मंगलवार, 23 अगस्त 2011

एक था जो सितारा बन गया

      स्वर्गीय महेंद्रकुमार बहुगुणा से मैं सन २००२ में फिलीपींस की राजधानी मनीला में मिला था. वह मेरे बच्चों का मित्र था. बहुमुखी प्रतिभा का धनी महेंद्र I.I.T. Roorkee से M.Tech. और बाद में अमेरिका में MBA. करके एक अमरीकी कंपनी Credent Technology Asia में बतौर टैक्नीकल मार्केटिंग मैनेजर काम करता था. महेंद्र ने मुझे बताया था कि उसकी कंपनी सेटलाईट के माध्यम से नक्शे बनाती है. मनीला प्रवास में महेंद्र के साथ मेरी कई यादें जुडी हैं. उसने हमें खूब घुमाया, दिखाया और फिलीपींस के विषय में बताया. वहाँ क्रिसमस के दौरान एक महीने पहले से पूरे शहर में सजावट हो गयी थी. चारों तरफ जगमगाहट थी. फिलीपींस में पूरी तरह अमरीकी कल्चर है. द्वितीय विश्वयुद्ध का केन्द्र होने के कारण, मृत अमरीकी और जापानी सैनिकों के हजारों स्मारक यहाँ है. महेंद्र हमें एक बहुत बड़े क्रेटर दिखाने ले गया, कहते हैं कि लाखों वर्ष पहले उल्का पिंड गिरने से यह बना था. अब यहाँ समुद्र जैसी झील है. जिसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है. पूर्व तानाशाह मार्कोस की पत्नी का आवास भी वहीं ऊपर पहाड़ी पर स्थित है.

         फिलीपींस को स्पेन के एक व्यापारी ने अपने राजा फिलिप को समर्पित करते हुए ये नाम दिया था. इतिहास बताता है किसी जमाने में यहाँ हिन्दू राजा राज करते थे फिर मुसलमान आये. लगभग चार सौ वर्ष पहले स्पेन ने आकर इस आठ हजार द्वीप समूह वाले देश पर कब्जा कर लिया. अठारहवीं सदी में एक समझौते के तहत महज एक लाख डालर में इस देश को अमेरिका को बेच दिया गया.
         महेंद्र कोरीडोर आइलैंड (जिसे टेडपोल आइलैड भी कहा जाता है) पर भी हमारे साथ था. वहाँ पहाड़ काट कर बनाई गयी विशाल गुफा (टनल) पर्यटन स्थल बन गया है. क्रूजर से वापसी में मौसम भयंकर रूप से खतरनाक हो गया था.प्रशांत महासागर ऊंची-ऊंची हिलोरें लेने लगा. एक अजीब सी दहशत यात्रियों में थी.
         २००३ की २६ जनवरी, गणतंत्र दिवस पर हम लोग महेंद्र एवं तृप्ति के मेहमान बने, वहीं पर हमने टेलीवीजन पर भारत में हो रहे परेड को देखा और शाम को भारतीयों के साथ बड़े यादगार समारोह में शामिल हुए. जिसमें भारतीय दूतावास के लोग और दक्षिण-पूर्वीय एशियाई देशों की तत्कालीन राजदूत भी शामिल हुई थी.
          अगले वर्ष महेंद्र ट्रांसफर होकर सिंगापुर आ गया. जहा उसने एक फ़्लैट भी खरीद लिया, पर ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था. २६ जून २००८ को जब महेंद्र एक छोटे से मिलिट्री विमान में फोटोग्राफी मिशन में इंडोनेशिया में था तो उसका विमान क्रेश हो गया. विमान में सवार सभी लोग मृत पाए गए. उसने मुझसे हल्द्वानी आ कर मिलने का वादा किया था जो पूरा नहीं हो सका. न जाने क्यों अच्छे लोग इस दुनिया से जल्दी विदा हो जाते हैं? उसकी याद आते ही दिल भर आता है, आँखें नम हो जाती हैं.
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