मैं दियासलाई हूँ
सूर्यपुत्री हूँ
अग्निगर्भा हूँ.
आदिकाल से-
किसी न किसी रूप में
इंसानों के काम आई हूँ.
मुझे खुशी होती है
जब दीप जलाती हूँ,
संतों के हाथों से –
यज्ञ प्रज्वलित करती हूँ.
धूप-अगर सुलगाती हूँ,
बच्चों के दीवाली-पटाखे,
घर के चूल्हे-लालटेन,
कूड़ा-चिता सभी जलाती हूँ.
मैं दु:खी होती हूँ
जब कोई अज्ञानी –
घास के जंगल-
बस्तियों के दंगल
बदहवास जलाता है,
या खुदकुशी में जलता है.
खुदाया !
मैं तुझसे एक हाथ मांगती हूँ
सिर्फ एक हाथ.
ताकि गलत मौकों पर-
इंसान का हाथ पकड़ सकूं.
***
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