शाम ढले, जब दीप जले रिमझिम सा मौसम होता है,
मैं खाना बनाऊ, जल्दी करूँ उनके आने का सा मालूम होता है.
द्वार ढकू फिर खोलूं कभी, दीपक भी मध्यम करती हूँ
द्वार ढकू फिर खोलूं कभी, दीपक भी मध्यम करती हूँ
वो कृष्णबदन परवाने बने, सोच मैं करती रहती हूँ
मैं किससे कहूं ये दर्द सखी ? वे उड़कर आ ही जाते हैं.
बास करें ये पदेड़े सखी, अनचाहे ये आ ही जाते हैं.
(पदेड़ा एक छोटा सा उड़ने वाला काला कीट है, जो बरसात के मौसम में रौशनी पर आता है और बदबू देता है. पश्चिमी भारत में बहुतायत से अपनी उपस्थिति बताता है. इस गंभीर विषय पर लिखने की हिम्मत आजतक किसी कवि ने नहीं की है. मैं आपकी दाद चाहूँगा.)
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चुटकुला
एक घर से अकसर पति-पत्नी के झगड़े की आवाजें अड़ोस-पड़ोस यहाँ तक कि बाहर सड़क तक आती थी. कुछ दिनों से ये सब बंद हो गया और बड़े जोर-जोर से हँसने की आवाजें आने लगी. एक पड़ोसी ने उत्कंठित होकर एक दिन पूछ डाला, "भाईसाहब आजकल आप और भाभी जी दोनों की बड़ी जोर से हँसने की आवाजें आती हैं. क्या चमत्कार हुआ है?
भाई साहब बोले, "चमत्कार ये हुआ है कि हमारी बोल-चाल बंद है, अब जब भी मेरी पत्नी नाराज होती है तो मेरी तरफ जूता उछाल कर मारती है. मुझे लग जाए तो वह हँसती है, और जब निशाना चूक जाये तब मैं हँसता
हूँ."
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b.majedar
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