शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

न+इति

चोर, उचक्के, लम्पट, लफंगे, बाहुबली, लुटेरे या समाजकंटक हर युग में रहे हैं; उनका अपना इतिहास है, लेकिन पहले समय में सज्जन, ईमानदार व चरित्रवान लोगों का प्रतिशत ज्यादा होता था. हमारे देश की स्वतन्त्रता के संक्रमण काल (आगे/पीछे) में समाज के आदर्श के रूप में एक नया शब्द उभर कर आया “नेता”. नेता का शाब्दिक अर्थ होता है नेतृत्व करने वाला, पर अब अर्थ का अनर्थ यह हो गया है "न+इति” यानि जिसकी कोई इति नहीं होती है.

एक समय था जब ‘नेता जी’ कहने पर एक पूज्य भाव मन में उभरता था. वह ऐसा व्यक्तित्व माना जाता था, जो निष्पाप व निष्कलंक होता था. धीरे धीरे ‘नेता’ सत्तानशीं या सत्तालोलुप व्यक्ति का पर्याय बन गया. अब तो इसका इतना पतन हो गया है कि नेता कहने पर गाली का आभास होने लगता है क्योंकि सारे कलुषित कारनामें नेताओं से ही शुरू होते हैं. अपवाद बहुत कम ही मिलते हैं.

रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने एक चौपाई में लिखा है, “समरथ को नहिं दोष गुसांई," यानि व्यक्ति अगर शक्ति संम्पन्न हो तो उसके अवगुण गौण हो जाते हैं. आज हम इसे प्रत्यक्ष देख रहे हैं/ अनुभव कर रहे हैं कि नेता शक्ति संपन्न होता है, और वह हर प्रकार के सामाजिक शोषण को अपना विशेषाधिकार समझता है. कार्यपालिका की मशीनरी व न्यायपालिका असहाय होकर नेता जी को तन्त्र का मालिक समझते हुए ज़िंदा मक्खियाँ निगलने को मजबूर हैं.

एक डबलरोटी चुराने वाला भूखा व्यक्ति पकड़े जाने पर जमानत नहीं करा पाता है और जेल में लम्बे समय तक चक्की पीसता रहता है, दूसरी ओर सार्वजनिक धन में से करोड़ों पर अनैतिक रूप से हाथ साफ़ करने वाले, घोषित अपराधी राजनैतिक मंचों पर सरकारी बन्दूक धारियों के संरक्षण में सुरक्षित रह कर लोट-पोट खेलते हैं.

कहते हैं कि नव प्रजातंत्र में यह कमजोरी स्वाभाविक तौर पर आ जाती है. संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश में भी सही मायनों में प्रजातंत्र स्थापित होने में दो सौ वर्ष लगे थे, पर हमारे देश में जहाँ अनादि काल से सनातन सांस्कृतिक विरासत में व्यक्ति के चरित्र की शुद्धता हर कोण से महत्वपूर्ण माना गया है, यह अंधेर कैसे पैदा हो गया? जितने पन्ने पलटो, हर तरफ अनाचार के दस्तावेज मिलते हैं. "यथा राजा, तथा प्रजा" वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. गुड-गोबर एक हुआ सा लगता है.

सुबह सुबह अखबारों की सुर्खियाँ पढ़ने को मन नहीं करता है, क्योंकि उनमें अधिकतर भ्रष्टाचार, अत्याचार और बलात्कार जैसे विषयों के समाचार छपे रहते हैं. हिंसा, छल-कपट, द्वेष पर केंद्रित विचारों का वमन होता है.

मैं अनीश्वरवादी नहीं हूँ और ना ही निराशावादी हूँ इसलिए इसे समय की बलिहारी समझ कर देखता हूँ. विश्वास करता हूँ कि प्रबुद्ध जनों में सम्पूर्ण जागरण व उत्थान की प्रक्रिया स्वत: शुरू होगी. अवश्य होगी.
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4 टिप्‍पणियां:

  1. समय के साथ बदलाव आए .... उम्मीद पर दुनिया कायम है ।

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  2. कोई न कोई तो आकर समरथ को भी रगड़ेगा, एक दिन।

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  3. बहुत कसावदार भाषा में लिखा गया सामयिक आलेख .आम आदमी पार्टी से उम्मीदें हैं एक नै शुरुआत हो ,ईमानदार आदमी रानजीति में आने का सोचे ,बेशल शुरू में आम आदमी पार्टी पहले पांच दस सालों में कोई करिश्मा न कर पाए लेकिन एक राह बनेगी ईमानदार लोगों के आगे आने के लिए .

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  4. बहुत कसावदार भाषा में लिखा गया सामयिक आलेख .आम आदमी पार्टी से उम्मीदें हैं एक नै शुरुआत हो ,ईमानदार आदमी रानजीति में आने का सोचे ,बेशल शुरू में आम आदमी पार्टी पहले पांच दस

    सालों में कोई करिश्मा न कर पाए लेकिन एक राह बनेगी ईमानदार लोगों के आगे आने के लिए .

    नेताजी अब मुलायम सिंह यादव जैसों को कहा जाता है .

    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    शनिवार, 22 दिसम्बर 2012
    College girl dies after horror at BF's hand

    http://veerubhai1947.blogspot.in/

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