आजा मेरे बचपन
बेशक लेकर आजा
चिंतन मुक्त समस्याएं
मैं तेरी अंगड़ाई लूंगा
तेरी हर भोर-निशा की-
शाश्वत स्मृतियाँ –
मैंने अब तक भी
बंधन में रक्खी हैं.
आजा मेरे बचपन.
मैं फिर से पढ़ लूंगा स्वर व्यंजन.
मैं प्यार बड़ों का पा लूंगा,
खाने को जो मिल जाए,
बिना हठ के खा लूंगा
मैं खेलूंगा, कूदूंगा,
बिना बिछाए सो लूंगा
आजा मेरे बचपन.
कर दे बंधनमुक्त मुझे
यौवन के शिष्टाचारों से,
धर्म-कर्म के नारों से
और मिला दे मुझको-
मेरे बिछड़े यारों से
मैं उनमें ही हँस लूंगा
मैं उनमें ही गा लूंगा.
नहीं चाहिए सोना-चांदी,
नदी किनारे जा कर मैं-
रेती से जी भर लूंगा.
आजा मेरे बचपन.
तुझको चीन्ह सका मैं जब तक,
बिना बताए चला गया तू.
ऐसा क्या अपराध किया था-
अनजाने में छोड़ गया तू ?
मैं उन्मुक्तता का प्यासा हू,
औ’ तू उसका ही दाता है.
आजा मेरे बचपन.
बस एक बार फिर से आजा.
आजा मेरे बचपन.
***
काश बचपन लौट आता...वैसे एक बच्चा तो हमारे अंदर हमेशा रहता है ...सुंदर रचना
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जवाब देंहटाएंनहीं चाहिए सोना-चांदी
नदी किनारे जा कर मैं
रेती से जी भर लूंगा
आजा मेरे बचपन
बहुत कोमल अनुभूतियां ! अति सुंदर !!