हिदुकुश से कुछ नीचे हिन्दुस्तान की दहलीज पर बादशाह अल्लामा हैदर का साम्राज्य था. उस काल के बारे में इतिहास के पन्नों में इतना ही मिलता है कि तब तम्बाकू का बीज यहाँ तक नहीं पँहुचा था.
अल्लामा की एक प्यारी सी बेटी थी जेनब. बेटियों के जवान होने का पता नहीं चलता है, वे एकाएक बड़ी हो जाती हैं. अल्लामा बड़े अल्लाह वाले बादशाह थे. उनके दरबार में बड़े बड़े आलिम भी थे, जिनसे वे सलाह मशविरा किया करते थे. बिटिया की शादी के लिए आस-पास के तमाम राज्यों से संपर्क किया गया पर जो रिश्ते आये सभी को जेनब ने नकार दिये. उनमें से कोई भी शहजादा उसे पसंद नहीं आया. बादशाह बहुत परेशान रहने लगे.
एक दिन एक युवा हिदू सन्यासी राजमहल के पास से गुजरा और उस पर जेनब की नजर पड़ गयी. सन्यासी देखने में सुन्दर-सुडौल तो था ही साथ ही उसके सर का आभामंडल (नूर) इतना बड़ा था कि प्रकाशपुंज की तरह दमक रहा था. जेनब ने अपनी दासी के मार्फत अब्बा हुजूर को सलाम भेजते हुए पैगाम दिया कि ‘लड़का उसको पसंद आ गया है.’
अल्लामा की एक प्यारी सी बेटी थी जेनब. बेटियों के जवान होने का पता नहीं चलता है, वे एकाएक बड़ी हो जाती हैं. अल्लामा बड़े अल्लाह वाले बादशाह थे. उनके दरबार में बड़े बड़े आलिम भी थे, जिनसे वे सलाह मशविरा किया करते थे. बिटिया की शादी के लिए आस-पास के तमाम राज्यों से संपर्क किया गया पर जो रिश्ते आये सभी को जेनब ने नकार दिये. उनमें से कोई भी शहजादा उसे पसंद नहीं आया. बादशाह बहुत परेशान रहने लगे.
एक दिन एक युवा हिदू सन्यासी राजमहल के पास से गुजरा और उस पर जेनब की नजर पड़ गयी. सन्यासी देखने में सुन्दर-सुडौल तो था ही साथ ही उसके सर का आभामंडल (नूर) इतना बड़ा था कि प्रकाशपुंज की तरह दमक रहा था. जेनब ने अपनी दासी के मार्फत अब्बा हुजूर को सलाम भेजते हुए पैगाम दिया कि ‘लड़का उसको पसंद आ गया है.’
कैफियत के अनुसार तलाश हुई तो मालूम हुआ कि वह सन्यासी अल्लामा के ही राज्य में कुछ दूरी पर जंगल के एक टीले पर अपनी एक छोटी सी कुटिया बनाकर रहता है, योग साधना करता है और कभी-कभी भिक्षा के लिए बस्ती में आता है. बादशाह को बहुत राहत महसूस हुई कि कोई लडका आखिर जेनब को पसंद आ ही गया. उसने अपने वजीर को नजराने के साथ योगी-सन्यासी के पास भेजा. वजीर ने सन्यासी को अपने आने का मकसद बताया और नजराना पेश किया. योगी गंभीर मुद्रा में आ गया और नम्रता से बोला, “बादशाह से कहियेगा कि मैं हिन्दू सन्यासी हूँ. संसार के बंधनों से मुक्त हो चुका हूँ. मेरा रिश्ता परमात्मा के अलावा किसी से नहीं जुड सकता है. क्षमा चाहता हूँ.” सन्यासी ने नजराना भी लौटा दिया. वजीर ने बहुत अनुनय-विनय की पर सन्यासी पर कोई असर नही. हुआ. वजीर लौट आया. बादशाह ने पुन: दो वजीरों को इस प्रस्ताव के साथ भेजा कि बादशाह उसे आधा राज्य भी देंगे. पर नहीं वह फिर भी नहीं माना.
बादशाह की तेवारें चढ गयी. दरबार बुलाया गया. इस विषय में बहुत सी बातें हुई. एक वजीर ने कहा कि बादशाह के राज्य में रहते हुए योगी ने हुकुमउदूली की है इसलिए कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. क्या सजा दी जाए? इस पर चर्चा हुई. हाथ-पैर काट देने व सूली चढ़ा देने जैसे प्रस्ताव आये. एक हकीम (जो कभी तुर्की तक घूम आयी थे) ने कहा कि “इस आदमी को अपने नूर (आभा मण्डल) पर घमंड है, इसकी यही सजा होनी चाहिए कि इसका नूर खतम कर दिया जाए.” इसके लिए उसने बताया कि तुर्की में एक ऐसी वनस्पति पैदा होती है जो नूर को स्याह कर देगी. उसकी बात बादशाह की समझ में आ गयी. फिर क्या था तुरत-फुरत में आदमी तुर्की भेजे गए. वहाँ से दस ऊँटों पर लाद कर उस वनस्पति के पत्ते व साथ में बीज भी मंगवाए गए. पत्तों से ऊदबत्ती (अगरबत्ती) बनवाई गयी. शाम सुबह् योगी की कुटिया के आस-पास घेरे में जलाई जाने लगी. परिणाम वास्तव में सटीक बैठा. १५-२० दिनों के धुएँ से ही योगी का चमकने वाला चेहरा काला पड़ गया. रौनक गायब हो गयी.
बादशाह ने जब हकीम से पूछा, “इस जादुई वनस्पति का नाम क्या है?” तो हकीम ने बताया, “इसको तम्बाकू कहा जाता है, और ये अच्छे-अच्छों का बेडा गर्क करने की ताकत रखता है.”
(इस कहानी उद्देश्य यानि अन्दर की बात यही है कि तम्बाकू खाने या पीने से शरीर का सत्यानाश होता है. यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि मुँह का, गले का, आमाशय का तथा फेफड़ों के कैंसर का श्रोत तम्बाकू ही है.)