रियासतों के राजस्थान में विलय से पहले यह राज्य राजपुताना कहलाता था. छोटे बड़े राजघराने अंग्रेजों से तालमेल बिठा कर काम करते थे, कुछ बहुत छोटी रियासतें अभी भी मध्य युग में जी रही थी. ऐसी ही एक रियासत थी ठिठोलीपुर. वहाँ के राजा पीढ़ियों से, यथा नाम तथा गुण, ठिठोली, भाट-बहुरूपियों और भोग-विलास में समय बिताते थे. आख़िरी राजा गजबसिंह भी इसके अपवाद नहीं थे. वे अपनी मस्ती में मस्त रहते थे. राज-काज कारिंदों के भरोसे चल रहा था. अत: स्वाभाविक था कि कारिंदे स्वछंद व भृष्ट होते चले गए. आम लोग त्रस्त थे. आजकल की ही तरह भृष्टाचार को शिष्टाचार के रूप में लेने लगे थे. निरंकुशता का ज़माना था. बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे? कुछ लोग जरूर कुलबुला रहे थे.
परिस्थितियां अपने आप क्रान्ति की मशाल पकड़ने वाले किसी नायक को सामने लाती हैं. जैसे आज सन २०११ मे अन्ना हजारे एक क्रांतिदूत के रूप में उभरे हैं, ठीक इसी तरह मन्नालाल नाई, राजा गजबसिंह के दरबार में जा खडा हुआ और बोला, "महाराज, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि आपके राज्य में चारों तरफ पोल ही पोल चल रही है." राजा ने उसकी बात को ठिठोली में लेते हुए कहा, "अगर हर तरफ पोल है तो तू भी जा किसी पोल में घुस जा." सभी दरबारी मन्नालाल पर हँस पड़े. मन्नालाल अपना सा मुँह लेकर वापस हो गया लेकिन उसका शातिर दिमाग खुजलाने लगा. उसने एक प्लान बनाया और दूसरे ही दिन श्मसान घाट को जाने वाले मार्ग पर लकड़ी का एक बेरियर लगा दिया. अब धंधा चालू हो गया, जब भी कोई मुर्दा आये तो वह बेरियर उठाने की फीस पाँच-पाँच रुपये वसूलने लगा. लोगों के पूछने पर कहता था, "ये राजा जी का हुकम है. मैं राणी जी का साला हूँ."
राणी जी का साला है तो कौन हुज्जत करे? धंधा चल निकला. यों धंधा चल निकला. समय चक्र चलता रहा. एक दिन राजपरिवार के ही किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गयी. राजा लोग खुद श्मसान नहीं जाते थे, दीवान जी को भी मन्नालाल ने वही कैफियत दी कि, "राजा जी का हुकम है, मैं राणी जी का साला हूँ." दीवान जी ने व्यवस्था दी कि "अभी तो इसको टैक्स दो और कल इसे दरबार में पेश करो."
अगले दिन सिपाही उसे पकड़ कर दरबार में ले गए. राजा जी को बताया गया कि किस प्रकार मन्नालाल लोगों को लूट रहा है. राजा ने तल्ख़ तेवरों के साथ मन्नालाल से पूछा, "क्यों बे किस राणी जी का साला है तू?"
मन्नालाल चतुर था, बड़े अदब से नमन करके बोला, "हुजूर, आपने ही तो मुझे हुक्म दिया था कि मैं भी किसी पोल में घुस जाऊं. इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है."
राजा गजबसिंह ने इस घटना को बहुत गभीरता से लिया और तमाम प्रशासनिक सुधार शुरू कर दिए. भ्रष्टाचारियों को कोड़े लगने लगे. इसी दौरान रियासत का राजस्थान राज्य में विलय हो गया.
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