की कुर्सी पर विराजमान हो गए, और जब ‘चिड़िया मैडम’ उनके केबिन में आती तो वे बड़े अदब से उसे बैठने को कहते. मिसेज चेरियन बहुत अनुभवी महिला हैं. उनका सारा प्रशासनिक कार्य संभालती हैं. डाईरेक्टर साहब तो बस साइन भर कर देते हैं. मन ही मन कहते हैं, 'आरक्षण जिंदाबाद’.
एक पुराना कर्मचारी जो साहब के साथ कभी बागान में चिड़िया उड़ाता था, व्यंग्य पूर्वक अपने साथियों से कह रहा था, “जो चिड़िया उड़ाते थे, अब चिड़िया बैठाते हैं.”
यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि तराई और भाबर की खेती इन्ही ’साझेदारों’ के बल पर चलती है. धरती बहुत उपजाऊ है और पानी की भी कमी नहीं है पर खेती का काम ऐसा है कि सर्दी हो, गर्मी हो, या बरसात हो, चौबीसों घन्टे लगे रहना पड़ता है. मेहनत का फल जब लोगों के सामने आता है तो वे कहते हैं, “इन पूरबियों -बिहारियों के हाथों में जादू होता है.” चाहे रबी की फसल हो या खरीफ की, इनको खूब फलती है. बीच बीच में कैश-क्रॉप (सब्जी-फल-कन्द) भी उगाते हैं. नतीजन यह इलाका इनकी मेहनत की वजह से समृद्ध है. आज तो स्थिति यह है कि ये खेतिहर मजदूर झोपडियों में रहते रहते अपने निजी पक्के घरों में आ गए हैं.
हाँ तो, रूपचंद मौर्य बचपन में ही अपने मामा जी पास आया और उनकी खेती में हाथ बँटाते हुए स्कूल भी जाने लगा. उसने स्थानीय हाईस्कूल से दसवीं पास कर ली; ये दीगर बात है कि डिविजन तीसरा ही आ पाया. एक दिन जब वह मंडी में आड़तिया के पास टमाटरों की पेटियां पहुंचाने गया तो आड़तिया ने उसे एक पेटी टमाटरों की लेकर अल्मोड़ा के डी.एम. को पहुँचाने का काम सौंप दिया. संयोग था कि उनके बंगले पर उसकी मुलाक़ात खुद डी.एम. साहब से हो गयी. उन्होंने रूपचंद से उसकी कैफियत पूछी और पूछा, "नौकरी करोगे?”
रूपचंद को मानो मुँह माँगी मुराद मिल गयी. उन्होंने उसे सिफारिशी पत्र के साथ हार्टीकल्चर डिपार्टमेंट के डेप्युटी डाईरेक्टर, नैनीताल, के पास भेज दिया. डी.एम. साहब के पसीजने व हमदर्दी का विशेष कारण यह भी था कि वे स्वयं पिछड़ी जाति से थे. हर पिछड़े को आगे बढ़ाने का भाऊ साहेब अम्बेडकर जी का विचार उनमें कूट कूट कर भरा था.
बहरहाल, रूपचंद मौर्य चौखुटिया, अल्मोड़ा के सरकारी बागान में निगरानी कर्मचारियों में शामिल हो गया. वहाँ पर नर्सरी के अलावा आड़ू, नाशपाती, खुबानी, प्लम, चेरी आदि अनेक प्रकार के फलों के पेड़ थे. फल-फूलों कों कीट-पतंगों से बचाने के लिए उचित कीटनाशक दवाओं का प्रयोग वैज्ञानिक तरीकों से होता है. लेकिन फसल को जंगली चिड़ियों से बहुत नुकसान पहुंचता है. खासतौर पर तोते तो खाते कम हैं, बर्बाद ज्यादा कर देते हैं. इसलिए चिड़ियों को भगाने के लिए निगरानी कर्मचारियों को तैनात किया जाता है. जो टीन-कनस्टर बजा कर, सीटियाँ बजा कर, मुँह से आवाजें निकाल कर, फायर गन से पटाखे छोड़ कर दिन भर चिड़ियों को उड़ाते रहते हैं. नायक रूपचंद को भी चिड़ियों को उड़ाने का काम मिल गया.
ऑफ सीजन में वह एक बार डी.एम. साहब से मिलने अल्मोड़ा जा पहुँचा. वह उनके अहसान के लिए कृतज्ञता भी प्रकट करना चाहता था, पर डी.एम. साहब तो बड़े दयालु थे. उन्होंने उससे कहा, “जिंदगी भर चिडिया भगानी हैं क्या? आगे की कक्षाओं की परीक्षा देते रहो, अपनी योग्यता बढ़ाओ. रिजर्वेशन का लाभ उठाओ. जल्दी ऑफिसर बन जाओ.”
जब सदगुरू मिल जाता है और लगन हो तो मंजिल की तरफ बढ़ना आसान हो जाता है. डी.एम. साहब ने रूपचंद को आसान रास्ता बताया कि “नेपाल की त्रिभुवन युनिवर्सिटी से सीधे बी.ए. कर सकते हो." उन्होंने उसको इस विषय में बहुत सी जानकारी दी. रूपचंद अति उत्साहित होकर पढ़ाई भी करने लगा, पर बुनियाद कमजोर होने के कारण दो बार परिक्षा में फेल हो गया. अंतत: जब पास हो गया तो किस्मत का दरवाजा खुलता चला गया. वह ऑफिस में क्लर्क बना दिया गया. कालान्तर में सुपरवाईजर, इंस्पेक्टर, तथा सुपरींटेंडेंट बनते हुए सीढ़ियाँ चढ़ता चला गया. इस तेजी से हुई पदोन्नति में जातिगत आरक्षण का बहुत बड़ा योगदान था.
अपने देश में अधिकाँश सरकारी विभागों के कर्मचारी नौकरी में रहते हुए भी पेंशन सी भोगते हैं. काम करो तो करो, अन्यथा सब निभ जाता है. यह जुमला कई जगह फिट होता है, "दास मलूका कह गए सबके दाता राम." काम करने वाले करते भी हैं, पर ऑफिस में दर्जनों लोग दिन भर मटरगश्ती करके समय निकाल जाते हैं. अफसर भी उन्हीं जैसे है--खुशामद पसन्द और रिश्वतखोर. गड़बड़झाला इतना बड़ा है कि नमक में आटा सा हो गया है. रूपचंद मौर्य भी इसी मुख्यधारा में बहता चला गया.
जिला हार्टीकल्चर के तब डेप्युटी डाईरेक्टर एक मिस्टर डी.जोशी हुआ करते थे. वे लंबे समय तक इस पद पर विराजते रहे. उनके ऑफिस के ठाठ निराले थे. उनका रहन-सहन व बर्ताव बिलकुल अंग्रेजों का जैसा रहता था. उनकी एक खूबसूरत स्टेनो सेक्रेटरी थी, मिसेज चेरियन. पता नहीं वह सुदूर दक्षिण केरला से कैसे लखनऊ, फिर नैनीताल पहुँची. डिपार्टमेंट के लोग उसे ‘चेरियन’ के बजाय ‘चिड़िया मैडम’ कहा करते थे.
उत्तर प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण होते ही एस.सी.\एस.टी. कर्मचारियों को प्राथमिकता मिल गयी. अगड़ों की वरीयता धरी की धरी रह गयी. इस नियम से रूपचंद मौर्य भी लाभान्वित हुए. उनको डेप्युटी डाईरेक्टर के पद पर प्रमोशन देते हुए पिथौरागढ़ स्थानातरण का आदेश मिला, लेकिन किसी मिनिस्टर की सिफारिश लगा कर कोई दूसरा ही सज्जन वहां नियुक्ति पा गया. इस तरह रूपचंद मौर्य को अपनी ही जगह पर प्रमोशन मिल गया.
अब रूपचंद मौर्य डेप्युटी डाइरेक्टर की कुर्सी पर विराजमान हो गए, और जब ‘चिड़िया मैडम’ उनके केबिन में आती तो वे बड़े अदब से उसे बैठने को कहते. मिसेज चेरियन बहुत अनुभवी महिला हैं. उनका सारा प्रशासनिक कार्य संभालती हैं. डाईरेक्टर साहब तो बस साइन भर कर देते हैं. मन ही मन कहते हैं, 'आरक्षण जिंदाबाद’.
एक पुराना कर्मचारी जो साहब के साथ कभी बागान में चिड़िया उड़ाता था, व्यंग्य पूर्वक अपने साथियों से कह रहा था, “जो चिड़िया उड़ाते थे, अब चिड़िया बैठाते हैं.”
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रोचक .... और चिड़िया उनका सारा औफिस का काम भी करती हैं :)
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (19-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | अवश्य पधारें |सूचनार्थ |
जवाब देंहटाएंसबकी अपनी राम कहानी।
जवाब देंहटाएंअतिश्योक्ति ,पूरबियों ,परीक्षा ,
जवाब देंहटाएंएक पुराना कर्मचारी जो साहब के साथ कभी बागान में चिड़िया उड़ाता था, व्यंग्य पूर्वक अपने साथियों से कह रहा था, “जो चिड़िया उड़ाते थे, अब चिड़िया बैठाते हैं.”
वाह !कथा की कथा तंज का तंज .बेहतरीन .
राष्ट्र सारा उद्वेलित है पुरुषोत्तम जी पाण्डेय , क्या टिपण्णी करें .
जवाब देंहटाएंकभी लिखा गया था -
बाप बेटा बेचता है ,बाप बेटा बेचता है ,
भूख से बेहाल होकर राष्ट्र सारा देखता है .
दुर्भिक्ष पर ये पंक्तियाँ लिखी गई थीं कभी आज वहशियों ने जो दिल्ली में किया है उसने भी वैसी ही छटपटाहट पैदा की है राष्ट्र में लेकिन मनमोहन जी की नींद तब खराब होती है जब ऑस्ट्रेलिया में संदिग्ध अवस्था में कोई मुसलमान पकड़ा जाता है यह है सेकुलर चरित्र इस सरकार का औए एक अदद राजकुमार का जो कलावती की दावत उड़ाने फट पहुंचता है लेकिन फिलवक्त इस कथित युवा को सांप सूंघ गया है .
सोनिया जी जिनका भारत पे राज हैं खुद परेशान हैं क्या करूँ इस मंद बुद्धि का जो गत बरसों में वहीँ का वहीँ हैं ,इससे तो प्रियंका को लांच लरना था .
बलात्कृत युवती से उनका क्या लेना देना .कल बीस तारीख है इनका गुजरात से सूपड़ा साफ़ हो जाएगा और एक अदद राजकुमार की नींद उड़ जायेगी .
एक टिपण्णी ब्लॉग पोस्ट :
मंगलवार, 18 दिसम्बर 2012
चिड़िया उड़ाते थे...