सोमवार, 22 अगस्त 2011

श्रमिक गीत

तू थक गया तो क्या हुआ,
   तेरा श्रम तो नहीं थका.
      तू धर्म मत छोड़ अपना
         तेरा धर्म क्या कभी थका.

पात्र विचलित हो सकता है,
   पौरुष कभी बिंधा नहीं .
      श्रम को असाध रही हो जो,
         ऐसी कोई विधा नहीं.

माना लक्ष्य दुर्गम है तेरा,
   पर लगन को क्या दुर्गम है ?
      सादा सा सिद्धांत शाश्वत -
         उत्पत्ति का निदान श्रम है.

धरती माँ से तेरा नाता-
   श्रम ही है, श्रम का विश्वास .
      श्रम-अश्रु ही मसि बनती आई-
          लिखने हर विकास इतिहास.

उठ, उठ अबेर ना हो,
   दिगंत का बुलावा सुन
      बना अब नए आयाम;
         उधडे ना जो, ऐसा बुन.

                 ***

2 टिप्‍पणियां:

  1. तू थक गया तो क्या हुआ,
    तेरा श्रम तो नहीं थका.
    तू धर्म मत छोड़ अपना
    तेरा धर्म क्या कभी थका.
    Kya baat hai Sir...awesome

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