मैं, मैं हूँ
तू, तू है
वह, वह है.
मैं उत्तर हूँ
तू दक्षिण है
वह पूरब है.
धर्म-कर्म में
खान-पान में
बोली-पहनावे में
वर्ण-विचारों में
दिशा-भेद सा
सभी विमुख है.
मुझको तू
तुझको मैं
हमको वह
अंगीकार नहीं है.
फिर भी सुनते हैं
हम सब एक हैं
कहाँ एक हैं?
हर पहलू में
दीवारें हैं
खंदक हैं.
निजी हितों के पाटों पर-
कहाँ कपाट बनेंगे?
स्वत: विलगाव रहेगा
नित टकराव रहेगा.
कुछ लोग हमेशा लेकिन,
भाषण जिनकी रोजी है
कभी एक कह
कभी अनेक कह
पकती जिनकी रोटी है
चिल्लाते हैं
दिखलाते हैं
सिखलाते हैं
ये भारत है
एक राष्ट्र है
एक देश के तुम –
अनेक इकाई हो.
पर लड़ो
ये नदी तेरी है
ये भाषा उसकी है
ये वसीयत मेरी है
लड़ना एक दिलेरी है.
हम तुम्हारे नेता है
राजनैतिक अभिनेता हैं
हमको मानो, अपना जानो.
हम तुमको खुशहाल करेंगे
राष्ट्र को बेमिसाल करेंगे.
आपस में पर दूर रहो
देश एक है पर
तुम एक नहीं हो.
अजब पहेली है
हम एक नहीं है पर –
अनेक भी नहीं हैं.
आओ मिल बैठो
हम खुद सुलझाएं
इस भूल-भुलैया को
‘सुख से जीना’
बस एक समस्या
हम सबका उद्देश्य बना है.
मुझको तुझसे क्या रंजिश है?
तुझको मुझसे क्या रंजिश है?
उसको हमसे क्या रंजिश है?
कुछ भी नहीं-
बस एक अंदेशा भर है.
तेरा रक्त
मेरा रक्त
उसका रक्त
कोई अंतर नहीं है इनमें
फिर कहाँ भेद है-
पहनावे में?
ठण्डी में मोटा लंबा
गर्मी में हल्का छोटा
ये तो कोई भेद नहीं है.
सब धर्मों का सार यही है
‘सत्याचरण, पर-सुख चिंतन’
तुम अपने तौर तरीके से,
हम अपने तौर तरीके से
करें साधना-
लक्ष्य एक है.
अब रहा राष्ट्र
मैं, तू और वो –
तीनों से ही राष्ट्र बनेगा.
अपनी-अपनी भाषा में-
बोलो भारत माता की जय.
हम सब का अब एक ही उत्तर
हम भारत के हैं.
राजनीति बस रहने दो
हम प्रेमनीति अपनायेगे.
हम भारतीय अरु भारतीयता
आबाद रहे! आबाद रहे!
***
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