आदमी यों ही बड़ा नहीं बनता है, उसके बड़प्पन या महानता के पीछे उसकी लगन, सच्चाई औए अध्यवसाय होता है. दुनिया भर में मानव जाति की सेवा करने वाले मनीषियों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपने चिरंतन कर्मों के द्वारा महत्ता प्राप्त की है.
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, जिसे B.H.U. के नाम से भी जाना जाता है, के वर्तमान विराट स्वरुप को देख कर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि इसके संस्थापक पण्डित मदन मोहन मालवीय जी थे, जो एक सनातनी व्यक्ति थे, तथा अंग्रेजी, हिन्दी व संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे. वे अच्छे वकील, समाज सुधारक और शिक्षाशास्त्री भी थे. बड़ी बात यह भी है कि वे स्वतन्त्रता संग्राम के पुरोधा भी रहे. ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लड़ाई में वे कई बार जेल भी गए. इसीलिये उनको ‘महामना’ यानि महान पुरुष की उपाधि मिली.
इस विश्वविद्यालय की विधिवत स्थापना संन १९१५ में हुई, लेकिन इसकी परिकल्पना उन्होंने सन १९०४ में ही कर डाली थी. डॉ.एनी बेसेंट के सेंट्रल हिन्दू कॉलेज का आधार उनको मिला, इतनी बड़ी परियोजना के लिए राजा-रजवाडों व सेठों के द्वारा प्रदत्त धन राशि का सदुपयोग किया गया. महामना मालवीय जी ने लिखा है कि चंदे की शुरुआत एक गरीब औरत द्वारा दिये गए एक पैसे से हुई थी. उनके बारे में प्रेरणास्पद संस्मरणों में दिल को छूने वाली एक धटना इस प्रकार है:
दक्षिण में हैदराबाद रियासत के तत्कालीन ‘निजाम’ अकूत सम्पति के मालिक थे. उनसे भी अपने संस्कृत विश्वविद्यालय के लिए चन्दा माँगने मालवीय जी हैदराबाद गए. निजाम आदतन बेहद कंजूस व अंतर्मुखी व्यक्ति थे. उन्होंने चन्दा देने से इनकार कर दिया. हैदराबाद प्रवास से लौटने से पहले उन्होंने वहाँ पर एक सेठ की शव यात्रा में उसके परिजनों द्वारा शव पर परखे गए चांदी के सिक्कों को अन्य भिखारियों की तरह उठाना शुरू कर दिया. किसी परिचित उनको पहचान लिया और सिक्के उठाने का प्रयोजन पूछा तो उन्होंने बेबाकी से कहा, “कोई ये ना कहे कि मैं हैदराबाद रियासत से खाली हाथ लौटा हूँ, इसलिए ये सिक्के उठा रहा हूँ.” यह बात दूर तक गयी और दान दाताओं की कमी नहीं रही.
इस महान शिक्षण संस्थान की बुनियाद की एक एक ईंट गवाह है कि महामना मदन मोहन मालवीय जी ने अथक प्रयास करके इस आधुनिक नालंदा को स्थापित किया था. आज बनारस तथा मिर्जापुर के दो बड़े अलग अलग परिसरों में यह विश्वविद्यालय फैला हुआ है. इसकी इस विराट परिकल्पना के चितेरे महामना को शत् शत् प्रणाम.
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, जिसे B.H.U. के नाम से भी जाना जाता है, के वर्तमान विराट स्वरुप को देख कर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि इसके संस्थापक पण्डित मदन मोहन मालवीय जी थे, जो एक सनातनी व्यक्ति थे, तथा अंग्रेजी, हिन्दी व संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे. वे अच्छे वकील, समाज सुधारक और शिक्षाशास्त्री भी थे. बड़ी बात यह भी है कि वे स्वतन्त्रता संग्राम के पुरोधा भी रहे. ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लड़ाई में वे कई बार जेल भी गए. इसीलिये उनको ‘महामना’ यानि महान पुरुष की उपाधि मिली.
इस विश्वविद्यालय की विधिवत स्थापना संन १९१५ में हुई, लेकिन इसकी परिकल्पना उन्होंने सन १९०४ में ही कर डाली थी. डॉ.एनी बेसेंट के सेंट्रल हिन्दू कॉलेज का आधार उनको मिला, इतनी बड़ी परियोजना के लिए राजा-रजवाडों व सेठों के द्वारा प्रदत्त धन राशि का सदुपयोग किया गया. महामना मालवीय जी ने लिखा है कि चंदे की शुरुआत एक गरीब औरत द्वारा दिये गए एक पैसे से हुई थी. उनके बारे में प्रेरणास्पद संस्मरणों में दिल को छूने वाली एक धटना इस प्रकार है:
दक्षिण में हैदराबाद रियासत के तत्कालीन ‘निजाम’ अकूत सम्पति के मालिक थे. उनसे भी अपने संस्कृत विश्वविद्यालय के लिए चन्दा माँगने मालवीय जी हैदराबाद गए. निजाम आदतन बेहद कंजूस व अंतर्मुखी व्यक्ति थे. उन्होंने चन्दा देने से इनकार कर दिया. हैदराबाद प्रवास से लौटने से पहले उन्होंने वहाँ पर एक सेठ की शव यात्रा में उसके परिजनों द्वारा शव पर परखे गए चांदी के सिक्कों को अन्य भिखारियों की तरह उठाना शुरू कर दिया. किसी परिचित उनको पहचान लिया और सिक्के उठाने का प्रयोजन पूछा तो उन्होंने बेबाकी से कहा, “कोई ये ना कहे कि मैं हैदराबाद रियासत से खाली हाथ लौटा हूँ, इसलिए ये सिक्के उठा रहा हूँ.” यह बात दूर तक गयी और दान दाताओं की कमी नहीं रही.
इस महान शिक्षण संस्थान की बुनियाद की एक एक ईंट गवाह है कि महामना मदन मोहन मालवीय जी ने अथक प्रयास करके इस आधुनिक नालंदा को स्थापित किया था. आज बनारस तथा मिर्जापुर के दो बड़े अलग अलग परिसरों में यह विश्वविद्यालय फैला हुआ है. इसकी इस विराट परिकल्पना के चितेरे महामना को शत् शत् प्रणाम.
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एक महान कार्य के लिये विनम्रता की एक ज्योति प्रस्तुत करती यह घटना।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब वाह!
जवाब देंहटाएंआप शायद इसे पसन्द करें-
ऐ कवि बाज़ी मार ले गये!
महामना कहलाने के सच्चे अधिकारी
महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय जी को
शत शत नमन !
वंदन !
प्रणाम !
आदरणीय पुरुषोत्तम पाण्डेय जी
अच्छी प्रविष्टि के लिए आभार!
नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
behad prerak prasang...SIR..
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